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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 996
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
इ꣡षं꣢ तो꣣का꣡य꣢ नो꣣ द꣡ध꣢द꣣स्म꣡भ्य꣢ꣳ सोम वि꣣श्व꣡तः꣢ । आ꣡ प꣢वस्व सह꣣स्रि꣡ण꣢म् ॥९९६॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡ष꣢꣯म् । तो꣣का꣡य꣢ । नः꣣ । द꣡ध꣢꣯त् । अ꣣स्म꣢भ्य꣢म् । सो꣣म । विश्व꣡तः꣢ । आ । प꣣वस्व । सहस्रि꣡ण꣢म् ॥९९६॥
स्वर रहित मन्त्र
इषं तोकाय नो दधदस्मभ्यꣳ सोम विश्वतः । आ पवस्व सहस्रिणम् ॥९९६॥
स्वर रहित पद पाठ
इषम् । तोकाय । नः । दधत् । अस्मभ्यम् । सोम । विश्वतः । आ । पवस्व । सहस्रिणम् ॥९९६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 996
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे (सोम) परमैश्वर्यशालिन् जगदीश्वर ! आप (नः) हमारे (तोकाय) सन्तान के लिए और (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (विश्वतः) सब ओर से (इषम्) अन्न तथा विज्ञान (दधत्) प्रदान करते हुए (सहस्रिणम्) हजार संख्यावाले आन्तरिक तथा बाह्य ऐश्वर्य को (आ पवस्व) प्राप्त कराइये ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर के ध्यान से बल पाकर मनुष्य सारे विशाल दिव्य एवं भौतिक ऐश्वर्य को पा सकता है ॥३॥
पदार्थ
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! (नः-तोकाय-इषं दधत्) हमारे सन्तान के लिए लौकिक कमनीय वस्तु को धारण कराता हुआ (अस्मभ्यं सहस्रिणं विश्वतः-आपवस्व) हम उपासकों के लिए सहस्रगुणित—सहस्रों में ऊँची कमनीय वस्तु मोक्ष-ऐश्वर्य सब प्रकार से समस्त क्रियाकलाप के फलरूप प्राप्त करा। मोक्ष-सुख या अध्यात्मसम्पदा तभी प्राप्त होती है जब पुत्र की लौकिक कमनीय निर्वाहक वस्तु पिता प्रदान कर जावे उसके लिए प्रार्थना है॥३॥
विशेष
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विषय
सबल सन्तान व शतगुणित शक्ति
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (नः) = हमारे (तोकाय) = सन्तानों के लिए (इषम्) = शक्ति (दधत्) = धारण करते हुए (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (सहस्त्रिणम्) = शतगुणित बल को (विश्वतः) = शरीर में सब ओर, अर्थात् अङ्गप्रत्यङ्ग में (आपवस्व) प्राप्त कराइए ।
वस्तुतः सोम की ऊर्ध्वगति व संयम से तथा केवल सन्तानार्थ उसके विनियोग से जहाँ सन्तानें बड़ी शक्तिशाली होती हैं, वहाँ माता-पिता के शरीर भी जीवनभर सबल अङ्गोंवाले बने रहते हैं।
भावार्थ
सोम-संयम के द्वारा हम सबल सन्तानोंवाले तथा अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शतगुणित शक्तिवाले बनें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (सोम) परमैश्वर्यशालिन् जगदीश्वर ! त्वम् (नः) अस्माकम् (तोकाय) सन्तानाय (अस्मभ्यम्)अस्मदर्थं च (विश्वतः) सर्वतः (इषम्) अन्नं विज्ञानं च (दधत्) प्रयच्छन् सन् (सहस्रिणम्) सहस्रसंख्याकम् आन्तरं बाह्यं च ऐश्वर्यम् (आ पवस्व) आ प्रापय ॥३॥
भावार्थः
परमेश्वरस्य ध्यानेन बलं प्राप्य मनुष्यः सर्वमपि दिव्यं भौतिकं चैश्वर्यं लब्धुं शक्नोति ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६५।२१।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, bestowing food upon our progeny from every side, pour on us riches thousand fold !
Meaning
O Soma, bearing a thousandfold gifts of food, energy, knowledge and will of initiative and assertion from all sides of the world, pray flow to bless us and our future generations with the power and peace of divinity. (Rg. 9-65-21)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (नः तोकाय इषं दधत्) અમારા સંતાનો માટે લૌકિક ઇચ્છનીય-સુંદર વસ્તુઓને ધારણ કરાવતાં (अस्मभ्यं सहस्रिणं विश्वतः आपवस्व) અમને ઉપાસકોને માટે હજાર ગુણી-હજારો પણ શ્રેષ્ઠતમ સુંદર વસ્તુ મોક્ષ-ઐશ્વર્ય સર્વ પ્રકારથી સમસ્ત ક્રિયાકલાપના ફળરૂપ પ્રાપ્ત કરાવ. મોક્ષ-સુખ અથવા અધ્યાત્મ સંપદા ત્યારે જ પ્રાપ્ત થાય છે, જ્યારે પુત્રની લૌકિક શ્રેષ્ઠ ઇચ્છનીય નિર્વાહક વસ્તુ પિતા પ્રદાન કરી જાય. તેને માટે પ્રાર્થના છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराचे ध्यान करून बल प्राप्त करून माणूस संपूर्ण विशाल दिव्य व भौतिक ऐश्वर्य प्राप्त करू शकतो. ॥३॥
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