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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 684
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - पादनिचृत् (गायत्री) स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    4

    अ꣣भी꣢꣫ षु णः꣣ स꣡खी꣢नामवि꣣ता꣡ ज꣢रितॄ꣣णा꣢म् । श꣣तं꣡ भ꣢वास्यू꣣त꣡ये꣢ ॥६८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣भि꣢ । सु । नः꣣ । स꣡खी꣢꣯नाम् । स । खी꣣नाम् । अविता꣢ । ज꣣रितॄणा꣢म् । श꣣त꣢म् । भ꣣वासि । ऊत꣡ये꣢ ॥६८४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम् । शतं भवास्यूतये ॥६८४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सु । नः । सखीनाम् । स । खीनाम् । अविता । जरितॄणाम् । शतम् । भवासि । ऊतये ॥६८४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 684
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे इन्द्र जगदीश्वर ! आप (सखीनाम्) आपके सखा (जरितॄणां नः) हम स्तोताओं की (शतम् ऊतये) सौ वर्ष तक प्रीति के लिए (अविता) रक्षक (सु) भली-भाँति (अभि) चारों ओर (भवासि) होओ ॥३॥

    भावार्थ

    जो जीवात्मा परमात्मा के सखा हो जाते हैं, उनका वह महान् कल्याण करता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (नः-जरितॄणाम् सखीनाम् अविता) हे इन्द्र ऐश्वर्यवान् परमात्मन्! तू हम स्तुतिकर्ता उपासक मित्रों का रक्षक है अतः उनकी (ऊतये) रक्षा के लिए (शतम्-अभि) आयु के प्रति—जब तक आयु है—आयुपर्यन्त “यच्छतमायुष्टत्” [जै॰ २.४७] ‘अभ्याप्तुम्’ प्राप्त करने को (सुभवासि) सुगम हो जा।

    भावार्थ

    सबका रक्षक परमात्मा अपने मित्ररूप स्तुतिकर्ता जनों की ओर आयु भर झुका हुआ या प्राप्त होने को उद्यत रहता है उनकी रक्षा के लिये, परमात्मा की स्तुति करने वाले उसके मित्र हो जाते हैं वह उनकी आयु भर रक्षा करता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु-रक्षा में विश्वास

    पदार्थ

    यह वामदेव इन असुर पुरियों के संहाररूप कार्य को करता हुआ प्रभु की उपासना करता है कि हे प्रभो ! आप (नः) = हम (सखीनाम्) = समान -ख्यानवालों के - समान दृष्टिकोणवालों के (अविता) = रक्षक हैं। प्रभु का उद्देश्य अज्ञानान्धकार को दूर करना है – इसी उद्देश्य से प्रभु ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेदज्ञान दिया है। इन वामदेव सरीखे प्रभु के सखाओं के जीवन का उद्देश्य भी अज्ञानान्धकार को दूर करना ही होता है। इस कार्य में ये निर्भीकता से चलते हैं, चूँकि ये अनुभव करते हैं कि प्रभु उनके रक्षक हैं, प्रभु ने यह कार्य जब तक उनसे कराना है, प्रभु उनकी रक्षा करेंगे ही । ये कहते हैं कि हे प्रभो! (नः जरितॄणाम्) = हम स्तोताओं के आप (शतं सु ऊतये) = सैकड़ों प्रकार से उत्तम रक्षा के लिए (अभिभवासि) = चारों ओर होते हैं । यह अपने को उस प्रभु से आवृत अनुभव करते हुए सब प्रकार के भयों से ऊपर उठ जाते हैं ।

    भावार्थ

    प्रभु का सखा प्रभु की रक्षा में विश्वास रखता है और निर्भीकता से लोकहित में प्रवृत्त रहता है।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( ३ ) हे इन्द ! आप ( नः ) = हमारे ( सखीनां ) = मित्र ( जरितॄणां ) = सद्विद्या का उपदेश करने वाले विद्वानों के ( ऊतये ) = रक्षा के लिये ( शतं ) = सौ वर्षों तक ( अविता ) = रक्षक ( भवासि ) = बने रहें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वामदेव:। देवता - सर्वे देवा:। छन्दः - गायत्री। स्वरः - षड्जः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मानं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे इन्द्र जगदीश्वर ! त्वम् (सखीनाम्) त्वया सह सख्यं स्थापितवताम् (जरितॄणाम्) स्तोतॄणाम् (नः) अस्माकम् (शतम् ऊतये) शतवर्षपर्यन्तं प्रीतये (अविता) रक्षकः (सु) सम्यक् (अभि) अभितः (भवासि) भव। [संहितायाम् अभी षु णः इत्यत्र ‘इकः सुञि’ अ० ६।३।१३४ इति दीर्घः ‘सुञः’ अ० ८।३।१०७ इति षत्वम्। ‘नश्च धातुस्थोरुषुभ्यः’ अ० ८।४।२७ इति णत्वम्। भवासि, भवतेर्लोटि रूपम्।] ॥३॥२

    भावार्थः

    ये जीवात्मानः परमात्मनः सखायो जायन्ते तेषां स महत् कल्याणं करोति ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ४।३१।३, य० २७।४१, ३६।६, अथ० २०।१२४।३। २. दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमम् ऋग्भाष्ये राजप्रजाधर्मविषये, यजुर्भाष्ये च क्रमशो विद्वद्विषये जगदीश्वरविषये च व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, be Thou the Guardian for one hundred years, for the protection of our friendly learned persons !

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    Meaning

    Friend of friends and protector of celebrants you are, come and bless us too with a hundred modes of protection and advancement. Be ours, O lord ! (Rg. 4-31-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (नः जरितृणां सखीनाम् अविता) હે ઇન્દ્ર-ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તું અમે સ્તુતિકર્તા ઉપાસક મિત્રોનો રક્ષક છે તેથી તેની (ऊतये) રક્ષાને માટે (शतम् अभि) આયુની પ્રતિ-જ્યાં સુધી આયુ છે-આયુ પર્યન્ત ‘અભ્યાસુમ'-પ્રાપ્ત કરવાને (सुभवासि) સુગમ બની જા. (૩)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સર્વના રક્ષક પરમાત્મા પોતાના મિત્ર રૂપ સ્તુતિકર્તા જનોની રક્ષાને માટે તેની તરફ આયુ-જીવનભર નમેલ-ઝુકેલ રહે છે અર્થાત્ પ્રાપ્ત થવા તૈયાર રહે છે. પરમાત્માની સ્તુતિ કરનારા તેના મિત્રો બની જાય છે, તે તેની જીવનભર-આયુ સુધી રક્ષા કરે છે. (૩)
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे जीवात्मे परमेश्वराचे सखा बनतात, त्यांचे तो अतिशय कल्याण करतो. ॥३॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात परमेश्वराला प्रार्थना केली आहे -

    शब्दार्थ

    हे इन्द्र जगदीश्वरा, तू तुझ्या (सखीनाम्) मित्राप्रमाणे असलेल्या (जरितृणाम्) आम्हां स्तुतिकर्तां जनांवर असलेली (शतम् उतये) प्रीती शंभर वर्षांपर्यंत अक्षुण्ण ठेव आणि अमाचा अविता) रक्षक होऊन (सु) उत्तम प्रकारे (अभि) आणि सर्वत: आमचे रक्षण करणारा हो (अशी आम्हा भक्तांची तुला कळकळीची विनंती) ।।३।।

    भावार्थ

    जे जीवात्मे परमात्म्याचे सखा होतात, तो परमात्मा त्यांचे रक्षण व त्यांचे कल्याण अवश्य करतो ।।३।।

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