अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - सूक्त-२९
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इन्द्र॒मित्के॒शिना॒ हरी॑ सोम॒पेया॑य वक्षतः। उप॑ य॒ज्ञं सु॒राध॑सम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑म् । इत् । के॒शिना॑ । हरी॒ इति॑ । सो॒म॒ऽपेया॑य । व॒क्ष॒त॒: ॥ उप॑ । य॒ज्ञम् । सु॒ऽराध॑सम् ॥२९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमित्केशिना हरी सोमपेयाय वक्षतः। उप यज्ञं सुराधसम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रम् । इत् । केशिना । हरी इति । सोमऽपेयाय । वक्षत: ॥ उप । यज्ञम् । सुऽराधसम् ॥२९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(केशिना) सुन्दर केशों [कन्धे आदि के बालों] वाले, (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़े [के समान बल और पराक्रम] (सुराधसम्) महाधनी (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को (इत्) ही (सोमपेयाय) ऐश्वर्य की रक्षा के लिये (यज्ञम् उप) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] की ओर (वक्षतः) लावें ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य उत्तम उत्साही पुरुष का श्रेष्ठ वस्तुओं से आदर करके उसके योग्य प्रबन्ध से सुखी होवें ॥२॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का मिलान करो-२०।३।२ ॥ २−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम्। (इत्) एव (केशिना) प्रशस्तकेशयुक्तौ। स्कन्धादिचिक्कणबालोपेतौ (हरी) रथस्य वाहकावश्वाविव बलपराक्रमौ (सोमपेयाय) अचो यत् पा० ३।१।९७। सोम+पा रक्षणे-यत्। ईद्यति। पा० ६।४।६। आकारस्य ईकारः। ऐश्वर्यस्य रक्षणाय (वक्षतः) वह प्रापणे-लेट्। वहताम्। प्रापयताम् (उप) प्रति (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (सुराधसम्) बहुधनवन्तम् ॥
विषय
उप यज्ञ सुराधसम्
पदार्थ
१. (केशिना) = प्रकाश की रश्मियोंवाले (हरी) = इन्द्रियाश्व (इन्द्रम् इत्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के ही (उपवक्षत:) = समीप मुझे प्राप्त कराते हैं। मैं अपनी इन्द्रियों के द्वारा विषयों की ओर न जाकर प्रभु की ओर ही चलता हूँ। २. ये मेरे इन्द्रियाश्व (सोमपेयाय) = सोम के शरीर में ही पान [रक्षण] के लिए मुझे इन्द्र के समीप प्राप्त कराते हैं, जोकि (यज्ञम्) = यष्टव्य, पूजनीय है और (सुराधसम्) = उत्तम ऐश्वर्य व साफल्य प्राप्त करानेवाले हैं।
भावार्थ
प्रभु हमें सोम-रक्षण के योग्य बनाएँगे और हमें उत्तम सफलता प्राप्त कराएंगे।
भाषार्थ
(केशिना) ज्ञान और भक्ति का प्रकाश देनेवाले (हरी) चित्तहारी ऋक् और साम की स्तुतियाँ तथा भक्तिगान (सोमपेयाय) हमारे भक्तिरसों की स्वीकृति के लिए (इन्द्रम्) परमेश्वर को (इत्) अवश्य (सुराधसम्) उत्तम आराधनाओं के सम्पन्न (यज्ञम्) हमारे उपासना-यज्ञ में (उप वक्षतः) प्रकट कर देते हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Self-integration
Meaning
Radiations of light with expansive vibrations, herbs and trees with branches, leaves and filaments carry the spirit of divinity and nature’s energy to the creative centres of life’s bounty.
Translation
The sun and moon having rays in them being Indra, the air in the Yajna which is accomplished well to grasp the substance of the oblation offered in the fire.
Translation
The sun and moon having rays in them being Indra, the air in the Yajna which is accomplished well to, grasp the substance of the oblation offered in the fire.
Translation
The two refulgent horses carry Indra to the sacrifice, full of good fortunes, for enjoying Soma-ras.
Footnote
अध्यात्म —Pran and Apan—(horses); Indra—soul; sacrifice—deep meditation; Soma— bliss. In case of the Sun or electricity—Positive and negative electricity—horses; Indra— the Sun or electricity; sacrifice the solar-system or the factory; Soma—the well-being of humanity. In case of God—— सजीव-निर्जीव समाधि-horses, Indra—God, sacrifice-spiritual meditation. Soma—beatitude.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का मिलान करो-२०।३।२ ॥ २−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम्। (इत्) एव (केशिना) प्रशस्तकेशयुक्तौ। स्कन्धादिचिक्कणबालोपेतौ (हरी) रथस्य वाहकावश्वाविव बलपराक्रमौ (सोमपेयाय) अचो यत् पा० ३।१।९७। सोम+पा रक्षणे-यत्। ईद्यति। पा० ६।४।६। आकारस्य ईकारः। ऐश्वर्यस्य रक्षणाय (वक्षतः) वह प्रापणे-लेट्। वहताम्। प्रापयताम् (उप) प्रति (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (सुराधसम्) बहुधनवन्तम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(কেশিনা) প্রশস্ত কেশযুক্ত, (হরী) রথ বহনকারী দুই ঘোড়ার [সমান বল ও পরাক্রম] (সুরাধসম্) মহাধনী (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পুরুষকে] (ইৎ) ই (সোমপেয়ায়) ঐশ্বর্যের রক্ষার জন্য (যজ্ঞম্ উপ) যজ্ঞ [পূজনীয় ব্যবহার] এর দিকে (বক্ষতঃ) আনবে ॥২॥
भावार्थ
মনুষ্য উত্তম উৎসাহী পুরুষকে শ্রেষ্ঠ বস্তু দ্বারা আদর করে তাঁর যোগ্য ব্যবস্থা দ্বারা সুখী হোক ॥২॥ এই মন্ত্র মেলাও-২০।৩।২।
भाषार्थ
(কেশিনা) জ্ঞান এবং ভক্তির প্রকাশ প্রদানকারী (হরী) চিত্তহারী ঋক্ এবং সামবেদের স্তুতি তথা ভক্তিগান (সোমপেয়ায়) আমাদের ভক্তিরসের স্বীকৃতির জন্য (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরকে (ইৎ) অবশ্যই (সুরাধসম্) উত্তম আরাধনা সম্পন্ন (যজ্ঞম্) আমাদের উপাসনা-যজ্ঞে (উপ বক্ষতঃ) প্রকট করে।
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