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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वायुः छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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    वायो॒ यत्ते॒ ऽर्चिस्तेन॒ तं प्रत्य॑र्च॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । यत् । ते॒ । अ॒र्चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । अ॒र्च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायो यत्ते ऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति । यत् । ते । अर्चि: । तेन । तम् । प्रति । अर्च । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (वायो) हे पवन [पवन तत्त्व] (यत्) जो (ते) तेरी (अर्चिः) दीपनशक्ति है, (तेन) उससे (तम् प्रति) उस [दोष] पर (अर्च) प्रदीप्त हो (यः) जो (अस्मान्) हमसे..... मन्त्र १ ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥३॥

    टिप्पणी

    ३–वायो। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वा गतिगन्धनयोः–उण्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। इति युक्। वायुर्वातेर्वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–निरु० १०।१। हे पवन ! अन्यद् गतम्, सू० १९ ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्याताः ॥

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    विषय

    ५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री॥

    पदार्थ

    १,  २,  ३,  ४,  ५  एवं  मन्त्र संख्या के  केवल भावार्थ ही है |

    भावार्थ

    वायु अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी वायु है। राजा क्रियाशीलता के द्वारा राष्ट्र में से बुराई को दूर करे। समाज में ज्ञानी प्रचारक भी 'वायु की भाँति गतिशील होता हुआ ज्ञानप्रसार द्वारा बुराई को दूर करे।

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    भाषार्थ

    अर्थ और भाव पूर्ववत् । अर्चिः है ज्वाला ।

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    विषय

    द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (वायो) परमात्मन् ! (योऽस्मान् द्वेष्टि०) जो हमसे द्वेष करता है और इसी कारण जिससे हम भी द्वेष करने लग गये हैं (यत् ते अर्चिः, तेन तं प्रति अर्च) आपकी जो ज्ञानमय दीप्ति, ज्वालामय प्रकाश है उससे उस मूढ़ को भी ज्ञानवान् कर जिससे वह द्वेष छोड़कर सीधे मार्ग पर आजाय ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । वायुर्देवता । १-४ निचृद विषमा गायत्र्यः । ५ भुरिग विषमा । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vayu Devata

    Meaning

    Vayu, the fire and flame that is yours, with that enflame and remove that which hates us, and that which we hate to suffer.

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    Translation

    O wind, whatever glare you have, with that may you glare towards him, who hates us and whom we hate.

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    Translation

    Let the air with that of its heat, burn against that who bears malice to us and whom we bear malice to i.e., disease. like pervious Hymn XIX.

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    Translation

    O God, with Thy Luster of wisdom, make him wise, who hates us, or whom we do not love!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–वायो। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वा गतिगन्धनयोः–उण्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। इति युक्। वायुर्वातेर्वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–निरु० १०।१। हे पवन ! अन्यद् गतम्, सू० १९ ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्याताः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (বায়ো) হে পবন (যৎ) যে (তে) তোমার (অর্চিঃ) জ্বলনশক্তি রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (প্রতি অর্চঃ) জ্বালাও/দগ্ধ/সন্তাপিত করো (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।

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    मन्त्र विषय

    কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বায়ো) হে পবন [পবন তত্ত্ব] (যৎ) যে/যা (তে) তোমার (অর্চিঃ) দীপনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্ প্রতি) সেই [দোষের] ওপর (অর্চ) প্রদীপ্ত হও (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥৩॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ১ এর সমান ॥৩॥

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