अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 6
ऋषिः - भृगुः
देवता - आञ्जनम्
छन्दः - एकावसाना विराण्महाबृहती
सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
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अ॒ग्निर्मा॒ग्निना॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः। मा॒। अ॒ग्निना॑। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्माग्निनावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। मा। अग्निना। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(अग्निः) ज्ञानवान् [परमेश्वर] (मा) मुझे (अग्निना) ज्ञान के साथ (अवतु) बचावे, (प्राणाय) प्राण के लिये, (अपानाय) अपान के लिये, (आयुषे) जीवन के लिये, (वर्चसे) प्रताप के लिये, (ओजसे) पराक्रम के लिये, (तेजसे) तेज के लिये, (स्वस्तये) स्वस्ति [सुन्दर सत्ता] के लिये और (सुभूतये) बड़े ऐश्वर्य के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥६॥
भावार्थ
मनुष्य परमात्मा की उपासनापूर्वक शारीरिक क्रान्ति और आत्मिक उन्नति करके अपना बल, पराक्रम आदि बढ़ावें ॥६॥
टिप्पणी
६−(अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (मा) माम् (अग्निना) ज्ञानेन (अवतु) रक्षतु (प्राणाय) प्राणस्थैर्याय (अपानाय) अपानस्वास्थ्याय (आयुषे) श्रेष्ठजीवनाय (वर्चसे) प्रतापाय (ओजसे) पराक्रमाय (तेजसे) शरीरकान्तिवर्धनाय (स्वस्तये) कल्याणाय। सुसत्ताप्राप्तये (सुभूतये) शोभनायै सम्पदे (स्वाहा) सुवाणी भवतु ॥
भाषार्थ
(अग्निः) ज्ञानाग्नि-सम्पन्न अधिकारी (अग्निना) ज्ञानाग्नि अर्थात् ज्ञानप्रकाश द्वारा (मा) मुझ राजा की (अवतु) रक्षा करे। ताकि मैं (प्राणाय अपानाय) प्राण और अपान की स्वस्थता के लिए, (आयुषे) दीर्घायु के लिए, (वर्चसे) दीप्ति के लिए, (ओजसे) पराक्रम के लिए, (तेजसे) प्रताप के लिए, (स्वस्तये) कल्याण के लिए, तथा (सुभूतये) उत्तम विभूति के लिए (स्वाहा) अपने आपको समर्पित करूँ।
टिप्पणी
[मा= इस पद द्वारा राजा निज व्यक्तित्व का निर्देश नहीं कर रहा है, अपितु प्रजाजन में आत्म-भावना द्वारा प्रजा का निर्देश कर रहा है। और प्रजाजन के प्राणापान के स्वास्थ्य आदि के लिए वह अपने व्यक्तित्व को समर्पित करने का निर्देश कर रहा है। जैसे कि कहा है—“विशो मेऽङ्गानि सर्वतः” (यजुः० २०.८) अर्थात् राष्ट्र मे सर्वत्र फैली हुई प्रजाएँ मेरे अङ्ग-प्रत्यङ्ग हैं। राष्ट्र की इस प्रकार की उन्नति के लिए राजा ज्ञानाग्नि से प्रदीप्त व्यक्ति से, ज्ञानाग्नि द्वारा अपनी तथा अपने राष्ट्र की रक्षा चाहता है।]
विषय
अग्नि: अग्निना
पदार्थ
१. गतमन्त्रों के अनुसार वीर्य को शरीर में धारण करने पर (अग्नि:) = वह अग्रणी प्रभु (मा) = मुझे (अग्निना) = अग्नितत्व के द्वारा-आगे बढ़ने की भावना के द्वारा (अवतु) = रक्षित करे। २. प्रभु से अग्नितत्व इसलिए प्राप्त कराया जाए जिससे (प्राणाय अपानाय) = हमारी प्राणापान शक्ति ठीक बनी रहे। (आयुषे) = दीर्घजीवन प्राप्त हो। (वर्चसे) = श्रुताध्ययन से होनेवाला तेज प्राप्त हो। (ओजसे) = ओजस्विता प्राप्त हो तथा (तेजसे) = शरीर की कान्ति प्राप्त हो। स्वस्तये उत्तम सत्ता के लिए तथा (सभूतये) = उत्तम ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए (स्वाहा) = मैं अग्नि के प्रति अपना अर्पण करता हूँ।
भावार्थ
अग्नि नामक प्रभु मुझे अग्नितत्त्व के द्वारा-आगे बढ़ने की भावना के द्वारा रक्षित करें। मुझे प्राणापानशक्ति-दीर्घजीवन-ज्ञान का बल-ओजस्विता व शरीरकान्ति प्राप्त हो। मैं उत्तम सत्ता व उत्तम ऐश्वर्यवाला होने के लिए प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता हूँ।
इंग्लिश (4)
Subject
Anjanam
Meaning
May Agni, leading light of life, save and strengthen me with the light of knowledge for prana, apana, health, energy and full age, for honour and lustre, brilliance, splendour, well being, and prosperity of noble order. This is the prayer and homage in truth of thought, word and deed.
Subject
To other Gods
Translation
May the adorable Lord preserve me with vital heat for inbreath, for out-breath, for long life, for lustre, for vigour, for majesty, for weal, for good prosperity. Svahà.
Translation
The one part of this ointment apply freely, O man, use one as the previous one is used, take bath by another one and drink one of these parts. Let this four-time potent ointment protect us from the four torturing fetters of Grahi, the disease tightening the patient.
Translation
May God, the learned person, the king, commander or the natural fire, protect me with heat, light and energy for incoming vital breath, for butgoing vital breath, for long life, for glory, for splendour and for energy, for welfare and prosperous living. This is well said.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (मा) माम् (अग्निना) ज्ञानेन (अवतु) रक्षतु (प्राणाय) प्राणस्थैर्याय (अपानाय) अपानस्वास्थ्याय (आयुषे) श्रेष्ठजीवनाय (वर्चसे) प्रतापाय (ओजसे) पराक्रमाय (तेजसे) शरीरकान्तिवर्धनाय (स्वस्तये) कल्याणाय। सुसत्ताप्राप्तये (सुभूतये) शोभनायै सम्पदे (स्वाहा) सुवाणी भवतु ॥
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