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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-३८
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    इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑। इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इत् । गा॒थिन॑: । बृ॒हत् । इन्द्र॑म् । अ॒र्केभि॑: । अ॒र्किण॑: ॥ इन्द्र॑म् । वाणी॑: । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥३८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । गाथिन: । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभि: । अर्किण: ॥ इन्द्रम् । वाणी: । अनूषत ॥३८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 38; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गाथिनः) गानेवालों और (अर्किणः) विचार करनेवालों ने (अर्केभिः) पूजनीय विचारों से (इन्द्रम्) सूर्य [के समान प्रतापी], (इन्द्रम्) वायु [के समान फुरतीले] (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को और (वाणीः) वाणियों [वेदवचनों] को (इत्) निश्चय करके (बृहत्) बड़े ढंग से (अनूषत) सराहा है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य सुनीतिज्ञ, प्रतापी, उद्योगी राजा के व्यवहारों और परमेश्वर की दी हुई वेदवाणी के गुणों को विचारकर सबके सुख के लिये यथावत् उपाय करें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में हैं-१।७।१-३, सामवेद-उ०२।१।८ और आगे हैं-अ०२०।४७।४-६ तथा ७०–।७-९ और मन्त्र ४ सामवेद-पू०३।१।॥४−(इन्द्रम्) सूर्यमिव प्रतापिनम् (इत्) निश्चयेन (गाथिनः) उषिकुषिगर्त्तिभ्यस्थन्। उ०२।४। गायतेः-थन्प्रत्ययः, टाप्। व्रीह्यादिभ्यश्च। पा०।२।११६। गाथा-इनि। गानशीलाः (बृहत्) यथा भवति तथा। बृहद्भावेन (इन्द्रम्) वायुमिव शीघ्रगामिनम्। उद्योगिनम् (अर्केभिः) अ०३।३।२।पूजनीयविचारैः (अर्किणः) विचारवन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यन्तं राजानम् (वाणीः) वेदचतुष्टयीः (अनूषत) अ०२०।१७।१। स्तुतवन्तः ॥

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    विषय

    गाथिन:-अर्किणः

    पदार्थ

    १. (गाथिन:) = साम वाणियों का गायन करनेवाले (इत्) = निश्चय से (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (बृहत्) = खूब ही (अनूषत) = स्तुत करते हैं। २. (अर्किण:) = ऋड्मन्त्रों द्वारा अर्चन करनेवाले उपासक (अभि:) = ऋचाओं के द्वारा (इन्द्रम्) = उस प्रभु का ही पूजन करते हैं। ३. (वाणी:) = यजूरूप वाणियाँ भी (इन्द्रम्) = उस प्रभु को ही स्तुत करती हैं।

    भावार्थ

    हम 'ऋग-यजु-साम' मन्त्रों से प्रभु का ही पूजन करें।

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    भाषार्थ

    (गाथिनः) सामगान करनेवाले सामगानों द्वारा, (अर्किणः) ऋग्वेदी (अर्केभिः) ऋग्वेद की स्तुतियों द्वारा, (इन्द्रम् इत्) परमेश्वर का ही (बृहत् अनूषत) महास्तवन करते हैं, और (वाणीः) यजुर्वेद और अथर्ववेद की वाणियाँ भी (इन्द्रम् अनूृषत) परमेश्वर का ही महास्तवन करती हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    The singers of Vedic hymns worship Indra, infinite lord of the expansive universe, Indra, the Sun, lord of light, Indra, Vayu, Maruts, currents of energy, and Indra, the universal Divine voice, with prayers, mantras, actions and scientific research.

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    Translation

    The admirers praiser praise well the mighty ruler. The voices of theirs admire him.

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    Translation

    The admirers praiser praise well the mighty ruler. The voices of theirs admire him.

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    Translation

    The singers and the reciters of praise songs extol the mighty Lord alone. Even the Vedic verses praise Indra.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में हैं-१।७।१-३, सामवेद-उ०२।१।८ और आगे हैं-अ०२०।४७।४-६ तथा ७०–।७-९ और मन्त्र ४ सामवेद-पू०३।१।॥४−(इन्द्रम्) सूर्यमिव प्रतापिनम् (इत्) निश्चयेन (गाथिनः) उषिकुषिगर्त्तिभ्यस्थन्। उ०२।४। गायतेः-थन्प्रत्ययः, टाप्। व्रीह्यादिभ्यश्च। पा०।२।११६। गाथा-इनि। गानशीलाः (बृहत्) यथा भवति तथा। बृहद्भावेन (इन्द्रम्) वायुमिव शीघ्रगामिनम्। उद्योगिनम् (अर्केभिः) अ०३।३।२।पूजनीयविचारैः (अर्किणः) विचारवन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यन्तं राजानम् (वाणीः) वेदचतुष्टयीः (अनूषत) अ०२०।१७।१। स्तुतवन्तः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গাথিনঃ) গায়ক এবং (অর্কিণঃ) বিচারশীল মনুষ্যগণ (অর্কেভিঃ) পূজনীয় বিচার-সমূহকে (ইন্দ্রম্) সূর্য [এর সমান প্রতাপী], (ইন্দ্রম্) বায়ু [এর সমান শীঘ্রগামী] (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান রাজা] এর এবং (বাণীঃ) বাণীসমূহ [বেদবচন]কে (ইৎ) নিশ্চিতরূপে (বৃহৎ) যথার্থরূপে (অনূষত) প্রশংসা করেছে ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য সুনীতিজ্ঞ, প্রতাপী, উদ্যোগী রাজার ব্যবহার এবং পরমেশ্বর প্রদত্ত বেদবাণীর গুণ-সমূহ বিচার করে সকলের সুখের জন্য যথাবৎ উপায় করুক॥৪॥ মন্ত্র ৪-৬ ঋগ্বেদে আছে-১।৭।১-৩, সামবেদ-উ০২।১।৮ এবং আছে-অ০২০।৪৭।৪-৬ তথা ৭০।৭-৯ এবং মন্ত্র ৪ সামবেদ-পূ০৩।১।॥

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    भाषार्थ

    (গাথিনঃ) সামগানকারী সামগান দ্বারা, (অর্কিণঃ) ঋগ্বেদী (অর্কেভিঃ) ঋগ্বেদের স্তুতি-সমূহ দ্বারা, (ইন্দ্রম্ ইৎ) পরমেশ্বরেরই (বৃহৎ অনূষত) মহাস্তবন করে, এবং (বাণীঃ) যজুর্বেদ এবং অথর্ববেদের বাণীও (ইন্দ্রম্ অনূষত) পরমেশ্বরের মহাস্তবন করে।

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