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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वायुः छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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    वायो॒ यत्ते॑ शो॒चिस्तेन॒ तं प्रति॑ शोच॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । यत् । ते॒ । शो॒चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । शो॒च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम्। द्वि॒ष्म: ॥२०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायो यत्ते शोचिस्तेन तं प्रति शोच यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति । यत् । ते । शोचि: । तेन । तम् । प्रति । शोच । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम्। द्विष्म: ॥२०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (वायो) हे पवन [पवन तत्त्व] (यत्) जो (ते) तेरा (शोचिः) शोधनशक्ति है, (तेन) उससे (तम्) उस [दोष] को (प्रति शोच) शुद्ध कर दे, (यः) जो (अस्मान्) हमसे...... मन्त्र १ ॥४॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–वायो। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वा गतिगन्धनयोः–उण्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। इति युक्। वायुर्वातेर्वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–निरु० १०।१। हे पवन ! अन्यद् गतम्, सू० १९ ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्याताः ॥

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    विषय

    ५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री॥

    पदार्थ

    १,  २,  ३,  ४,  ५  एवं  मन्त्र संख्या के  केवल भावार्थ ही है |

    भावार्थ

    वायु अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी वायु है। राजा क्रियाशीलता के द्वारा राष्ट्र में से बुराई को दूर करे। समाज में ज्ञानी प्रचारक भी 'वायु की भाँति गतिशील होता हुआ ज्ञानप्रसार द्वारा बुराई को दूर करे।

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    भाषार्थ

    अर्थ और भाव पूर्ववत् । शोचि है, पापियों को कर्मफल प्रदान द्वारा शोकाविष्ट करना । यह परमेश्वर करता है ।

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    विषय

    द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे वायो ! परमात्मन् ! (योऽस्मान्०) जो हमसे द्वेष करता है और इसी कारण जिससे हम भी प्रीति नहीं करते (यत् ते शोचिः, तेन तं प्रति शोच) जो आपकी प्रकाशक दीप्ति है उस द्वारा उसको भी ज्ञानवान् करो जिससे वह प्रकाशमय मार्ग में आकर द्वेष न करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । वायुर्देवता । १-४ निचृद विषमा गायत्र्यः । ५ भुरिग विषमा । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vayu Devata

    Meaning

    Vayu, the intensity that is yours, with that cleanse that which hates us, and that which we hate to suffer.

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    Translation

    O wind, whatever drying power you have, with that may you blow dry towards him, who hates us and whom we hate.

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    Translation

    Let the air with that of its heat, burn against that who bears malice to us and whom we bear malice to i.e., disease. like pervious Hymn XIX.

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    Translation

    O God, with Thy Refulgence, grant him, who hates us, or whom we do not love, light, so that he may abandon hatred.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–वायो। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वा गतिगन्धनयोः–उण्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। इति युक्। वायुर्वातेर्वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–निरु० १०।१। हे पवन ! अन्यद् गतम्, सू० १९ ॥ २, ३, ४, ५–उपरि व्याख्याताः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (বায়ো) হে পবন (যৎ তে শোচিঃ) যে তোমার শোকজননশক্তি রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (প্রতি শোচঃ) শোক প্রদান করাও (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।

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    मन्त्र विषय

    কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বায়ো) হে পবন [পবন তত্ত্ব] (যৎ) যে (তে) তোমার (শোচিঃ) শোধনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) সেই [দোষকে] (প্রতি শোচ) শুদ্ধ করো, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥৪॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ১ এর সমান ॥৪॥

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