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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 488
    ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    2

    पु꣣नानो꣡ अ꣢क्रमीद꣣भि꣢꣫ विश्वा꣣ मृ꣢धो꣣ वि꣡च꣢र्षणिः । शु꣣म्भ꣢न्ति꣣ वि꣡प्रं꣢ धी꣣ति꣡भिः꣢ ॥४८८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु꣣नानः꣢ । अ꣣क्रमीत् । अभि꣢ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । मृ꣡धः꣢꣯ । वि꣡च꣢꣯र्षणिः । वि । च꣣र्षणिः । शुम्भ꣡न्ति꣢ । वि꣡प्र꣢꣯म् । वि । प्र꣢꣯म् । धीति꣡भिः ॥४८८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनानो अक्रमीदभि विश्वा मृधो विचर्षणिः । शुम्भन्ति विप्रं धीतिभिः ॥४८८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनानः । अक्रमीत् । अभि । विश्वाः । मृधः । विचर्षणिः । वि । चर्षणिः । शुम्भन्ति । विप्रम् । वि । प्रम् । धीतिभिः ॥४८८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 488
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 2
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम परमात्मा का वर्णन है।

    पदार्थ

    (पुनानः) मन को पवित्र करता हुआ (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टा परमेश्वर (विश्वाः मृधः) काम, क्रोध आदियों की सब संग्रामकारिणी सेनाओं पर अथवा समस्त हिंसावृत्तियों पर (अभि अक्रमीत्) आक्रमण कर देता है। उस (विप्रम्) मेधावी परमेश्वर को, उपासक जन (धीतिभिः) ध्यानों के द्वारा (शुम्भन्ति) अपने हृदय के अन्दर शोभित करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    ध्यान किया हुआ परमेश्वर साधक के मार्ग में विघ्नभूत सब आसुरी सेनाओं को पराजित कर चित्त को पवित्र करता है ॥२॥

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    पदार्थ

    (विचर्षणिः) द्रष्टा—सर्वद्रष्टा “विचर्षणिः पश्यतिकर्मसु” [निघं॰ ३.१२] (पुनानः) उपासक को पवित्र करता हुआ शान्तस्वरूप परमात्मा (विश्वाः-मृधः) समस्त पापभावनाओं को “पाप्मा वै मृधः” [श॰ ६.३.३.८] (अभि-अक्रमीत्) दबा देता है, नष्ट कर देता है (धीतिभिः) ध्यान क्रियाओं से (विप्रं शुम्भन्ति) विशेष कामनापूरक परमात्मा को पूजते हैं।

    भावार्थ

    उपासक को पवित्र करता हुआ सर्वद्रष्टा परमात्मा उपासक की समस्त पाप भावनाओं को दूर करता है, उस कामनापूरक परमात्मा को उपासक ध्यान क्रियाओं से पूजते हैं॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—बृहन्मतिः (महती स्तुति वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    ध्यान के द्वारा

    पदार्थ

    (पुनान:) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ यह सोम (विचर्षणि:) = बहूत सूक्ष्म दृष्टिवालातत्त्व-ज्ञानी की दृष्टि को उत्पन्न करनेवाला - (विश्वा मृधः) = अन्दर घुस आनेवाली, कुचल डालनेवाली [मृध्murder] सभी काम-क्रोधादि वृत्तियों को (अभि अक्रमीत्) = आक्रान्त करता है। सोम की रक्षा से हमारा जीवन पवित्र होता है। यह सोम रोमकृमियों पर आक्रमण करके हमारे शरीरों को स्वस्थ बनाता है और वासनाओं पर आक्रमण करके हमारे मनों को निर्मल बनाता है। बुद्धि की कुण्ठता को दूर करके बुद्धि को यह तीव्र बनाता है । एवं यह सोम 'वि-प्र' है- - हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाले सोम को देवलोग (धीतिभिः) = ध्यान के द्वारा (शुम्भन्ति) = अपने शरीर में सुशोभित करते हैं। इस सोम के शरीर में सुरक्षित रखने का सर्वमहान उपाय प्रभु का ध्यान ही है। सदा प्रभु का चिन्तन करनेवाला व्यक्ति वासनाओं का शिकार नहीं होता और सोम को सुरक्षित कर पाता है। इसकी रक्षा से यह बड़ी तीव्र बुद्धिवाला बनता है-अतः ‘बृहन्मति' कहलाता है और शक्तिशाली बनने से 'आङ्गिरस' होता है।

