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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 487
    ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    4

    उ꣢पो꣣ षु꣢ जा꣣त꣢म꣣प्तु꣢रं꣣ गो꣡भि꣢र्भ꣣ङ्गं꣡ परि꣢꣯ष्कृतम् । इ꣡न्दुं꣢ दे꣣वा꣡ अ꣢यासिषुः ॥४८७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । सु꣢ । जा꣣त꣢म् । अ꣣प्तु꣡र꣢म् । गो꣡भिः꣢ । भ꣣ङ्ग꣢म् । प꣡रि꣢꣯ष्कृतम् । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣तम् । इ꣡न्दु꣢꣯म् । दे꣣वाः꣢ । अ꣣यासिषुः ॥४८७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपो षु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्गं परिष्कृतम् । इन्दुं देवा अयासिषुः ॥४८७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उप । उ । सु । जातम् । अप्तुरम् । गोभिः । भङ्गम् । परिष्कृतम् । परि । कृतम् । इन्दुम् । देवाः । अयासिषुः ॥४८७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 487
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में यह वर्णन है कि विद्वान् लोग कैसे परमेश्वर का अवलम्ब लेते हैं ॥

    पदार्थ

    (सु जातम्) सुप्रसिद्ध, (अप्तुरम्) कर्म करने में शीघ्रतायुक्त, (भङ्गम्) दुःखों के भञ्जक, (गोभिः परिष्कृतम्) प्रकाश-किरणों से अलङ्कृत अर्थात् तेजस्वी (इन्दुम्) चाँद के समान आह्लादक, रस से आर्द्र करनेवाले तथा सोम ओषधि के समान रसमय परमात्मा को (देवाः) विद्वान् लोग (उप उ अयासिषुः) निकटता से प्राप्त करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो परमेश्वर प्रसिद्ध कीर्तिवाला, जगत् की उत्पत्ति, धारण आदि क्रियाओं को करनेवाला, दुःखियों का दुःख दूर करनेवाला, दिव्य तेजों से अलङ्कृत, अपने शान्तिदायक आनन्द-रस में स्नान करानेवाला, चन्द्रमा के समान सुन्दर और सोमलता के समान रस से पूर्ण है, उसकी सबको उपासना करनी चाहिए ॥१॥

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    पदार्थ

    (गोभिः) स्तुतियों से (सुजातम्-अप्तुरम्) सम्यक् साक्षात् व्याप्तिमान् “अप्तुरमिति ह्यस्या आप्त्याः श्रेयांसम्” [जै॰ १.९०] (भङ्गम्) पापभञ्जक (परिष्कृतम्) आत्मा के परिष्कार करने वाले (इन्दुम्) आर्द्र आनन्दरस भरे परमात्मा को (देवाः-उ-उपायासिषुः) मुमुक्षु उपासक प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ

    मुमुक्षु उपासकजन स्तुतियों द्वारा पापनाशक तथा आत्मा का परिष्कार—अध्यात्म संस्कार करने वाले व्याप्तिमान् आनन्दरस भरे परमात्मा को हृदय में सम्यक् साक्षात् करते हैं॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—अमहीयुः (पृथिवी का नहीं दिव्—अमृत धाम मोक्ष को चाहने वाला)॥<br>

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    विषय

    देव-लोग

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'अमहीयु' = पार्थिव भोगों की कामना न करनेवाला कहता है कि (उप) = समीपता से, उ निश्चयपूर्वक सु उत्तमप्रकार से (जातम्) = विकास करनेवाले (इन्दुम्) = सोम को (देवा:) = देवलोग (अयासिषुः) = प्राप्त करते हैं। यदि एक बालक ब्रह्मचर्य आश्रम में माता, पिता व आचार्य की समीपता में निवास करता है और गृहस्थ बनने पर विद्वान् अतिथियों के सान्निध्य को प्राप्त करता है, प्रातः सायं प्रभु की उपासना करता है तो उस व्यक्ति का जीवन संयम-प्रवण रहता है बौर सोम उसके शरीर में व्याप्त होकर उसके उत्तम विकास का कारण बनता है। यह सोम (गोभिः) = ज्ञानप्रद वेदवाणियों के साथ (अप्-तुरम्) = उसके अन्दर कर्मों को त्वरा से- शीघ्रता से करानेवाला होता है। सोमी पुरुष को आलस्य नहीं व्यापता। न ही काम-क्रोध आदि वासनाएँ उसके मार्ग में विघातक होती हैं। यह (भर्गम्) = कामादि का मर्दन करनेवाला है-उ है - उन वासनाओं को कुचल डालनेवाला है और इस प्रकार (परिष्कृतम्) = यह जीवन को बड़ा परिष्कृत - शुद्ध बनानेवाला है।

    एवं सोम के सुरक्षित होने पर जीवन में निम्न परिणाम उत्पन्न होते हैं - १. उत्तम विकास, २. ज्ञानपूर्वक शीघ्रता से कार्य करने की शक्ति ३. वासनाओं का भङ्ग और ४. जीवन का परिमार्जन। इस प्रकार जीवन को उत्तम बनानेवाले इस सोम को प्राप्त वे ही करते हैं जो कि 'देवा: ' = देव बनने का प्रयत्न करते हैं। 

