अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 7
ऋषिः - पतिवेदनः
देवता - हिरण्यम्, भगः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पतिवेदन सूक्त
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इ॒दं हिर॑ण्यं॒ गुल्गु॑ल्व॒यमौ॒क्षो अ॑थो॒ भगः॑। ए॒ते पति॑भ्य॒स्त्वाम॑दुः प्रतिका॒माय॒ वेत्त॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । हिर॑ण्यम् । गुल्गु॑लु । अ॒यम् । औ॒क्ष: । अथो॒ इति॑ । भग॑: । ए॒ते । पति॑भ्य: । त्वाम् । अ॒दु॒: । प्र॒ति॒ऽका॒माय॑ । वेत्त॑वे ॥३६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं हिरण्यं गुल्गुल्वयमौक्षो अथो भगः। एते पतिभ्यस्त्वामदुः प्रतिकामाय वेत्तवे ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । हिरण्यम् । गुल्गुलु । अयम् । औक्ष: । अथो इति । भग: । एते । पतिभ्य: । त्वाम् । अदु: । प्रतिऽकामाय । वेत्तवे ॥३६.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाह संस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(इदम्) यह (हिरण्यम्) सुवर्ण और (गुल्गुलु) गुल्गुले [गुड़ का पका भोजन] (अथो) और (अयम्) यह (औक्षः) महात्माओं के योग्य [वा ऋषभ औषध सम्बन्धी] (भगः) ऐश्वर्य है [और हे कन्या !] (एते) इन कन्या के पक्षवालों ने (पतिभ्यः) पति पक्षवालों के हितार्थ (त्वाम्) तुझे (प्रतिकामाय) प्रतिज्ञापूर्वक कामनायोग्य [पति] के लिये (वेत्तवे) लाभ पहुँचाने को (अदुः) दिया है ॥७॥
भावार्थ
कन्या के माता-पिता आदि कन्या और वर को विवाह के उपरान्त दाय अर्थात् यौतुक [दैजा, जहेज़] में सुन्दर अलंकार, वस्त्र, भोजन, पदार्थ, वाहन, गौ, धन आदि देवें और कन्या को पतिसेवा की यथायोग्य शिक्षा करें, जिससे पति-पत्नी मिलकर सदा आनन्द भोगें ॥७॥ (गुल्गुलु) पद के स्थान पर सायणभाष्य में [गुग्गुलु] पद है ॥
टिप्पणी
७–इदम्। वराय दातव्यम्। हिरण्यम्। अ० १।९।२। हृञ् हरणे, यद्वा, हर्य गतिकान्त्योः–कन्यन्, हिरादेशश्च। हिरण्यं कस्माद्ध्रियत आयम्यमानमिति वा ह्रियते जनाज्जनमिति वा हितरमणं भवतीति वा हर्यतेर्वा स्यात् प्रेप्साकर्मणः–निरु० २।१०। सुवर्णम्। गुल्गुलु। क्वादिभ्यः कित्। उ० १।११५। इति गुङ् अव्यक्तशब्दे–ड प्रत्ययः, इति गुडः। अकारलोपः। यद्वा गुड वेष्टे, रक्षे–क्विप्, ततो गुड–कु। डलयोरैक्याड् डस्य लत्वम्। गुड एव गुलुः। गुडेन इक्षुपाकेन गुडितं वेष्टितं रक्षितं वा गुल्गुलु भोज्यम्। “गुलगुला”–इति भाषा। अथो। अपि च। औक्षः। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति उक्ष सेचने–कनिन्। यद्वा, उक्ष–क। उक्षाः, महन्नाम–निघ० ३।३। उक्षण उक्षतेर्वृद्धिकर्मण उक्षन्त्युदकेन वा–निरु० १२।९। उक्षा ऋषभौषधिः–श० क० द्रु०। ततः, अण् प्रत्ययः। महतां योग्यः। ऋषभौषधिसंबन्धी। प्रलेपनद्रव्यम्–इति सायणः। भगः। भज–घञ् सेवनीयम्। ऐश्वर्यम्। एते। कन्यापक्षीयाः। पतिभ्यः। वरपक्षीयेभ्यः। तेषां हिताय। त्वाम्। कन्याम्। अदुः। दाञो लुङ्। दत्तवन्तः। प्रतिकामाय। प्रतिज्ञापूर्वकं कामनायोग्याय वराय। वेत्तवे। तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति विद्लृ लाभे–तवे प्रत्ययः। वेत्तुम्। लब्धुम् ॥
विषय
दहेज
पदार्थ
