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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 95
ऋषिः - पायुर्भारद्वाजः
देवता - अग्निः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
3
प्र꣡त्य꣢ग्ने꣣ ह꣡र꣢सा꣣ ह꣡रः꣢ शृणा꣣हि꣢ वि꣣श्व꣢त꣣स्प꣡रि꣢ । या꣣तुधा꣡न꣢स्य र꣣क्ष꣢सो꣣ ब꣢लं꣣꣬ न्यु꣢꣯ब्ज वी꣣꣬र्यम्꣢꣯ ॥९५॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣡ति꣢꣯ । अ꣣ग्ने । ह꣡र꣢꣯सा । ह꣡रः꣢꣯ । शृ꣣णाहि꣢ । वि꣣श्व꣡तः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । या꣣तुधा꣡न꣢स्य । या꣣तु । धा꣡न꣢꣯स्य । र꣣क्ष꣡सः꣢ । ब꣡ल꣢꣯म् । नि । उ꣣ब्ज । वी꣣र्य꣢꣯म् ॥९५॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रत्यग्ने हरसा हरः शृणाहि विश्वतस्परि । यातुधानस्य रक्षसो बलं न्युब्ज वीर्यम् ॥९५॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रति । अग्ने । हरसा । हरः । शृणाहि । विश्वतः । परि । यातुधानस्य । यातु । धानस्य । रक्षसः । बलम् । नि । उब्ज । वीर्यम् ॥९५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 95
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 10;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में राक्षसों के विनाश के लिए परमेश्वर, जीवात्मा, राजा, सेनापति और आचार्य से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (अग्ने) ज्योतिर्मय परमेश्वर, मेरे अन्तरात्मा, राजा, सेनापति और आचार्यप्रवर ! आप (यातुधानस्य) यातना देनेवाले (रक्षसः) पापरूप राक्षस के तथा पापी दुष्ट शत्रु के (बलम्) सैन्य को, और (वीर्यम्) पराक्रम को (न्युब्ज) निर्मूल कर दीजिए। (विश्वतः परि) सब ओर से (तस्य) उसके (हरः) हरणसामर्थ्य, क्रोध और तेज को (हरसा) अपने हरणसामर्थ्य, मन्यु और तेज से (प्रतिशृणाहि) विनष्ट कर दीजिए ॥५॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥५॥
भावार्थ
सब मनुष्यों का कर्त्तव्य है कि वे परमेश्वर की उपासना से, अपने अन्तरात्मा को जगाने से, राजा और सेनापति की सहायता से तथा गुरुओं के सदुपदेश-श्रवण से, अपने हृदय और समाज में से सब पापों को तथा राष्ट्र के सब शत्रुओं को निर्मूल करें ॥५॥
पदार्थ
(अग्ने) हे पापतापक दोषशोधक अज्ञानान्धकार निवारक परमात्मन्! तू (हरसा) अपने तेज से (यातुधानस्य रक्षसः) मेरे प्रति यातना—पीड़ा धारण करने वाले तथा जिससे हम अपनी रक्षा करते हैं ऐसे पाप रोग दोष के (हरः) ज्वलन वेग, बल को (विश्वतः परि) सब ओर से सब प्रकार से सर्वथा (प्रति शृणाहि) प्रतिहिंसित कर दे—प्रतिरोध से नष्ट कर दे (बलं वीर्यं न्युब्ज) प्रबल प्रभाव को भी पूर्वरूप में ऋजु—निर्बल कर दे “उब्ज आर्जवे” [तुदादि॰]।
भावार्थ
परमात्मा आत्मसमर्पी उपासकों के पाप रोग दोष एवं उनके पूर्वरूपों को अपने तेज से सर्वथा अकिंचित्कर—निर्बल कर देता है॥५॥
विशेष
ऋषिः—पायुः (परमात्मशरण ले अपने को पाप दुःखाज्ञान से सुरक्षित रखने वाला उपासक)॥<br>
विषय
तीन असुरों का संहार
पदार्थ
(अग्ने)=मुझे उन्नत अवस्था में प्राप्त करानेवाले प्रभो! (हरसा) [हरस:] =मेरा हरण करनेवाले, मुझे अपने-आपे में न रहने देनेवाले क्रोध नामक असुर के (हरः) = क्रोध को (विश्वत: परि)=सब ओर से, सब प्रकार (प्रतिशृणाहि)=नष्ट कर दीजिए। मैं क्रोध को अपने से दूर रख सकूँ । इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि में कहीं भी इसका निवास न हो। इसके प्रबल होते ही मेरा सारा शरीर काँपने लगता है और मैं स्वस्थ नहीं रहता। मुझे एक सम्मोह-सा हो जाता है और मैं सुध-बुध भूल जाता हूँ। संक्षेप में, यह मुझे हर ले जाता है और इस प्रकार 'हरस' इस सार्थक नामवाला होता है ।