    भावार्थ

    मैं सदा प्रभु का स्मरण करनेवाला बनूँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( विचर्षणिः ) = विविध प्रजाओं का द्रष्टा ( सोमः ) = आत्मा ( विश्वा: ) = समस्त ( मृधः ) = संग्रामों को ( पुनानः ) = पवित्र करता हुआ, सबके कलह मिटाता हुआ ( अभि अक्रमीत् ) = प्रत्यक्षरूप से सबको व्यवस्थापक रूप में पार कर जाता है वह सबसे ऊंचा होकर विराजता है। उस ( विप्रं ) = मेधा बुद्धि से सम्पन्न ज्ञानी को विद्वान्जन ( धीतिभिः ) = अपनी मतियों और स्तुतियों से ( शुम्भन्ति ) = अलंकृत करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमं परमात्मानं वर्णयति।

    पदार्थः

    (पुनानः) उपासकानां मनः पवित्रं कुर्वन्, (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टा सोमः परमेश्वरः। विचर्षणिः इति पश्यतिकर्मसु पठितम्। निघं० ३।११। (विश्वाः मृधः) कामक्रोधादीनां सर्वाः सङ्ग्रामकारिणीः सेनाः, निखिला हिंसावृत्तीर्वा (अभि अक्रमीत्) अभ्याक्रामति। तम् (विप्रम्) मेधाविनं परमेशम्, उपासकाः (धीतिभिः) ध्यानैः (शुम्भन्ति२) स्वहृदयाभ्यन्तरे शोभयन्ति। शुम्भ शोभार्थे, तुदादिः ॥२॥

    भावार्थः

    ध्यातः परमेश्वरः साधकस्य मार्गे विघ्नभूताः सर्वा आसुरीः सेनाः पराजित्य चित्तं पवित्रयति ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।४०।१, साम–० ९२४। २. शुम्भन्ति शोभन्ति अलङ्कुर्वन्ति—इति वि०। दीपयन्ति—इति भ–०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    A seer, transgresses all conflicts by reconciling them mutually. The learned deck such a sage with holy hymns.

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    Meaning

    Soma, spirit of universal purity and purification, all watching, faces and overcomes all adversaries of the carnal world. Sages celebrate and glorify the vibrant all prevailing spirit with songs of adoration. (Rg. 9-40-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (विचर्षणिः) દ્રષ્ટા-સર્વદ્રષ્ટા (पुनानः) ઉપાસકને પવિત્ર કરતાં શાંત સ્વરૂપ પરમાત્મા (विश्वाः मृधः) સમસ્ત પાપ ભાવનાઓને (अभि अक्रमीत्) દબાવી દે છે, નષ્ટ કરી દે છે. (धीतिभिः) ધ્યાન ક્રિયાઓથી (विप्रं शुम्भन्ति) વિશેષ કામનાપૂરક પરમાત્માને પૂજે છે. (૨)

     

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : ઉપાસકને પવિત્ર કરતાં સર્વદ્રષ્ટા પરમાત્મા ઉપાસકની સમસ્ત પાપભાવનાઓને દૂર કરે છે, તે કામનાપૂરક પરમાત્માને ઉપાસક ધ્યાન ક્રિયાઓથી પૂજે છે. (૨)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    عابد کو پِوتّر کر دیتا ہے!

    Lafzi Maana

    سب کو دیکھ رہا شانت رُوپ پرماتما سب بُرائیوں کو دُور کر کے اُپاسک کو پِوتّر کر دیتا ہے اور دھیان کرنے والوں کی منو کامناؤں کو پُورن کر دیتا ہے۔

    Tashree

    سب کو دیکھ رہا بھگوان شانت روپا پری پُورن، دھیان میں بیھٹنے والوں کی کر دیتا کامنائیں پُورن۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ध्यान केलेला परमेश्वर साधकाच्या मार्गात विघ्न असलेल्या सर्व आसुरी सेनेला पराजित करून चित्ताला पवित्र करतो ॥२॥

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    विषय

    सोम परमेश्वराचे वर्णन

    शब्दार्थ

    (पुनान्ः) मनाला पवित्र करीत (विचर्षणिः) तो सर्वद्रष्टा परमेश्वर (विश्वाः मृधः) काम, क्रोध आदी सर्व संग्राम करणाऱ्या सैन्यावर वा हिंसक वृत्तींवर (अभि अक्रमीत्) आक्रमण करतो (उपासकांच्या या दुष्ट प्रवृत्तींना विनष्ट करतो) त्या (विप्रम्) मेधावी परमेश्वराला उपासकजन (धीतिभिः) ध्यानद्वारे (शुम्भन्ति) आपल्या हृदयात स्थापित करून हृदयास सुशोभित करतात.।। २।।

    भावार्थ

    साधकाने, उपासकाने त्याचे ध्यान केल्यानंतर तो परमेश्वर साधकाच्या मार्गातील विघ्नभूत सर्व आसुरी सेनांना पराजित करतो आणि साधकाच्या चित्तास पवित्र करतो.।। २।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    எதையுங் காணும் சோமன் சகலமான சத்துருக்களை ஆக்ரமித்துள்ளான்; மேதாவியை செயல்களால் அலங்கரிக்கிறார்கள்.

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