१. (इदम्) = यह (हिरण्यम्) = स्वर्ण है-स्वर्ण के कुछ आभूषण आदि हैं। (गुल्गुलु) = गुड़ में पकाये गये कुछ भोज्य द्रव्य हैं। विवाह के बाद लौटने पर मार्ग के लिए ये भोज्य द्रव्य उपयुक्त होंगे। (अयम् औक्ष:) = यह बैल या गाय के निमित्त धन है, अथ (उ) = और यह निश्चय से (भग:) = कन्या के निमित्त रक्खा हुआ कुछ धन है। २. इन वस्तुओं को (एते) = ये कन्या पक्षवाले लोग (पतिभ्यः) = पति के पक्षवालों के लिए (अदुः) = देते हैं। इसलिए देते हैं कि वे (त्वाम्) = तुझे (प्रतिकामाय) = प्रत्येक दृष्टिकोण से चाहने योग्य पति को (वेत्तवे) = [विद् लाभे] प्राप्त करा सके।
भावार्थ
वरपक्षवालों को सत्कार के लिए कुछ भेंट देनी आवश्यक ही है। यह सत्कार कन्या को उनके लिए प्रिय बनाता है।
भाषार्थ
(इदम्) यह (हिरण्यम् ) हिरण्यमय आभूषण, (गुल्गुलु) गुग्गुल, (अयम्, औक्षः) यह [सेचनसमर्थ युवा] बैल का चर्मविशेष, (अथो भगः) तथा अन्य देय ऐश्वर्य, (एते) इन सम्बन्धियों ने (त्वाम्) तुझे (अदुः) दिया है, (प्रतिकामाय) प्रत्येक सम्बन्धी के अभीष्ट वर के लिये, (वेत्तवे) उसे निवेदित करने के लिये, देने के लिये।
टिप्पणी
[विवाह में सम्बन्धी, कन्या को भेंट देते हैं, जिन्हें कि वह पति को निवेदित कर देती है, दे देती है। गुल्गुलु अर्थात् गुग्गुल सुगन्धित पदार्थ है, इसके धूपन से गृहशद्धि होती है, रोगकीटाणु मर जाते हैं। औक्ष:= यह बैल का चर्म है, जिस पर आरोहण कर पत्नी प्रसव-कर्म करती है (अथर्व० १४।२।२१-२४), यह चर्म लाल बैल का होता है। (चर्मणि रोहिते, अथर्व० १४।२।२३); रोहित= लोहित अर्थात् लाल।]
विषय
कन्या के लिये योग्य पति की प्राप्ति ।
भावार्थ
हे कुमारि ! (इदम्) यह (हिरण्यं) स्वर्णमय अंगूठी या स्वर्णमुद्रा, (गुल्गुलु) यह गूगल का सुगन्धित द्रव्य, (अयम् औक्षः) यह प्रोक्षण, अर्घ्य, पाद्य का जल या दूध का बना पदार्थ, (अथो) और (भगः) यह सौभाग्य, या सुभगंकरण, सौभाग्यसूचक कुंकुम आदि द्रव्य (एते) ये सब पदार्थ (पतिभ्यः) मान्य पति के आगे प्रस्तुत करने के लिये और (प्रतिकामाय) तेरे प्रेम के बदले में तुझसे प्रेम दर्शाने हारे अपने प्रियतम को (वेत्तवे) प्राप्त करने के लिये (त्वाम्) तुझको (अदुः) पुरोहित एवं माता और पिता और भाई देते हैं।
टिप्पणी
(प्र०) ‘इदं हिरण्यं गुग्गुल्वय’ इति क्वचित् पाठः । (प्र०) ‘वयमुक्षो अथो भगः’ (तृ०) ‘त्वामधुः पतिकामाय’ इति पैप्प० सं०। सेचनार्थस्य उक्षते रुपय्, नचोक्ष्णो वृषभार्थस्य ताद्धितम्, इति ह्विटनिः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पतिवेदन ऋषिः। अग्नीषोमौ मन्त्रोक्ता सोमसूर्येन्द्रभगधनपतिहिरण्यौषधयश्च देवताः। १ भुरिग्। २, ५-७ अनुष्टुभः। ३, ४ त्रिष्टुभौ। ८ निचृत् पुरोष्णिक् । अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Happy Matrimony
Meaning
This is the gold. This is the auspicious bdellium. This is the sacred water to sprinkle on the path. This is the token of good luck and prosperity. These are given for the groom’s party to win their love and good will for you.
Subject
Hiranyam Bhagah
Translation
This high quality gold, this fragrant bdellium, this cart drawn by bullocks and this wealth, we offer to husbands so that you may get a husband of your choicé.
Translation
O’ bride, this gold, this bdellium, this eatable prepared of milk and this fortune--all these are presented to the party of groom by the parent and party of bride and you are given to your husband to find him accordant with you.