हे प्रभो! आप मेरे इस क्रोध को तो दूर कीजिए ही और (यातु - धानस्य) = [यातु- पीड़ा ] पीड़ा का आधान करनेवाले काम नामक असुर के (बलम्) - बल को भी (न्युब्ज) - झुका दीजिए | (काम) = इच्छा पूर्ण नहीं होती और पूर्ण न होती हुई मनुष्य को पीड़ित करती है। पूर्ण होकर भी वासना मनुष्य को जीर्ण करके दुःखी बना डालती है। इसी से काम को यहाँ यातुधान= पीड़ा देनेवाला कहा गया है। इसका बल व वेग कम होगा तभी हमारा कल्याण होगा।
हे प्रभो! इस यातुधान को दूर करने के साथ ही (रक्षसः) = [र+क्ष] अपने रमण [मौज] के लिए औरों के क्षय की वृत्ति - लोभ की (वीर्यम्)=शक्ति को भी (न्युब्ज) कुचल दो। काम, क्रोध व लोभ मनुष्य की दुर्गति का कारण बनते हैं - सुगति का नहीं । इनकी समाप्ति करके ही मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और इस मन्त्र का ऋषि ‘पायुः’=अपनी रक्षा करनेवाला बनता है। इनके समाप्त करने पर ही उसकी शक्ति में भी वृद्धि होगी और वह अपने में शक्ति भरनेवाला 'भरद्वाज' कहलाएगा [ वाज= शक्ति ] |
भावार्थ
काम, क्रोध तथा लोभ को समाप्त कर हम अपनी रक्षा करें और शक्तिशाली बनें।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे अग्ने ! ( यातुधानस्य ) = हिंसक दुष्ट पुरुष का ( विश्वतः परि ) = समस्त संसार पर जो ( हरः ) = उनके प्राण हरण करने वाला अत्याचार कारी बल है उसको ( हरसा ) = दुष्ट के प्राण निकालने वाले बल, क्रोध, मन्यु से ( शृणाहि ) = नाश कर । और ( रक्षसः ) = दुष्ट राक्षस के ( बलं ) = बल, सेनाबल, ( वीर्यं ) = सामर्थ्य और बीज को भी ( न्युब्ज ) भून डाल ।
टिप्पणी
९५–‘शुणीहि' इहि इति ऋ० । 'विरुज वीर्यम्' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - पायु: ।
छन्द: - अनुष्टुप् ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ रक्षसां विनाशाय परमेश्वरो, जीवात्मा, नृपतिः सेनापतिराचार्यश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (अग्ने) ज्योतिर्मय परमेश्वर, मदीय अन्तरात्मन्, राजन्, सेनापते आचार्य वा ! त्वम् (यातुधानस्य) यातनाऽऽधायकस्य, पीडकस्य (रक्षसः) पापरूपस्य राक्षसस्य, पापात्मनः दुष्टशत्रोर्वा (बलम्) सैन्यम्, (वीर्यम्) पराक्रमं च (न्युब्ज२) अधोमुखं पातय, निर्मूलय। निपूर्वः उब्ज आर्जवे धातुरधोमुखीकरणे वर्तते। (विश्वतः परि) सर्वतः। परिः पञ्चम्यर्थानुवादी। तस्य (हरः) हरणसामर्थ्यं, क्रोधं, तेजो वा। हृञ् हरणे, असुन्। हरः इति क्रोधनाम। निघं० २।१३। ज्योती रज उच्यते इति निरुक्तम्। ४।१९।३९। (हरसा) स्वकीयेन हरणसामर्थ्येन, मन्युनाम्ना ख्यातेन क्रोधेन, तेजसा वा (प्रतिशृणाहि) प्रतिजहि। हिंसायाम्, क्र्यादिः। शृणीहि इति प्राप्ते ईत्वाभावश्छान्दसः ॥५॥ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥५॥
भावार्थः
सर्वेषां मनुष्याणां कर्तव्यमस्ति यत्ते परमेश्वरस्योपासनेन, स्वान्तरात्मनः प्रबोधनेन, नृपतेः सेनापतेश्च साहाय्येन, गुरूणां च सदुपदेशश्रवणेन स्वहृदयात् समाजाच्च सर्वाणि पापानि, राष्ट्रस्य सर्वान् रिपूंश्च निर्मूलयेयुः ॥५॥
टिप्पणीः
१. ऋ० १०।८७।२५, देवता अग्नी रक्षोहा। शृणीहि विश्वतः प्रति, बलं विरुज वीर्यम् इति द्वितीय-तृतीय-पादयोः पाठः। २. न्युब्ज आत्मीयेन बलेन ऋजुं कुरु—इति वि०। न्युब्ज नितरां बाधस्व, उब्जतिर्वधकर्मा—इति भ०। निःशेषेण रुज भञ्जयेत्यर्थः—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, demolish with Thy righteous indignation, the might of a violent sinner in the world. Break down the strength and vigour of a devil.
