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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 906
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    आ꣡ प꣢वमान सुष्टु꣣तिं꣢ वृ꣣ष्टिं꣢ दे꣣वे꣢भ्यो꣣ दु꣡वः꣢ । इ꣣षे꣡ प꣢वस्व सं꣣य꣡त꣢म् ॥९०६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । प꣣वमान । सुष्टुति꣢म् । सु꣣ । स्तुति꣢म् । वृ꣣ष्टि꣢म् । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । दु꣡वः꣢꣯ । इ꣣षे꣢ । प꣣वस्व । सं꣡यत꣢म् । स꣣म् । य꣡त꣢꣯म् ॥९०६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ पवमान सुष्टुतिं वृष्टिं देवेभ्यो दुवः । इषे पवस्व संयतम् ॥९०६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । पवमान । सुष्टुतिम् । सु । स्तुतिम् । वृष्टिम् । देवेभ्यः । दुवः । इषे । पवस्व । संयतम् । सम् । यतम् ॥९०६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 906
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे (पवमान) चित्तशोधक परमेश्वर ! आप (देवेभ्यः) हम प्रकाशयुक्त उपासकों के लिए (इषे) अभीष्टसिद्धि के अर्थ (सुष्टुतिम्) शुभ स्तुतियुक्त अर्थात् सुप्रशंसित (वृष्टिम्) आनन्दवर्षा को, (दुवः) सेवा की भावना को और (संयतम्) संयम की भावना को (आ पवस्व) प्राप्त कराइये ॥३॥

    भावार्थ

    उपासकों को परमेश्वर की उपासना से परम आनन्द, दीनों की सेवा में रस और विषयों से मन तथा इन्द्रियों का निग्रह प्राप्त होता है ॥३॥ इस खण्ड में परमेश्वर का तथा उससे प्राप्त होनेवाले ब्रह्मानन्द का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ पञ्चम अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (पवमान) हे धारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू (देवेभ्यः) मुमुक्षु उपासकों के लिए (सुष्टुतिं वृष्टिम्-आदुवः) उत्तम स्तुति वाली जिसके लिए श्रद्धा पवित्रभाव से स्तुति की, उस सुखवृष्टि को आराधित कर,*48 सिद्ध कर। (इषे संयतं पवस्व) तेरे दर्शन समागम की इच्छा के निमित्त स्वयं को सम्यक् नियत स्थिर कर॥३॥

    टिप्पणी

    [*48. “दुवस्यती राध्नोतिकर्मा” [निरु॰ १०.२०] यको लुक् छान्दसः।]

    विशेष

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    विषय

    काम-धेनु

    पदार्थ

    प्रभु कहते हैं कि – हे (पवमान) = अपने जीवन को पवित्र करनेवाले भृगो ! तू (इषे) =अपनी इच्छाओं व इच्छापूर्ति के लिए [इष् इच्छायाम्] (आपवस्व) = निम्न साधनों को प्राप्त हो - १. (सुष्टुितिम्) = उत्तम स्तुति को । तू सदा प्रभु-स्तवन करनेवाला तो बन ही । लोक में भी सदा स्तुति के ही शब्दों का उच्चारण कर, कभी किसी की निन्दा मत कर । २. (देवेभ्यः वृष्टिम्) = दिव्य गुणवालों के लिए वर्षा को । तू सदा सत्पात्रों में अपने धन की वर्षा करनेवाला बन । तू दान की रुचिवाला हो । ३. (दुवः) = प्रार्थना को। तेरा जीवन प्रार्थनामय हो । यह प्रार्थना तुझे सदा विनीत व निरभिमान बनाएगी। ४. (संयतम्) = तू संयत जीवन को प्राप्त कर अथवा तू उत्तम उद्योगवाला हो । संयम तथा समुद्योग को तू अपने जीवन में धारण कर। ['संयत' संयम्+त; या सं+यत्] एवं, 'स्तुति, दान, प्रार्थना, संयम व समुद्योग' ये वस्तुएँ मिलकर तेरे लिए उस कामधेनु के समान बन जाएँगी जो तेरी सब कामनाओं को पूर्ण कर देगी।

    भावार्थ

    हमारा जीवन 'स्तुति, दान, प्रार्थना, संयम व समुद्योग' मय हो ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (पवमान) चित्तशोधक परमेश्वर ! त्वम् (देवेभ्यः) प्रकाशयुक्तेभ्यः उपासकेभ्यः अस्मभ्यम् (इषे) अभीष्टसिद्धये (सुष्टुतिम्) शोभनस्तुतियुक्ताम्,सुप्रशंसितामित्यर्थः (वृष्टिम्) आनन्दवर्षाम्, (दुवः) परिचर्याभावनां (संयतम्) संयमभावनां च। [संपूर्वात् यम उपरमे धातोः क्विपि रूपम्।] (आ पवस्व) आगमय ॥३॥

    भावार्थः

    उपासकैः परमेश्वरोपासनया परमानन्दो, दीनानां सेवायां रसो, विषयेभ्यो मनस इन्द्रियाणां च निग्रहः प्राप्यते ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमेश्वरस्य ततः प्राप्यमाणस्य ब्रह्मानन्दस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन सह संगतिरस्ति ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६५।३।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Refulgent, Purifying God, send regularly nice rain in time, for the Yajna of the sages, and for food !

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    Meaning

    O lord pure and purifying, come to accept our joint song of adoration and homage and bring us the shower of your kindness and grace, honour and excellence for the sustenance and advancement of the generous nobilities of humanity. (Rg. 9-65-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पवमान) હે ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! તું (देवेभ्यः) મુમુક્ષુ ઉપાસકોને માટે (सुष्टुतिं वृष्टिम् आदुवः) ઉત્તમ સ્તુતિવાળી જેના માટે શ્રદ્ધા પવિત્રભાવથી સ્તુતિ કરી, તે સુખવૃષ્ટિને આરાધિત કર, સિદ્ધ કર (इषे संयतं पवस्व) તારા દર્શન સમાગમની ઇચ્છાને માટે સ્વયંને નિયત સમ્યક્ સ્થિર કર. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या उपासनेने उपासकांना अत्यंत आनंद, दीन लोकांच्या सेवेत रस व विषयांपासून मन व इंद्रियांचा निग्रह होतो. ॥३॥

    टिप्पणी

    या खंडात परमेश्वराचे व त्यापासून प्राप्त होणाऱ्या ब्रह्मानंदाचे वर्ण असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे

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