Translation
O girl, the guardian of wealth, call thy suitor respectfully, and make him well-inclined towards thee. Let him, who is worthy of thy choice, sit on thy right hand! [1]
Footnote
[1] According to the Vedic ideal of marriage, a girl is herself to choose her husband. Her parents are merely to lend her a helping hand. It is a mark of respect and honor to make the bridegroom sit on the right side of the bride in marriage.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७–इदम्। वराय दातव्यम्। हिरण्यम्। अ० १।९।२। हृञ् हरणे, यद्वा, हर्य गतिकान्त्योः–कन्यन्, हिरादेशश्च। हिरण्यं कस्माद्ध्रियत आयम्यमानमिति वा ह्रियते जनाज्जनमिति वा हितरमणं भवतीति वा हर्यतेर्वा स्यात् प्रेप्साकर्मणः–निरु० २।१०। सुवर्णम्। गुल्गुलु। क्वादिभ्यः कित्। उ० १।११५। इति गुङ् अव्यक्तशब्दे–ड प्रत्ययः, इति गुडः। अकारलोपः। यद्वा गुड वेष्टे, रक्षे–क्विप्, ततो गुड–कु। डलयोरैक्याड् डस्य लत्वम्। गुड एव गुलुः। गुडेन इक्षुपाकेन गुडितं वेष्टितं रक्षितं वा गुल्गुलु भोज्यम्। “गुलगुला”–इति भाषा। अथो। अपि च। औक्षः। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति उक्ष सेचने–कनिन्। यद्वा, उक्ष–क। उक्षाः, महन्नाम–निघ० ३।३। उक्षण उक्षतेर्वृद्धिकर्मण उक्षन्त्युदकेन वा–निरु० १२।९। उक्षा ऋषभौषधिः–श० क० द्रु०। ततः, अण् प्रत्ययः। महतां योग्यः। ऋषभौषधिसंबन्धी। प्रलेपनद्रव्यम्–इति सायणः। भगः। भज–घञ् सेवनीयम्। ऐश्वर्यम्। एते। कन्यापक्षीयाः। पतिभ्यः। वरपक्षीयेभ्यः। तेषां हिताय। त्वाम्। कन्याम्। अदुः। दाञो लुङ्। दत्तवन्तः। प्रतिकामाय। प्रतिज्ञापूर्वकं कामनायोग्याय वराय। वेत्तवे। तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति विद्लृ लाभे–तवे प्रत्ययः। वेत्तुम्। लब्धुम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(ইদম্) এই (হিরণ্যম্) হিরণ্যময় অলঙ্কার, (গুল্গুলু) গুগ্গুল, (অয়ম্, ঔক্ষঃ) এই [সেচনসমর্থ যুবক] বলদের চর্মবিশেষ, (অথো ভগঃ) এবং অন্যান্য দেয় ঐশ্বর্য্য, (এতে) এই সম্পর্কিতরা (ত্বম্) তোমাকে (অদুঃ) দিয়েছে/প্রদান করেছে, (প্রতিকামায়) প্রত্যেক সম্পর্কিতদের অভীষ্ট বরের জন্য, (বেত্তবে) তাঁকে নিবেদিত করার জন্য, প্রদান করার জন্য।
टिप्पणी
[বিবাহে সম্পর্কিতরা/আত্মীয়রা, কন্যাকে উপহার দেয়, যা সে পতিকে নিবেদিত করে দেয়, দিয়ে দেয়। গুল্গুলু অর্থাৎ গুগ্গুল হল সুগন্ধিত পদার্থ, এর ধূপে গৃহশুদ্ধি হয়, রোগ জীবাণু ধ্বংস হয়। ঔক্ষঃ= ইহা বলদের চর্ম, যার ওপর আরোহণ করে পত্নী প্রসব-কর্ম করে (অথর্ব০ ১৪।২।২১-২৪), এই চর্ম লাল বলদের হয় (চর্মণি রোহিতে, অথর্ব০ ১৪।২।২৩); রোহিত= লোহিত অর্থাৎ লাল।]
मन्त्र विषय
বিবাহসংস্কারোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইদম্) ইহা (হিরণ্যম্) সুবর্ণ ও (গুল্গুলু) গুল্গুলে [গুড়ের পক্ক ভোজন] (অথো) এবং (অয়ম্) ইহা (ঔক্ষঃ) মহাত্মাদের যোগ্য [বা ঋষভ ঔষধ সম্বন্ধী] (ভগঃ) ঐশ্বর্য [এবং হে কন্যা !] (এতে) এই কন্যার পক্ষরা (পতিভ্যঃ) পতি পক্ষদের হিতার্থে (ত্বাম্) তোমাকে (প্রতিকামায়) প্রতিজ্ঞাপূর্বক কামনাযোগ্য [পতির] জন্য (বেত্তবে) লাভ প্রদানের জন্য (অদুঃ) দিয়েছে ॥৭॥
भावार्थ
কন্যার মাতা-পিতা আদি কন্যা ও বরের বিবাহ সম্পন্ন করার পর দায় অর্থাৎ যৌতুক [দৈজা, জহেজ়] এ সুন্দর অলংকার, বস্ত্র, ভোজন, পদার্থ, বাহন, গাভী, ধন আদি প্রদান করুক এবং কন্যাকে পতিসেবার যথাযোগ্য শিক্ষা করুক, যাতে পতি-পত্নী একসাথে সদা আনন্দ ভোগ করে ॥৭॥ (গুল্গুলু) পদের স্থানে সায়ণভাষ্যে [গুগ্গুলু] পদ আছে ॥
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