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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 805
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    1

    अ꣣या꣢ चि꣣त्तो꣢ वि꣣पा꣢꣫नया꣣ ह꣡रिः꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या । यु꣢जं꣣ वा꣡जे꣢षु चोदय ॥८०५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣या꣢ । चि꣣त्तः꣢ । वि꣣पा꣢ । अ꣣न꣡या꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । यु꣡ज꣢꣯म् । वा꣡जे꣢꣯षु । चो꣣दय ॥८०५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अया चित्तो विपानया हरिः पवस्व धारया । युजं वाजेषु चोदय ॥८०५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अया । चित्तः । विपा । अनया । हरिः । पवस्व । धारया । युजम् । वाजेषु । चोदय ॥८०५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 805
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः परमात्मा का विषय है।

    पदार्थ

    हे पवमान सोम ! हे पवित्रकर्त्ता परमात्मन् ! (विपा) मुझ मेधावी के द्वारा (चित्तः) जाने हुए (हरिः) दुःखों एवं पापों के हर्त्ता आप (अया) वेगवती (अनया) इस (धारया) आनन्द-धारा से (पवस्व) मुझ स्तोता को पवित्र कीजिए। (युजम्) अपने सखा मुझको (वाजेषु) जीवनसंग्रामों में (चोदय) विजय के लिए प्रेरित कीजिए ॥३॥

    भावार्थ

    स्तुति किया गया परमात्मा स्तोताओं को आनन्द-धाराओं से सींचकर, बल देकर देवासुरसंग्रामों में विजयी करता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (अया-अनया) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! इस प्रगतिमय—(विपा धारया) स्तुतिरूप वाणी से “धारा वाङ्नाम” [निघं॰ १.११] (चित्तः) संचेतित हुआ—प्रसन्न हुआ हमारी ओर कृपायमाण हुआ (हरिः) दुःखापहरणकर्त्ता सुखाहरणकर्त्ता बना (युजम्) युक्त—मुझ अपने से युक्त हुए को (वाजेषु) अमृत अन्नभोगों के निमित्त (चोदय) प्रेरित कर।

    भावार्थ

    परमात्मा प्रगतिमय स्तुतिरूप वाणी से कृपायमाण हुआ दुःखापहरणकर्त्ता सुखाहरणकर्त्ता बना अपने साथ युक्त—योगी उपासक को अमृत भोगों के निमित्त प्रेरित करता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    ज्ञान-कर्म-शक्ति

    पदार्थ

    (अनया) = इस (अया) = [अय् गतौ] क्रियाशीलता से, (अनया विपा) = इस स्तवन [Praise, hymn] से तथा (अनया धारया) = इस वेदवाणी से (चित्त:) = संज्ञात हुए हुए (पवस्व) = मुझे पवित्र कर दीजिए। (हरिः) = सब दु:खों व अज्ञानों के हरनेवाले प्रभु (युजम्) = आपके साथ सम्पर्क करनेवाले मुझ अपने पुत्र को आप (वाजेषु) = वाजों में (चोदय) = प्रेरित कीजिए ।

    प्रभु का दर्शन ज्ञानकाण्ड, कर्मकाण्ड व उपासनाकाण्ड तीनों के समन्वय से ही होता है । ('अया') = कर्मकाण्ड को सूचित करता है, ('विपा') = उपासना को तथा (‘धारया') = ज्ञानकाण्ड को । प्रभु से मेल कर सकनेवाला यह ‘युज्’ कहलाता है। इस युज् को प्रभु वाज प्राप्त कराते हैं । गतमन्त्र के वर्णन के अनुसार इसके अन्नमयकोश में बल [वाज=Strength] होता है, प्राणमयकोश में क्रियाशीलता
    [वाज=Speed], मनोमयकोश में त्याग की भावना [वाज = Sacrifice] तथा विज्ञानमयकोश में ज्ञान की दीप्ति [गतेस्त्रयोऽर्था ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च ] होती है ।

    भावार्थ

    ज्ञान, कर्म व भक्ति के मेल से मैं प्रभु को प्राप्त करूँ तथा प्रभु मुझ युज् को ‘वाज' [बल] प्राप्त कराएँ ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः परमात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    हे पवमान सोम ! हे पवित्रकर्त्तः परमात्मन् ! (विपा) मेधाविना मया। [विप इति मेधाविनामसु पठितम्। निघं० ३।१५।] (चित्तः) विज्ञातः, (हरिः) दुःखानां पापानां च हर्ता त्वम् (अया) अयया सवेगया। [अय गतौ, पचाद्यच्। स्त्रियाम् अया। ततस्तृतीयैकवचने ‘सुपां सुलुक्०’। अ० ७।१।३९ इति विभक्तेराकारादेशः।] (अनया) एतया पाविकया (धारया) आनन्दधारया (पवस्व) स्तोतारं मां पुनीहि। (युजम्) सखायं माम् (वाजेषु) जीवनसंग्रामेषु (चोदय) विजयाय प्रेरय ॥३॥

    भावार्थः

    स्तुतः परमात्मा स्तोतॄनानन्दधारया संसिच्य बलं प्रदाय देवासुरसंग्रामेषु विजयिनं कुरुते ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६५।१२।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, the Remover of all privations, with this flow of divine pleasure, especially worthy of enjoyment, manifest Thyself in the heart, and good a Yogi with multifarious knowledge !

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    Meaning

    Invoked and moved by this earnest and vibrant adoration, pray bless us with this shower of purity, peace and bliss. You are the destroyer of want and suffering. Pray inspire, strengthen and fortify the friend, your instrument, in the battles of life. (Rg. 9-65-12)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अया अनया) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! આ પ્રગતિમય, (विपा धारया) સ્તુતિરૂપ વાણી દ્વારા (चित्तः) સંચેતિત થઈને-પ્રસન્ન થઈને અમારી તરફ કૃપાવાન બનીને (हरिः) દુઃખ અપહરણકર્તા સુખ આહરણકર્તા બનીને (युजम्) યુક્ત-મને તારાથી યુક્ત બનેલાને (वाजेषु) અમૃતઅન્ન ભોગોને માટે (चोदय) પ્રેરિત કર. (૩)


     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા પ્રગતિમય સ્તુતિરૂપ વાણી દ્વારા કૃપાવાન બનીને દુઃખનાશન કર્તા, સુખદાયક કર્તા બનીને પોતાની સાથે યુક્ત-યોગી ઉપાસકને અમૃત ભોગોને માટે પ્રેરિત કરે છે. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्तुत्य परमात्मा स्तोत्यांना आनंदधारांनी सिंचित करून बल देतो व देवासुर संग्रामात विजयी करतो ॥३॥

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