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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - एकावसाना निचृन्महाबृहती सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
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    इन्द्रो॑ मेन्द्रि॒येणा॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। मा॒। इ॒न्द्रि॒येण॑। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो मेन्द्रियेणावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। मा। इन्द्रियेण। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (मा) मुझे (इन्द्रियेण) इन्द्र के चिह्न [परम ऐश्वर्य] के साथ (अवतु) बचावे, (प्राणाय) प्राण के लिये....... [म०६] ॥७॥

    भावार्थ

    मन्त्र ६ के समान है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (इन्द्रियेण) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्ग०। पा०५।२।९३। इन्द्र-घच्। इन्द्रलिङ्गेन। इन्द्रत्वेन। परमैश्वर्येण। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः) वणिक्-अधिकारी (इन्द्रियेण) वाणिज्य-सम्पत्ति द्वारा (मा) मेरी रक्षा कर। ताकि मैं (प्राणाय अपानाय...) आदि पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [इन्द्र=वणिक्। यथा—“इन्द्रमहं वणिजं चोदयामि” (अथर्व० ३.१५.१) अर्थात् मैं राजा, इन्द्र अर्थात् वणिक् को वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित करता रहता हूँ। वाणिज्य द्वारा राजा राष्ट्र के प्रजाजनों की समुन्नति चाहता है। अथर्व० ३.१५ का समग्र सूक्त व्यापार सम्बन्धी है।]

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    विषय

    इन्द्रः-इन्द्रियेण

    पदार्थ

    १. (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यवाला प्रभु (मा) = मुझे (इन्द्रियेण) = प्रत्येक अंग के ऐश्वर्य के द्वारा (अवतु) = रक्षित करे। २. इन्द्र मुझे इन्द्रियों के ऐश्वर्य को इसलिए प्रास कराएँ, जिससे प्राणाय अपानाय। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    'इन्द्र' नामक प्रभु मुझे प्रत्येक अंग के ऐश्वर्य को प्राप्त कराएँ। मुझे प्राणापान शक्ति। शेष पूर्ववत्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Anjanam

    Meaning

    May Indra, lord omnipotent, protect and promote me with the vigour and power of sense and mind for prana and apana, health, energy and full age, honour and glory, the glow of inner splendour and brilliance of performance, all round well being, and abundance of prosperity. Homage to Indra in truth of thought, word and deed.

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    Translation

    May the resplendent Lord preserve me with the strength (of the sense-organs) for in-breath, for out-breath, for long life, for lustre, for vigour, for majesty, for weal, for good prosperity. Svaha.

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    Translation

    May Agni, the fire protect me with heat for ins, ties, for expiration, for strenght, for energy, for vigor, for veal and for prosperity. I hail this idea.

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    Translation

    Let the mighty God, the soul, the Sun, the king, the commander or electricity protect.... said.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (इन्द्रियेण) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्ग०। पा०५।२।९३। इन्द्र-घच्। इन्द्रलिङ्गेन। इन्द्रत्वेन। परमैश्वर्येण। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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