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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 104/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०४
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    त्वं दा॒ता प्र॑थ॒मो राध॑साम॒स्यसि॑ स॒त्य ई॑शान॒कृत्। तु॑विद्यु॒म्नस्य॒ युज्या॑ वृणीमहे पु॒त्रस्य॒ शव॑सो म॒हः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । दा॒ता । प्र॒थ॒म: । राध॑साम् । अ॒सि॒ । असि॑ । स॒त्य: । ई॒शा॒न॒ऽकृत् ॥ तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नस्य॑ । युज्या॑ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । पु॒त्रस्य॑ । शव॑स: । म॒ह: ॥१०४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं दाता प्रथमो राधसामस्यसि सत्य ईशानकृत्। तुविद्युम्नस्य युज्या वृणीमहे पुत्रस्य शवसो महः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । दाता । प्रथम: । राधसाम् । असि । असि । सत्य: । ईशानऽकृत् ॥ तुविऽद्युम्नस्य । युज्या । आ । वृणीमहे । पुत्रस्य । शवस: । मह: ॥१०४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 104; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (राधसाम्) धनों का (प्रथमः) सबसे पहिला (दाता) दाता (असि) है, और (सत्यः) सच्चा (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवान् बनानेवाला (असि) है। (तुविद्युम्नस्य) बड़े यशस्वी पुरुष के (पुत्रस्य) पुत्र के (महः) बड़े (शवसा) बल के (युज्या) योग्य कामों को (आ) सब प्रकार (वृणीमहे) हम अङ्गीकार करते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य उत्तम घरानों में उत्पन्न होकर माता-पिता आदि से सुशिक्षा पाकर पराक्रम करते हैं, जगदीश्वर उनका ऐश्वर्य बढ़ाता है ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(त्वम्) (दाता) दानी (प्रथमः) आदिमः (राधसाम्) धनानाम् (असि) (असि) (सत्यः) यथार्थः (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवतां कर्ता (तुविद्युम्नस्य) बहुयशस्विनः पुरुषस्य (युज्या) युज-क्यप्। योग्यानि कर्माणि (आ) समन्तात् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (पुत्रस्य) (शवसः) बलस्य (महः) महतः ॥

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    विषय

    राधसां प्रथम: दाता

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (त्वम्) = आप (राधसाम्) = ऐश्वयों के (प्रथमः दाता असि) = सर्वमुख्य दाता हैं। आप (सत्यः असि) = सत्यस्वरूप हैं। (ईशानकृत्) = स्तोताओं को ऐशवर्यों का ईशान बनानेवाले हैं। २. (तुविद्युम्नस्य) = महान् ज्ञानज्योतिवाले (शवसः पुत्रस्य) = बल के पुञ्ज-सर्वशक्तिमान् (महः) = महान् आपके (युज्या) = संगतिकरण योग्य, अर्थात् उत्तम धनों को (आवृणीमहे) = हम वरते हैं। हम प्रभु से देय धनों की ही कामना करते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही सर्वमुख्य ऐश्वयों के दाता है। उस महान् ज्ञानज्योतिवाले, सर्वशक्तिमान् प्रभु के धनों का ही हम वरण करते हैं। अगले सूक्त के प्रथम तीन मन्त्रों का ऋषि भी 'नमेध' ही है। ४-५ का पुरुहन्मा-शत्रुओं का खूब ही विनाश करनेवाला -

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (त्वम्) आप ही (राधसाम्) सम्पत्तियों के (प्रथमः) सर्वप्रथम (दाता असि) दाता है। आप (सत्यः असि) सत्यस्वरूप हैं, (ईशानकृत्) आप हमें पापों पर नियन्त्रण करने योग्य करते हैं। जैसे (तुविद्युम्नस्य) महाधनिक (पुत्रस्य युज्या) पुत्र के धन का (वृणीमहे) हम वरण करते हैं, उपयोग करते हैं वैसे (महः शवसः) आपके महाबल तथा महा-आध्यात्मिक धन का हम वरण करते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    You are the original giver of means of effort and success in all fields of life. You are the maker of leaders and giver of the wealth and honours of life. Of such great lord of glory and power, promoter and protector of strength and power, we pray for wealth, honour and excellence worthy of your glory.

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    Translation

    O Almighty Divinity, you are the first and best of all in sending bounteous gifts and you are true administrative power. We accept the alliance of the mighty son of strength which bears spreading fame.

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    Translation

    O Almighty Divinity, you are the first and best of all in sending bounteous gifts and you are true administrative power. We accept the alliance of the mighty son of strength which bears spreading fame.

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    Translation

    O Mighty Lord of Destruction, king, commander or soul, Thou art the vanquisher of all fighting forces of evil or foe. Being a Generator of good plans, Thou art the Destroyer of wicked designs of the evil or foe the thorough smasher of the violent forces of evil or the wicked enemy Letest Thou tear off the violent and the wicked.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(त्वम्) (दाता) दानी (प्रथमः) आदिमः (राधसाम्) धनानाम् (असि) (असि) (सत्यः) यथार्थः (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवतां कर्ता (तुविद्युम्नस्य) बहुयशस्विनः पुरुषस्य (युज्या) युज-क्यप्। योग्यानि कर्माणि (आ) समन्तात् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (पुत्रस्य) (शवसः) बलस्य (महः) महतः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পরমেশ্বর!] (ত্বম্) তুমি (রাধসাম্) ধন-সম্পদের (প্রথমঃ) সর্বপ্রথম (দাতা) দাতা (অসি) হও, এবং (সত্যঃ) সত্য/প্রকৃত (ঈশানকৃৎ) ঐশ্বর্যদাতা (অসি)(তুবিদ্যুম্নস্য) মহান যশস্বী পুরুষের (পুত্রস্য) পুত্রের (মহঃ) মহৎ (শবসা) বলের (যুজ্যা) যোগ্য কর্মসমূহকে (আ) সর্বত্র (বৃণীমহে) আমরা গ্রহণ করি ॥৪॥

    भावार्थ

    যে মনুষ্য উত্তম পরিবারে জন্মগ্রহণ করে মাতা-পিতা আদি থেকে সুশিক্ষা প্রাপ্ত করে মহৎ কর্ম করে, জগদীশ্বর তাঁর ঐশ্বর্য বৃদ্ধি করেন ॥৪॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (ত্বম্) আপনিই (রাধসাম্) সম্পত্তি-সমূহের (প্রথমঃ) সর্বপ্রথম (দাতা অসি) দাতা। আপনি (সত্যঃ অসি) সত্যস্বরূপ, (ঈশানকৃৎ) আপনি আমাদের পাপ নিয়ন্ত্রণ করার যোগ্য করেন। যেমন (তুবিদ্যুম্নস্য) মহাধনী (পুত্রস্য যুজ্যা) পুত্রের ধন (বৃণীমহে) আমরা বরণ করি, ব্যবহার/প্রয়োগ করি তেমনই (মহঃ শবসঃ) আপনার মহাবল তথা মহা-আধ্যাত্মিক ধন আমরা বরণ করি।

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