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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 491
    ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    2

    प्र꣢꣫ यद्गावो꣣ न꣡ भूर्ण꣢꣯यस्त्वे꣣षा꣢ अ꣣या꣢सो꣣ अ꣡क्र꣢मुः । घ्न꣡न्तः꣢ कृ꣣ष्णा꣢꣫मप꣣ त्व꣡च꣢म् ॥४९१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣢ । यत् । गा꣡वः꣢꣯ । न । भू꣡र्ण꣢꣯यः । त्वे꣣षाः꣢ । अ꣣या꣡सः꣢ । अ꣡क्र꣢꣯मुः । घ्न꣡न्तः꣢꣯ । कृ꣣ष्ण꣢म् । अ꣡प꣢꣯ । त्व꣡च꣢꣯म् । ॥४९१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र यद्गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः । घ्नन्तः कृष्णामप त्वचम् ॥४९१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । यत् । गावः । न । भूर्णयः । त्वेषाः । अयासः । अक्रमुः । घ्नन्तः । कृष्णम् । अप । त्वचम् । ॥४९१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 491
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि परमात्मा से प्राप्त आनन्द-रस क्या करते हैं।

    पदार्थ

    (यत्) जब (गावः न) सूर्य-किरणों के समान (भूर्णयः) धारण-पोषण करनेवाले, (त्वेषाः) दीप्तिमान्, (अयासः) क्रियाशील आनन्द-रस रूपी सोम (प्र अक्रमुः) पराक्रम दिखाते हैं, तब (त्वचम्) आवरण डालनेवाली (कृष्णाम्) तमोगुण की काली रात्रि को (ध्नन्तः) नष्ट कर देते हैं ॥५॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥५॥

    भावार्थ

    ब्रह्मानन्द-रूप रसों का जब योगी जन पान कर लेते हैं, तब सभी मोह-निशाएँ उनके मार्ग से हट जाती हैं ॥५॥

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    पदार्थ

    (कृष्णां त्वचम्) पापवासना को “पाप्मा वै कृष्णा त्वक्” [जै॰ ३.६०] (अपघ्नन्तः) नष्ट करते हुए (अयासः) सोम परमात्मा की आनन्द धाराएँ (यत् प्र-अक्रमुः) जब उपासक को प्रक्रान्त करती हैं—प्राप्त होती हैं (भूर्णयः-त्वेषाः-गावः-न) भरण-पोषण करने वाली दीप्तियाँ—सूर्यरश्मियाँ जैसे अन्धकार को नष्ट करती हुई आती हैं।

    भावार्थ

    पापवासनाओं को नष्ट करती हुईं परमात्मा की आनन्द धाराएँ उपासक को प्राप्त होती हैं। जैसे पुष्टि करने वाली सूर्य-किरणें अन्धकार को नष्ट करती हुई आती हैं॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—मेध्यातिथिः (सङ्गमनीय परमात्मा में गमन करने वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    काले आवरण को हटाते हुए

    पदार्थ

    (यद्) = जब (गावो न) = गौवों के समान या वेदवाणियों के समान (भूर्णयः) = भरण करनेवाले ये सोम (प्र अक्रमुः) = गति करते हैं तो (कृष्णां त्वचम्) = काले आवरण- परदे को (अपघ्नन्तः) = नष्ट करते हुए गति करते हैं। सोम हमारे जीवन का भरण करनेवाले हैं, उसी प्रकार जैसे गौवों का दूध हमारे शरीर को नीरोग, मन को सात्त्विक तथा मस्तिष्क को उज्ज्वल बनाता है। वेदवाणियाँ भी हमारे जीवन के पोषण में पर्याप्त स्थान रखती हैं। (त्वेषा:) = ये दीप्तिवाले हैं—इनके कारण हमारा जीवन - मार्ग प्रकाशमय बना रहता है। (अयासः) = ये निरन्तर गतिवाले हैं। शरीर में सोम के सुरक्षित होने पर थकता नहीं है। अनथकरूप से निरन्तर आगे बढ़ता हुआ यह मार्ग में आनेवाली रुकावटों को दूर करता जाता है। ये रुकाबटें ही ज्ञान के आवरण हैं। काम, क्रोध, लोभादि आवरण काली त्वचा के रूप में हैं- सोम इनका नाश कर देता है। विघ्नों के दूर हो जाने पर, यात्रा को पूर्ण करके यह उस मेध्य पवित्र प्रभु का 'अतिथि' बनता है, अत: इसका नाम मेध्यातिथि हो जाता है। यह ऐसा एक-एक कदम चलते-चलते कण-कण करके बन पाया है, अतः इसका नाम 'काण्व' है। ,

    भावार्थ

    हम सोम का धारण करें। ये हमारा धारण करेंगे। हमारे मार्ग को प्रकाशमय बनाएँगे। हम अनथकरूप से आगे बढ़ेंगे। सब विघ्न-बाधाओं को पार कर जाएँगे।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

     भा० = ( यत् ) = जो ( गाव: न ) = किरणों के समान ( भूर्णयः ) = सब के पालन करने हारे वा क्षिप्रगामी ( त्वेषाः ) = कान्तिमान् ( अयासः ) = गतिशील, ( कृष्णां ) = कृष्ण, कर्षण करने वाली, हानिकारक ( त्वचम् ) = त्वचा, ऊपर की खाल या देखावे, अन्धकार, ढोंग, देहबन्धन को ( घ्नन्तः ) = विनाश करते हुए ( प्र अक्रमुः ) = विचरते हैं । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - मेध्यातिथिः।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनः प्राप्ता आनन्दरसाः किं कुर्वन्तीत्याह।

