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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 987
    ऋषिः - उरुचक्रिरात्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    पा꣣तं꣡ नो꣢ मित्रा पा꣣यु꣡भि꣢रु꣣त꣡ त्रा꣢येथाꣳ सुत्रा꣣त्रा꣢ । सा꣣ह्या꣢म꣣ द꣡स्यू꣢न् त꣣नू꣡भिः꣢ ॥९८७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पात꣢म् । नः꣣ । मित्रा । मि । त्रा । पायु꣡भिः꣢ । उ꣣त꣢ । त्रा꣣येथाम् । सु꣣त्रात्रा꣢ । सु꣣ । त्रात्रा꣢ । सा꣣ह्या꣡म꣢ । द꣡स्यू꣢꣯न् । त꣣नू꣡भिः꣢ ॥९८७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पातं नो मित्रा पायुभिरुत त्रायेथाꣳ सुत्रात्रा । साह्याम दस्यून् तनूभिः ॥९८७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पातम् । नः । मित्रा । मि । त्रा । पायुभिः । उत । त्रायेथाम् । सुत्रात्रा । सु । त्रात्रा । साह्याम । दस्यून् । तनूभिः ॥९८७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 987
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर उनसे प्रार्थना है।

    पदार्थ

    हे (मित्रा) मित्रभूत परमात्मा-जीवात्मा, राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री, अध्यापक-उपदेशक वा प्राण-अपानो ! तुम (पायुभिः) पालन-साधनों से (नः) हमारी (पातम्) पालना करो। (उत) और (सुत्रात्रा) उत्तम त्राण करनेवाले गुण-समूह से (त्रायेथाम्) हमारा त्राण करो। तुम्हारी सहायता से हम (तनूभिः) शरीरों द्वारा (दस्यून्) क्षयकारी आन्तरिक तथा बाह्य शत्रुओं को (सासह्याम) पराजित कर देवें ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा-जीवात्मा, राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री, अध्यापक-उपदेशक और प्राण-अपान की सहायता पाकर पुरुषार्थ करके हम सदा ही सुरक्षित हो सकते हैं ॥३॥

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    पदार्थ

    (मित्रा) हे मित्र—प्रेरक तथा वरुण—वरने वाले परमात्मन्! (नः) हमारी (पायुभिः) रक्षा साधनों से (पातम्) दोषों से बचाओ (उत) तथा (सुत्रात्रा) उत्तम त्राणसाधन से (त्रायेथाम्) त्राण कर (तनूभिः) अपने अङ्गों से (दस्यून्) क्षय करने वाले दोषों को (साह्याम) सहन करें—दबा सकें॥३॥

    विशेष

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    विषय

    दस्युओं का पराभव

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र में ‘मित्रावरुणा' को 'मित्रा' शब्द से ही कह दिया है, क्योंकि अपान भी अन्ततः प्राण का ही एक रूप है। शरीर में प्राण ही विविध रूपों में कार्य करता हुआ भिन्न-भिन्न नामोंवाला होता है। १. हे (मित्रा) = प्राणापानो ! (नः) = हमें (पायुभिः) = अपने रक्षणों से (पातम्) = सुरक्षित करो । २. (उत) = और हे (सुत्रात्रा) = उत्तमता से रोगों से त्राण करनेवाले प्राणापानो ! हमें (त्रायेथाम्) = आप सब रोगों से बचाओ। ३. आपकी कृपा से हम (तनूभिः) = अपने शरीरों से- शरीरों के रक्षणों के उद्देश्य से (दस्यून्) = काम- क्रोधादि नाशक वृत्तियों को (साह्याम) = पूर्णरूप से पराभूत करें । काम-क्रोधादि को जीतकर ही हम अपने स्थूलशरीर को रोगों से और सूक्ष्मशरीर को कुविचारों से बचा पाते हैं । प्राणापान की साधना से हम नीरोगता प्राप्त करके तथा शक्ति व प्रकाश से युक्त होकर जीवन

    में प्राणापान की ही भाँति निरन्तर कार्य करनेवाले 'उरुचक्रि' बनते हैं और राग, द्वेषादि मल तथा बुद्धि की कुण्ठतारूप तीनों दोषों से दूर होकर 'आत्रेय' होते हैं । एवं, प्राणापान की कृपा से हम 'उरुचक्रि आत्रेय' बन पाते हैं ।

    भावार्थ

    प्राणापान की साधना हमें 'काम, क्रोध, लोभ' से ऊपर उठाकर 'अ-त्रि' बनने के योग्य करे ।