Meaning
Agni, universal spirit of light and fire, creator, protector and destroyer, refulgent ruler of nature, life and society, with your love and passion for life and goodness and with your wrath against evil, sabotage and negativity, seize, cripple and all round destroy the strength, vigour, valour and resistance of the negative and destructive forces of evil and wickedness, lurking, working and persisting in nature, life and society. Save the good and destroy the demons. (Rg. 10-87-25)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) હે પાપતાપક , દોષશોધક , અજ્ઞાન - અંધકાર નિવારક પરમાત્મન્ ! તું (हरसा) પોતાના તેજથી (यातुधानस्य रक्षसः) મને યાતના પીળા ધારણ કરનાર તથા જેનાથી અમે અમારી રક્ષા કરીએ છીએ એવા પાપ , રોગ , દોષને (हरः) જ્વલનબેગ , બળને (दिश्वतः परि) સર્વત્રથી , સર્વરીતે , સર્વથા (प्रति श्रृणाहि) પ્રતિહિંસિત કરી નાખ , પ્રતિરોધ દ્વારા નષ્ટ કરી નાખ. (बल वीर्यं न्युब्ज) પ્રબળ પ્રભાવને પણ પૂર્વરૂપમાં ઋજુ - નિર્બળ કરી નાખ. (૫)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મા આત્મસમર્પી ઉપાસકોનાં પાપ , રોગ , દોષ અને તેના પૂર્વરૂપોને પોતાનાં તેજથી સર્વથા અકિંચિત્કર - નિર્બળ કરી નાખે છે. (૫)
उर्दू (1)
Mazmoon
ہماری راکھشسی ورتیوں کا سنگھار کرو
Lafzi Maana
(اگنے) ہے برہم اگنی (وشوتہ پری) سب طرف سے سب طرح سے (یاتُودھانسیہ) یاتنا دینے والے یا مصیبت برپا کرنے والے (رکھسا) راکھشسی بھاوؤں یا کرموں کی طرف (ہرہ) لے جانے والی طاقتوں کو (ہرسا) اپنی سنگھارک شکتی سے (پرتی شِرناہی) تحس نحس کر دیجئے۔ اور اس کے بل ویریہ کو (نیوبج) کمزور کرو نشٹ کر دیویں۔
Tashree
کام کرودھ موہ لوبھ ہمیں دشمن بن کر جب تنگ کریں،
آپ اُسی کھشن اپنے تیج سے اِن سب کا بل بھنگ کریں۔
मराठी (2)
भावार्थ
सर्व माणसांचे हे कर्तव्य आहे, की परमेश्वराच्या उपासनेने, आपल्या अंतरात्म्याला जागृत करण्याने, राजा व सेनापतीच्या साह्याने व गुरूंचा सदुपदेश श्रवण करण्याने, आपल्या हृदयातील व समाजातील सर्व पाप व राष्ट्राच्या सर्व शत्रूंचे निर्मूलन करावे. ॥५॥
विषय
पुढील मंत्रात राक्षसांच्या विनाशासाठी परमेश्वर, जीवात्मा, सेनापती आणि आचार्य या सर्वांना प्रार्थना केली आहे -
शब्दार्थ
हे (अग्ने) ज्योतिर्मय परमेश्वर, हे माझ्या जीवात्मा, हे राजन् हे सेनापती आणि हे आचार्यप्रवर, आपण (यातु धानम्) यातना देणाऱ्या (रक्षसः) पापरूप राक्षसाच्या आणि पापी दुष्ट शत्रूच्या (बलम्) सैन्याला आणि (वीर्यम्) त्याच्या पराक्रमाला (न्युब्ज) निर्मूळ करून टाका. तसेच (तस्य) त्या पापाचे वा शत्रूचे जे (हरः) हरण- सामर्थ्य आहे, त्याचा जो क्रोध वा तेज आहे, त्याला (विश्वतः) सर्वतः आपल्या (हरसा) हरण - सामर्थ्यने मन्यूने व तेजाने (प्रतिशृगाहि) निष्प्रभ करा. ।। ५।।
भावार्थ
सर्व मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की परमेश्वराच्या उपासनेद्वारे, आपल्या अंतरात्म्यास जागृत केल्याने, राजा आणि सेनापतीच्या साह्याने तसेच गुरूच्या उपदेशाद्वारे आपल्या हृदयातून आणि समाजातून सर्व पापत्रावना, पापकृत्ये आणि राष्ट्राच्या सर्व शत्रूंना निर्मूळ करावे. सर्वथा नष्ट करावे. ।। ५।।
विशेष
या मंत्रात अर्थश्लेष अलंकार आहे.
तमिल (1)
Word Meaning
அக்னியே! உன் தேஜசால் அரக்கனின் அழிக்கும் பலத்தை எங்கும் நாசஞ் செய்யவும். ராட்சதனின் வீரத்தையும் வீழ்த்தவும்.
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