    भावार्थ

    मैं देव बनने का निश्चय करूँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( देवाः ) = विद्वान् लोग या इन्द्रियगण ( सुजातं ) = उत्तम गुणों से सम्पन्न उत्तम रूप से उत्पन्न, ( अप्तुरं ) = प्रजाओं या इन्द्रियों या कर्मों, ज्ञानों में व्यापक, गतिमान् , ( गोभिः ) = गौओं, उसके दुग्धों, वाणियों, रश्मियों से ( परिष्कृतम् ) = सुशोभित, सुमिश्रित, ( भङ्गं ) = सब दुःखों और शत्रुओं के तोड़ने हारे ( इन्दुं  ) = इस आत्मरूप सोम या परमेश्वर के आनन्दरस को ( उप अयासिषुः ) = प्राप्त करते हैं। ईश्वर, आत्मा, राजा और सोमरस चारों पक्षों में स्पष्ट है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - अहमीयु:।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वांसः कीदृशं परमेश्वरमवलम्बन्त इत्याह।

    पदार्थः

    (सुजातम्) सुख्यातम्, (अप्तुरम्) कर्मसु सत्वरम्, (भङ्गम्) दुःखभञ्जकम्, (गोभिः परिष्कृतम्) प्रकाशरश्मिभिः अलङ्कृतम्, तेजस्विनमिति यावत् (इन्दुम्) चन्द्रवदाह्लादकं, रसेन क्लेदकं, सोमौषधिवद् रसमयं च परमात्मानम् (देवाः) विद्वांसः (उप उ अयासिषुः) उपगच्छन्ति ॥१॥

    भावार्थः

    यः परमेश्वरः प्रख्यातकीर्तिर्जगत्सर्जनधारणादिक्रियायुक्तो दुःखिनां दुःखद्रावको दिव्यतेजोभिरलङ्कृतः स्वकीयेन शान्तिप्रदेनानन्दरसेन स्नपयिता चन्द्र इव चारुः सोमवल्लीव रसपूर्णश्चास्ति स सर्वैर्जनैरुपासनीयः ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६१।१३, साम० ७६२।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The learned people, attain to the beatitude of . God, the Banisher of afflictions, equipped with excellent qualities, devoted to action, and adorned with eloquence.

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    Meaning

    Soma, spirit of beauty, grace and glory, divinely created, nobly born, zealous, destroyer of negativity, beatified and celebrated in songs of divine voice, the noblest powers of nature and humanity adore, share and enjoy. (Rg. 9-61-13)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (गोभिः) સ્તુતિઓથી (सुजातम् अप्तुरम्) સમ્યક્ સાક્ષાત્ વ્યાપ્તિમાન (भङ्गम्) પાપભંજક (परिष्कृतम्) આત્માનો પરિષ્કાર કરનાર (इन्दुम्) આર્દ્ર આનંદરસ પૂર્ણ પરમાત્માને (देवाः उ उपायासिषुः) મુમુક્ષુ ઉપાસક પ્રાપ્ત થાય છે. (૧)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : મુમુક્ષુ ઉપાસક જન સ્તુતિઓ દ્વારા પાપનાશક તથા આત્માનો પરિષ્કાર-અધ્યાત્મ સંસ્કાર કરનાર વ્યાપ્તિમાન આનંદરસ ભરેલ પરમાત્માનો હૃદયમાં સાક્ષાત્ કરે છે. (૧)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    کِن کو وِصال مُیسّر ہے بھگوان کا

    Lafzi Maana

    وید بانیوں کی حمد و ثناؤں سے ظاہر ظہور ہونے والے زندگی بخش گناہوں کی دیواروں کو توڑنے والے، آتما کو شُدھ پِوتّر کرنے والے آنند رُوپ پرماتما کو پرمیشور کے گُنوں کو دھارن کرنے والے اُپاسک پراپت ہوتے ہیں۔

    Tashree

    وید بانیوں کے منتروں سے جو بھگوان رجھاتے ہیں، وہی اُپاسک ہی ست چِت آنند پربُھو کو پاتے ہیں۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जो परमेश्वर प्रसिद्ध कीर्तिमान, जगाची उत्पत्ती धारण इत्यादी क्रिया करणारा, दु:खितांचे दु:ख दूर करणारा, दिव्य तेजांनी अलंकृत, आपल्या शांतिदायक आनंदरसात स्नान करविणारा, चंद्रासारखा सुंदर व सोमलतेप्रमाणे रसपूर्ण आहे, त्याची सर्वांनी उपासना केली पाहिजे ॥१॥

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    विषय

    विद्वज्जन कोणत्या (कशा प्रकारचे गुण - कर्म - स्वभाव धारण करणाऱ्या) परमेश्वराचा अवलंब करतात (त्याचा आधार घेतात.)

    शब्दार्थ

    (सु जातम्) सुविख्यात (अप्तुरम्) कर्म करम्यात शीघ्रकारी (भडम्) दुखभंजक आणि (गोभिः) परिष्कृतम्) प्रकाश किरणांनी अलंकृत तेजस्वी (इन्दुम्) चंद्राप्रमाणे जो आल्हाददायक, रसमय आणि सोम औषधीप्रमाणे रसमय परमेश्वराला (देवाः) विद्वज्जन (उप उ अयासिषुः) जवळून जाणतात वा त्याला त्वरित प्राप्त करतात।। १।।

    भावार्थ

    जो परमेश्वर सुविख्यात आहे, जगदुत्पत्तिकर्ता धारणकर्ता आहे, दुःखीजनांचे दुःख हरण करणारा असून दिव्य तेजाने अलंकृत आहे, तसेच जो आनंद रसात स्नान करविणारा व चंद्राप्रमाणए मोहक व सोमलतेप्रमाणे रसाप्लावित आहे. सर्वांनी त्याची उपासना अवश्य केली पाहिजे.।। १।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    நன்றாய்ப் பிறந்து துரிதமாய் சத்துருக்களுக்குப் பங்கஞ் செய்யும் பால்களால் அலங்காரமான (இந்துவிற்கு தேவர்கள்) வந்துள்ளார்கள்.

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