    पदार्थः

    (यत्) यदा (गावः न) सूर्यकिरणाः इव (भूर्णयः) धारणपोषणकराः। डुभृञ् धारणपोषणयोः। बिभर्तीति भूर्णिः, ‘घृणिपृश्निपार्ष्णिचूर्णिभूर्णयः।’ उ० ४।५३ इति निः प्रत्ययः। धातोरूत्वम्। (त्वेषाः) दीप्ताः। त्विष दीप्तौ, भ्वादिः। (अयासः) गमनशीलाः सोमाः आनन्दरसाः। अयन्ते गच्छन्तीति अयाः, जसोऽसुगागमः। (प्र अक्रमुः) पराक्रमन्ते, तदा (त्वचम्) संवरणकरीम्। त्वच संवरणे, तुदादिः। (कृष्णाम्) तमोगुणमयीं रात्रिम्। ‘कृष्णा कृष्णवर्णा रात्रिः’ इति निरुक्तम् २।२०। (घ्नन्तः) ध्वसंयन्तो, भवन्तीति शेषः ॥५॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥५॥

    भावार्थः

    ब्रह्मानन्दरसान् यदा योगिनो जनाः पिबन्ति तदा सर्वा अपि मोहनिशास्तेषां मार्गादपयन्ति ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।४१।१, ‘यद्’ इत्यत्र ‘ये’ इति पाठः। साम० ८९२।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    lust as the impetuous, bright, unwearied rays, come forth driving far away the black covering of the night, so should the soul do.

    Translator Comment

    Just as the rays of Sun remove the darkness of the night, so should the soul drive away its sins and short-comings.

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    Meaning

    We adore the ceaseless radiations of divinity which, like restless rays of the sun, blazing with lustrous glory, move and shower on the earth and dispel the dark cover of the night. (Rg. 9-41-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (कृष्णां त्वचम्) પાપ વાસનાને (अपघ्नन्तः) નષ્ટ કરતાં (अयासः) સોમ પરમાત્માની આનંદધારાઓ (यत् प्र अक्रमुः) જ્યારે ઉપાસકને પ્રક્રાન્ત કરે છે-પ્રાપ્ત થાય છે (भूर्णयः त्वेषाः गावः न) ભરણ-પોષણ કરનારી દીપ્તિઓ-સૂર્યકિરણો જેમ અંધકારનો નાશ કરતાં આવે છે. (૫) 

     

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પાપ વાસનાઓને નષ્ટ કરતી પરમાત્માની આનંદધારાઓ ઉપાસકને પ્રાપ્ત થાય છે. જેમ પુષ્ટિ કરનારા સૂર્ય-કિરણો અંધકારનો નાશ કરતાં આવે છે. (૫)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    اگیان کو مِٹا کر گیان پھیلائیں

    Lafzi Maana

    جس پرکار چمکتی ہوئی تیزی سے چاروں طرف پھیلتی سُورج کی کرنیں کالا لباس اوڑھے رات کے اندھکار کو مٹا دیتی ہیں، اسی طرح سوم پربُھو کے بھگتی رس میں بھرے ہوئے بھگت وِدوان اگیان کا ناش کرتے ہوئے چاروں طرف پھیلتے رہتے ہیں۔

    Tashree

    جس طرح سُوریہ کی کِرن مٹا دیتی ہے رات کا کالاپن، اِسی طرح گیان کی مشعل سے اگیان مٹائیں بھگوت جن۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जेव्हा योगी लोक ब्रह्मानंद रसाचे पान करतात तेव्हा सर्व मोह-रात्री त्यांच्या मार्गातून हटतात ॥५॥

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    विषय

    परमेश्वराकडून प्राप्त आनंद रस काय करतो, याचे वर्णन

    शब्दार्थ

    (यत्) जेव्हा (गावःन) सूर्यकिरणांप्रमाणे (भूर्णयः) धारण पोषण करणारे (त्वेषाः) विशेष दीप्तिमान (अयासः) क्रियाशील आंद रस रूप सोम (प्र अक्रमुः) आपली शक्ती वा प्रभाव दाखवितात, तेव्हा (त्वचम्) आवरण करणाऱ्या सर्वांना ढापून वा झाकून टाकणार्या (कृष्णाम्) तमोगुणाच्या काळ्या रात्रीला तो सोम (घ्नन्तः) नष्ट करून टाकतो.।। ५।।

    भावार्थ

    जेव्हा योगीजन ब्रह्मानंद रूप रस पान करतात, तेव्हा सर्व मोह, माया, आदी रूप रात्री त्यांच्या मार्गापासून दूर निघून जातात.।। ५।।

    विशेष

    या मंत्रात उपमा अलंकार आहे.।। ५।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    வேகமாய் சோதியாய் களைப்பில்லாதவர்களாய் (பசுக்களைப்) போல் (கருமையான) காயத்தைத் துரத்திக்கொண்டு அவர்கள் கைப்பற்றுகிறார்கள்.

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