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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शापमोचन सूक्त
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    परि॒ मां परि॑ मे प्र॒जां परि॑ णः पाहि॒ यद्धन॑म्। अरा॑तिर्नो॒ मा ता॑री॒न्मा न॑स्तारि॒शुर॒भिमा॑तयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । माम् । परि॑ । मे॒ । प्र॒ऽजाम् । परि॑ । न॒: । पा॒हि॒ । यत् । धन॑म् । अरा॑ति । न॒: । मा । ता॒री॒त् । मा । न॒: । ता॒रि॒षु: । अ॒भिऽमा॑तय: ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि मां परि मे प्रजां परि णः पाहि यद्धनम्। अरातिर्नो मा तारीन्मा नस्तारिशुरभिमातयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । माम् । परि । मे । प्रऽजाम् । परि । न: । पाहि । यत् । धनम् । अराति । न: । मा । तारीत् । मा । न: । तारिषु: । अभिऽमातय: ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (माम्) मेरी (परि=परितः) सब प्रकार, (मे) मेरी (प्रजाम्) प्रजा [पुत्र, पौत्र, भृत्य आदि] की (परि) सब प्रकार और (नः) हमारा (यत्) जो (धनम्) धन है [उसकी भी] (परि) सब प्रकार (पाहि) तू रक्षा कर। (अरातिः) कोई अदानी, कंजूस, पुरुष (नः) हमें (मा तारीत्) न दबावे और (अभिमातयः) अभिमानी लोग भी (नः) हमें (मा तारिषुः) न दबावें ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य आत्मरक्षा, प्रजारक्षा और धनरक्षा करके दुष्टों को न्याययुक्त दण्ड देकर सदा आनन्द से रहें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–प्रजाम्। प्रजायते सा प्रजा। उपसर्गे च संज्ञायाम्। पा० ३।२।९९। प्र+जन जनने–ड। पुत्रपौत्रभृत्यादिसन्ततिम्। जनम्। अरातिः। अ० १।१८।१। अदानशीलम्। कृपणम्। शत्रुम्। नः। अस्मान्। मा तारीत्। तॄ तरणे, अभिभवे–लुङ्। न माङ्योगे। पा० ६।४।७४। इत्यडभावः। माभिभवतु। मातिक्रामतु। मा तारिषुः। लुङि पूर्ववद् अडभावः। मा हिंसन्तु। अभिमातयः। अ० २।६।३। अभिमानिनो जनाः। शत्रवः ॥

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    विषय

    आरति व अभिमाति से ऊपर

    पदार्थ

    १. यज्ञीय वीरुत् का प्रयोग करनेवाले (माम्) = मुझे (परि) = (पाहि) रक्षित कीजिए। (मे प्रजाम्) = मेरी प्रजा को (परि) = (पाहि) रक्षित कीजिए। (नः यत् धनम्) = हमारा जो ज्ञान और शान्तिरूप  धन है ,उसे (परि पाहि) = सर्वथा रक्षित कीजिए | २ . ज्ञान व शांति  के अपनानेवाले (नः) = हम लोगों को (अरातिः) = शत्रु (मा तरित्) = पराभूत न करे तथा (अभिमतयः) = अभिमान की वृत्तियाँ (नः) = हमें (मा तरिषु:) = अभिभूत करनेवाली न हों | हम अराति व अभिमाति से ऊपर उठकर चलें | (अरातिः) = न देने की वृत्ति - कृपणता  और अभिमान हमें वशीभूत  न कर लें |

    भावार्थ

    हम सात्त्विक आहार से शुद्ध - सत्त्व बनकर अ - दान व अभिमान से ऊपर उठें

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    भाषार्थ

    [हे परमेश्वरमात: !] (माम् परि पाहि ) मेरी सब ओर से रक्षा कर, (मे प्रजाम् परि) मेरी प्रजा की सब ओर से रक्षा कर, (नः यद् धनम् ) हमारा जो धन है उसकी (परि पाहि) सब ओर से रक्षा कर। (अराति: नः मा तारीत्) अदान भावना या अदानी शत्रु हमारा अतिक्रमण न करे, (नः मा तारिषुः अभिमातयः) निज शक्ति का अभिमान करनेवाले हमारा अतिक्रमण न करें।

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    विषय

    सहनशीलता का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! ( मां ) मेरी (परिपाहि) सब प्रकार से रक्षा करों, (नः) हमारी ( प्रजां ) प्रजा को (परिपाहि) परिपालन करो और (यत्) जो (नः) हमारा ( धनं ) धन है उसे भी ( परिपाहि ) परिपालन कर। (नः) हमें ( अरातिः ) अदानी, कंजूस शत्रुजन ( मा तारीत् ) वश में न करें। और ( अभिमातयः ) अभिमानी पुरुष, गर्वी लोग भी (नः ) हमें ( मा तारिषुः ) वश में न करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । वनस्पतिर्देवता, दूर्वास्तुतिः । १ भुरिक् । २, ३,५ अनुष्टुभौ । ४ विराडुपरिष्टाद् बृहती। पञ्चर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil

    Meaning

    Protect and promote me. Protect and promote my people. Protect and promote whatever is our real wealth, honour and excellence. Let no meanness, stinginess or adversity subdue us. Let no rivals or enemies subdue us.

