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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 72/ मन्त्र 3
    ऋषिः - परुच्छेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - अत्यष्टिः सूक्तम् - सूक्त-७२
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    उ॒तो नो॑ अ॒स्या उ॒षसो॑ जु॒षेत॒ ह्यर्कस्य॑ बोधि ह॒विषो॒ हवी॑मभिः॒ स्व॑र्षाता॒ हवी॑मभिः। यदि॑न्द्र॒ हन्त॑वे॒ मृधो॒ वृषा॑ वज्रिं॒ चिके॑तसि। आ मे॑ अ॒स्य वे॒धसो॒ नवी॑यसो॒ मन्म॑ श्रुधि॒ नवी॑यसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । न॒: । अ॒स्या: । उ॒षस॑: । जु॒षेत॑ । हि । अ॒र्कस्य॑ । बो॒ध‍ि॒ । ह॒विष॑: । हवी॑मऽभि: । स्व॑:ऽसाता । हवी॑मऽभि: ॥ यत् । इ॒न्द्र॒ । हन्त॑वे । मृध॑: । वृषा॑ । व॒ज्रि॒न् । चिके॑तसि ॥ आ । मे॒ । अ॒स्य । वे॒धस॑: । नवी॑यस: । मन्म॑ । श्रु॒धि॒ । नवी॑यस: ॥७२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो नो अस्या उषसो जुषेत ह्यर्कस्य बोधि हविषो हवीमभिः स्वर्षाता हवीमभिः। यदिन्द्र हन्तवे मृधो वृषा वज्रिं चिकेतसि। आ मे अस्य वेधसो नवीयसो मन्म श्रुधि नवीयसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति । न: । अस्या: । उषस: । जुषेत । हि । अर्कस्य । बोध‍ि । हविष: । हवीमऽभि: । स्व:ऽसाता । हवीमऽभि: ॥ यत् । इन्द्र । हन्तवे । मृध: । वृषा । वज्रिन् । चिकेतसि ॥ आ । मे । अस्य । वेधस: । नवीयस: । मन्म । श्रुधि । नवीयस: ॥७२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 72; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (नः) हमारे बीच में (उतो) निश्चय करके ही वह [जिज्ञासु पुरुष] (अस्याः) इस (उषसः) उषा [प्रभात वेला] का (जुषेत) सेवन करें और (हवीमभिः) ग्रहण करने योग्य व्यवहारों और (हवीमभिः) देने योग्य पदार्थों से (हि) ही (स्वर्षाता) सख के सेवन में (अर्कस्य) पूजनीय परमात्मा के (हविषः) ग्रहण का (बोधि) बोध करें। (यत्) क्योंकि (वज्रिन्) हे दण्डदाता (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (वृषा) सुखों का बरसानेवाला महाबलवान् तू (मृधः) हिंसक वैरियों के (हन्तवे) मारने को (चिकेतसि) जानता है, [इसलिये] (मे) मुझ (नवीयसः) अधिक नवीन [अभ्यासी ब्रह्मचारी] और (अस्य) उस (नवीयसः) अधिक स्तुतियोग्य (वेधसः) बुद्धिमान् [आचार्य] के (मन्म) मननयोग्य कथन को (आ) अच्छे प्रकार (श्रुधि) सुन ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे प्रातःकाल में प्रकाश बढ़ता जाता है, वैसे ही मनुष्य उत्तम-उत्तम व्यवहारों के लेने-देने से परमात्मा की भक्ति बढ़ावें, वह जगदीश्वर विघ्ननाशक है। उसकी उपासना नवीन अभ्यासी ब्रह्मचारी और सुबोध आचार्य आदि सब लोग करते रहें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(उतो) निश्चयेन (नः) अस्माकं मध्ये (अस्याः) दृश्यमानायाः (उषसः) प्रभातवेलायाः (जुषेत) सेवेत। सेवनं कुर्यात् (हि) अवधारणे (अर्कस्य) पूजनीयस्य परमात्मनः (बोधि) बुध अवगमने-लिङर्थे लुङ् प्रथमपुरुषस्यैकवचनम्। बोधं कुर्यात् (हविषः) आदानस्य। ग्रहणस्य (हवीमभिः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७। हु दानादानयोः-मनिन्, ईडागमः। ग्राह्यव्यवहारैः (स्वर्षाता) विभक्तेर्डा। सुखस्य सेवने (हवीमभिः) दातव्यपदार्थैः (यत्) यतः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (हन्तवे) तवेन् प्रत्ययः। हन्तुं नाशयितुम् (मृधः) हिंसकान् शत्रून् (वृषा) सुखस्य वर्षकः। बलिष्ठः (वज्रिन्) हे दण्डदातः (चिकेतसि) कित ज्ञाने, जौहोत्यादिकः, लेटि अडागमः। जानासि (आ) समन्तात् (मे) मम (अस्य) तस्य (वेधसः) मेधाविनः (नवीयसः) नव-ईयसुन्। नवीनतरस्य। अभ्यासिनो ब्रह्मचारिणः (मन्म) मननीयं कथनम् (श्रुधि) शृणु (नवीयसः) नवतरस्य। स्तुत्यतरस्य। सुबोधाचार्यस्य ॥

