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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३
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    आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्यग्घुवा॒नः सोम॑पीतये। हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । तु । न॒: । इ॒न्द्र॒ । म॒द्र्य॑क् । हु॒वा॒न: । सोम॑ऽपीतये ॥ हरि॑ऽभ्याम् । या॒हि॒ । अ॒द्रि॒ऽव॒: ॥२३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । तु । न: । इन्द्र । मद्र्यक् । हुवान: । सोमऽपीतये ॥ हरिऽभ्याम् । याहि । अद्रिऽव: ॥२३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अद्रिवः) हे वज्रधारी (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (सोमपीतये) पदार्थों की रक्षा के लिये (हुवानः) बुलाया गया, (मद्र्यक्) मुझको प्राप्त होता हुआ तू (हरिभ्याम्) दो घोड़ों [के समान व्यापक बल और पराक्रम] से (नः) हमको (तु) शीघ्र (आ याहि) प्राप्त हो ॥१॥

    भावार्थ

    राजा अपनी प्रजा के पदार्थों की रक्षा के लिये बल और पराक्रम के साथ शीघ्र उपाय करे ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-३।४१।१-९ ॥ १−(आ याहि) आगच्छ (तु) शीघ्रम् (नः) अस्मान् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (मद्र्यक्) ऋत्विग्दधृक्०। पा० ३।२।९। अस्मत्+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। प्रत्ययोत्तरपदयोश्च। पा० ७।२।९८। अस्मच्छब्दस्यैकवचने मपर्यन्तस्य म इत्यादेशः। विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतावप्रत्यये। पा० ६।३।९२। इति टेः अद्रि इत्यादेशः। माम् अञ्चति प्राप्नोति यः सः (हुवानः) हूयमानः (सोमपीतये) अ० १७।१।१। सोमानां पदार्थानां पीती रक्षणं यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन्-दयानन्दभाष्य ऋक्० १।२१।३। (हरिभ्याम्) अश्वसदृशाभ्यां व्यापकाभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् (अद्रिवः) अ० २०।२०।४। हे वज्रिन् ॥

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    विषय

    आद्रिवः! आयाहि

    पदार्थ

    १. हे (अद्रिवः) = आदरणीय व वज्रहस्त (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (हुवानः) = पुकारे जाते हुए (मद्रयक्) = मदभिमुख होकर (न:) = हमारे इस जीवन-यज्ञ में (सोमपीतये) = सोम के पान के लिए शरीरों में ही सोम के रक्षण के लिए (हरिभ्याम्) = उत्तम इन्द्रियाश्वों के साथ (तू) = निश्चय से (आयाहि) = प्राप्त होइए। २. हमारे हृदयों में आपके स्थित होने पर ही ये इन्द्रियाँ विषयासक्ति से बची रह पाती हैं। तभी सोम का रक्षण सम्भव होता है।

    भावार्थ

    हे प्रभो! आप हमारे हृदय में दर्शन दीजिए, जिससे इन्द्रियाँ विषयासक्ति से बची रहें|

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (हुवानः) पुकारे गये आप (मद्र्यक्) मुझ उपासक की ओर आइए, (सोमपीतये) मेरे भक्तिरस के पान के लिए। (अद्रिवः) हे पापों का भक्षण करनेवाले! (हरिभ्याम्) ऋक् और साम की स्तुतियों और गानों द्वारा, आप (नः) हमारी ओर (तू) शीघ्र (आ याहि) प्रवृत्त हूजिए।

    टिप्पणी

    [अद्रिः=अत्तेः (निरु০ ४.१.४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Come lord of clouds and mountains, Indra, illustrious as the sun, invoked and invited, come straight to us, wholly without reserve, come for a drink of soma by horses fast as wings of the winds.

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    Translation

    O mighty ruler, O holder of fatal weapon you when called come towords me to drink the juice of herbs or to preserve the people. You come to me with two horses.

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    Translation

    O mighty ruler, O holder of fatal weapon you when called come towards me to drink the juice of herbs or to preserve the people. You come to me with two horses.

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    Translation

    O king or commander, equipped with sharp weapons like the thunderbolt, letest thou come to us with the two fast horses, yolked to thy chariot, for enjoying the fortunes ofthe nation, just in front of me (the chief-minister).

    Footnote

    cf. Rig, 3.41.(1-9).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-३।४१।१-९ ॥ १−(आ याहि) आगच्छ (तु) शीघ्रम् (नः) अस्मान् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (मद्र्यक्) ऋत्विग्दधृक्०। पा० ३।२।९। अस्मत्+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। प्रत्ययोत्तरपदयोश्च। पा० ७।२।९८। अस्मच्छब्दस्यैकवचने मपर्यन्तस्य म इत्यादेशः। विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतावप्रत्यये। पा० ६।३।९२। इति टेः अद्रि इत्यादेशः। माम् अञ्चति प्राप्नोति यः सः (हुवानः) हूयमानः (सोमपीतये) अ० १७।१।१। सोमानां पदार्थानां पीती रक्षणं यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन्-दयानन्दभाष्य ऋक्० १।२१।३। (हरिभ्याम्) अश्वसदृशाभ्यां व्यापकाभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् (अद्रिवः) अ० २०।२०।४। हे वज्रिन् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অদ্রিবঃ) হে বজ্রধারী (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [ঐশ্বর্যবান্ রাজন্] (সোমপীতয়ে) পদার্থসমূহের রক্ষার জন্য (হুবানঃ) আমন্ত্রিত, (মদ্র্যক্) আমাকে প্রাপ্ত তুমি (হরিভ্যাম্) দুই ঘোড়া [এর সমান ব্যাপক বল এবং পরাক্রম] দ্বারা (নঃ) আমাদের (তু) শীঘ্র (আ যাহি) প্রাপ্ত হও ॥১॥

    भावार्थ

    রাজা নিজের প্রজার পদার্থসমূহের রক্ষার জন্য বল ও পরাক্রমপূর্বক শীঘ্র উপায় করুক ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৩।৪১।১-৯ ॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (হুবানঃ) আহূত আপনি (মদ্র্যক্) আমার [উপাসকের] দিকে আসুন, (সোমপীতয়ে) আমার ভক্তিরস পান করার জন্য। (অদ্রিবঃ) হে পাপ ভক্ষণকারী! (হরিভ্যাম্) ঋক্ এবং সাম-এর স্তুতি এবং গান দ্বারা, আপনি (নঃ) আমাদের দিকে (তূ) শীঘ্র (আ যাহি) প্রবৃত্ত হন।

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