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    विषय

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    भावार्थ

    आप दोनों (मित्रा) हमारे स्नेह करने वाले होकर (पायुभिः) अपने रक्षकों या रक्षा साधनों से रक्षा साधनों से (उत) और (सुत्रात्रा) उत्तम त्राणकर्त्ता पालकों द्वारा (नः) हमें (त्रायेयां) बचावें। हम उत्त हम (तनूभिः) अपने शरीरों द्वारा (दस्यून्) नाशकारी पदार्थों और पुरुषों को (सासह्याम) बलपूर्वक पराजित करें। मित्र और वरुण से प्राण और अपान, सभापति और सेनापति, राजा और मन्त्री समझने चाहिये।

    टिप्पणी

    ‘पातं नो रुद्रा’ तुर्यापदस्य इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—त्रय ऋषिगणाः। २ काश्यपः ३, ४, १३ असितः काश्यपो देवलो वा। ५ अवत्सारः। ६, १६ जमदग्निः। ७ अरुणो वैतहव्यः। ८ उरुचक्रिरात्रेयः ९ कुरुसुतिः काण्वः। १० भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा १२ मनुराप्सवः सप्तर्षयो वा। १४, १६, २। गोतमो राहूगणः। १७ ऊर्ध्वसद्मा कृतयशाश्च क्रमेण। १८ त्रित आप्तयः । १९ रेभसूनू काश्यपौ। २० मन्युर्वासिष्ठ २१ वसुश्रुत आत्रेयः। २२ नृमेधः॥ देवता—१-६, ११-१३, १६–२०, पवमानः सोमः। ७, २१ अग्निः। मित्रावरुणौ। ९, १४, १५, २२, २३ इन्द्रः। १० इन्द्राग्नी॥ छन्द:—१, ७ नगती। २–६, ८–११, १३, १६ गायत्री। २। १२ बृहती। १४, १५, २१ पङ्क्तिः। १७ ककुप सतोबृहती च क्रमेण। १८, २२ उष्णिक्। १८, २३ अनुष्टुप्। २० त्रिष्टुप्। स्वर १, ७ निषादः। २-६, ८–११, १३, १६ षड्जः। १२ मध्यमः। १४, १५, २१ पञ्चमः। १७ ऋषभः मध्यमश्च क्रमेण। १८, २२ ऋषभः। १९, २३ गान्धारः। २० धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तौ प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (मित्रा) सुहृद्भूतौ मित्रावरुणौ परमात्मजीवात्मानौ राष्ट्रपतिप्रधानमन्त्रिणौ अध्यापकोपदेशकौ प्राणापानौ वा ! युवाम् (पायुभिः) पालनसाधनैः [पान्ति एभिरिति पायवः। पा रक्षणे धातोः ‘कृवापा०’। उ० १।१ इत्युण् प्रत्ययः।] (नः) अस्मान् (पातम्) पालयतम्। (उत) अपि च (सुत्रात्रा) सुत्राणकर्त्रा गुणगणेन (त्रायेथाम्) रक्षतम्। युवयोः साहाय्येन वयम् (तनूभिः) शरीरैः (दस्यून्) क्षयकारिणः आन्तरान् बाह्यांश्च शत्रून् (सासह्याम) पाराजयेमहि ॥३॥२

    भावार्थः

    परमात्मजीवात्मनो राष्ट्रपतिप्रधानमन्त्रिणोरध्यापकोपदेशकयोः प्राणापानयोश्च साहाय्यं प्राप्य पुरुषार्थं कृत्वा वयं सदैव सुरक्षिता भवितुं शक्नुमः ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ५।७०।३, ‘मित्रा’ इत्यत्र ‘रुद्रा’, ‘सासह्याम’ इत्यत्र ‘तु॒र्य्याम॒’ इति पाठः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं सभासेनेशविषये व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ye Mitra and Varuna, guard us with Your guards, save us with Your devices of safety May we subdue by ourselves the feelings of violence.

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    Meaning

    O Mitra and Varuna destroyers of hate and violence, lovers and dispensers of justice and rectitude, with all your care and guidance, protect and promote us. Save us, O saviours against evil in our person and social institutions so that we may get over all forces of negativity, crime and destruction. (Rg. 5-70-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मित्रा) હે મિત્ર-પ્રેરક તથા વરુણ-વરનાર પરમાત્મન્ ! (नः) અમને (पायुभिः) રક્ષાનાં સાધનોથી (पातम्) દોષોથી બચાવો. (उत सुत्रात्रा) શ્રેષ્ઠ રક્ષાનાં સાધનોથી (त्रायेथाम्) રક્ષા કરો (तनूभिः) પોતાનાં અંગોથી (दस्यून्) ક્ષય કરનારા દોષોને (साह्याम) સહન કરીએ-સામનો-તિરસ્કાર કરીએ. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा-जीवात्मा, राष्ट्रपती - प्रधानमंत्री, अध्यापक-उपदेशक व प्राण-अपान यांचे साह्य घेऊन पुरुषार्थ करून आम्ही सदैव सुरक्षित राहू शकतो. ॥३॥

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