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    Translation

    From all the sides, may you protect me, my progeny, and my wealth whatever I have. May not a miser enemy surpass us, nor may the bullies overcome us.

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    Translation

    Let it save me, let it protect my progeny, let it Protect whatever is our body wealth. Our diseases let mot overcome us and let not irritation and angers subdue us.

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    Translation

    O God, guard me on all sides, guard my children, and all our wealth. Let no stingy foe overpower us. Let no proud adversary conquer us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–प्रजाम्। प्रजायते सा प्रजा। उपसर्गे च संज्ञायाम्। पा० ३।२।९९। प्र+जन जनने–ड। पुत्रपौत्रभृत्यादिसन्ततिम्। जनम्। अरातिः। अ० १।१८।१। अदानशीलम्। कृपणम्। शत्रुम्। नः। अस्मान्। मा तारीत्। तॄ तरणे, अभिभवे–लुङ्। न माङ्योगे। पा० ६।४।७४। इत्यडभावः। माभिभवतु। मातिक्रामतु। मा तारिषुः। लुङि पूर्ववद् अडभावः। मा हिंसन्तु। अभिमातयः। अ० २।६।३। अभिमानिनो जनाः। शत्रवः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (মাং) আমার (পরি) সর্ব প্রকার (মে) আমার (প্রজ্‌হাং) প্রজার (পরি) সর্ব প্রকার (ন) আমাদের (য়) যে (ধনং) ধন আছে তাহারাও (পরি) সর্ব প্রকার (পাহি) রক্ষা কর, (অরাতিঃ) কোনো দানহীন কৃপণ (নঃ) আমাদিগকে (মা তারীষু) যেন অভিভূত না করে (অভিসাতয়ঃ) অভিমানীরা (নঃ) আমাদিগকে (মা তারিষুঃ) যেন অভিভূত না করে।।

    भावार्थ

    হে পরমেশ্বর! আমাকে আমার সন্তানগণকে এবং আমার ধনরাশিকে সর্ব প্রকারে রক্ষা কর । কোনো দানহীন কৃপণ এবং অভিমানী পুরুষ যেন আমাদিগকে অভিভূত না করে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    পরি মাং পরি মে প্রজাং পরিণঃ পাহি য়দ্ধনম্। অরাতির্নো মা তারীন্মা নস্তারিষুরভিমাতয়ঃ

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। বনষ্পতি (দূর্বা)। বিরাডুপরিষ্টাদ্ বৃহতী

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    भाषार्थ

    [হে পরমেশ্বরমাতঃ !] (মাম্ পরি পাহি) আমাকে সব দিক থেকে/সর্বতোভাবে রক্ষা করো, (মে প্রজাম্ পরি) আমার প্রজাদের সব দিক থেকে রক্ষা করো, (নঃ যদ্ ধনম্) আমাদের যে ধন রয়েছে তা (পরি পাহি) সব দিক থেকে রক্ষা করো। (অরাতিঃ নঃ মা তারীৎ) অদান ভাবনা বা অদানী শত্রু আমাদের যেন অতিক্রমণ না করে, (নঃ মা তারিষুঃ অভিমাতয়ঃ) নিজ শক্তির অভিমানী আমাদের যেন অতিক্রমণ না করে।

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    मन्त्र विषय

    রাজধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মাম্) আমার (পরি=পরিতঃ) সর্ব প্রকারে, (মে) আমার (প্রজাম্) প্রজা [পুত্র, পৌত্র, ভৃত্য আদির] (পরি) সব প্রকারে/সর্বতোভাবে এবং (নঃ) আমাদের (যৎ) যে (ধনম্) ধন-সম্পদ আছে [তারও] (পরি) সকল প্রকারে/সর্বতোভাবে (পাহি) তুমি রক্ষা করো। (অরাতিঃ) কোনো অদানী, কৃপণ, পুরুষ (নঃ) আমাদের (মা তারীৎ) না দমন করে/করুক এবং (অভিমাতয়ঃ) অভিমানী লোকও (নঃ) আমাদের (মা তারিষুঃ) না দমন করে/করুক ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য আত্মরক্ষা, প্রজারক্ষা ও ধনরক্ষা করে দুষ্টদের ন্যায়যুক্ত দণ্ড দিয়ে সদা আনন্দে থাকুক ॥৪॥

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