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    विषय

    प्रातः जागरण-ध्यान व हवन

    पदार्थ

    १. प्रभु कहते हैं कि मनुष्य (उत उ) = निश्चय से (न:) = हमारी (अस्याः उषस:) = इस उषा का (जुषेत) = प्रीतिपूर्वक सेवन करे, अर्थात् हम प्रात:काल जाग जाएँ। यह प्रात:जागरण हमें प्रभु का प्रिय बनाएगा। (हि) = निश्चय से (अर्कस्य) = स्तुतिमन्त्रों को (बोधि) = जानें। हम प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले बनें। (हवीमभि:) = प्रभु पुकारों के साथ (हविष:) = हवि को (बोधि) = जानें, अर्थात् हम प्रभु की प्रार्थना के साथ अग्निहोत्र करनेवाले बनें। २. हे (इन्द्र) = त्रुओं का संहार करनेवाले प्रभो! आप (हवीमभि:) = हमारी प्रार्थनाओं के साथ (स्वर्षाता) = स्वर्ग-प्रासि की साधनभूत हवियों को जानिए। हम स्तुति के साथ अग्निहोत्र अवश्य करें। (वृषा) = शक्तिशाली (वज्रिन्) = क्रियाशीलतारूप वज्रवाले प्रभो! आप (मृधः) = शत्रुओं को (हन्तवे चिकेतसि) = मारने के लिए जानते हो। आप (नवीयस:) = अतिशयेन स्तवन करनेवाले (वेधसः) = मे मेधावी मेरे मन्म-स्तोत्र को आशुधि-सर्वथा श्रवण कीजिए। (नवीयस:) = नवतर जीवनवाले मेरे स्तवन को अवश्य ही सुनिए।

    भावार्थ

    हम प्रातः जागें, प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त हों, अग्निहोत्र करें। प्रभु हमारे काम आदि शत्रुओं का संहार करेंगे। हम मेधावी व नमनशील बनकर स्तोत्रों का उच्चारण करें। इसप्रकार उत्तम जीवनवाले हम 'वसिष्ठ' होंगे। यह वसिष्ठ अगले सूक्त में प्रथम तीन मन्त्रों का ऋषि है। काम आदि शत्रुओं का संहार करके उत्तम वसुओं को प्राप्त करनेवाले [कामति गच्छति] 'वसुक्र' होंगे। ४-६ तक यही ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (उत उ) तथा परमेश्वर (नः) हमारे (अस्याः उषसः) जीवनों के इन उषाकालों को (जुषेत) प्रीतिपूर्वक स्वीकार करता है, और (हवीमभिः) हमारी पुकारों के कारण, (हि) निश्चय से, (अर्कस्य) हमारी स्तुतियों और (हविषः) आत्माहुतियों अर्थात् आत्म-समर्पणों को (बोधि) जानता पहिचानता है। और (हविमभिः) हमारी पुकारों के कारण, (स्वर्षाता) हमें स्वर्गीय सुख प्रदान करने के निमित्त, हमारी स्तुतियों और आत्मसमर्पणों को ध्यान में रखता है। (यद्) क्योंकि (वज्रिन्) हे न्यायवज्रधारी (इन्द्र) परमेश्वर! आप (मृधः) संग्रामकारी कामादि के (हन्तवे) हनन के लिए, समुचित साधनों को, (चिकेतसि) सम्यक् प्रकार से जानते हैं, (वृषा) और इनके हनन के पश्चात् आप सुख और आनन्द की वर्षा करते हैं। (मे अस्य) मुझ इस (नवीयसः) नवीन (वेधसः) मेधावी उपासक की (मन्म) मननीय-स्तुतियों को (आश्रुधि) पूर्णतया सुनिए, (नवीयसः) मुझ नवीन उपासक की स्तुतियों को अवश्य सुनिए।

    टिप्पणी

    [जुषेत=जुष् प्रीतिसेवनयोः। अर्कस्यः=अर्कः मन्त्रः यदनेनार्चन्ति (निरु০ ५.१.४)। उषसः=जीवन का उषाकाल, जबकि उपासक प्रथम बार उपासनामार्ग पर पदार्पण कर आन्तर-प्रकाश पाता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Indra, lord of light, now listen and accept this our joyous celebration of the light of the dawn, know this prayer and, O shower of light and joy, accept our invocation and holy offerings since, O wielder of the thunderbolt, lord of generosity, you keep awake for us for the elimination of violence. Listen to this newest prayer of mine made in full knowledge in worship, listen and accept this latest thought and petition.

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    Translation

    Also, the mystics take benefit of this dawn and through the adorations know the praiseworthy God as he may attain happines by prayers and meditations. O holder of thunderbolt, when strong you think of dispelling the ignorance passions etc. you hear of the prayer of me who is a new sage and really a new sage.

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    Translation

    Also, the mystics take benefit of this dawn and through the adorations know the praiseworthy God as he may attain happiness by prayers and meditations. O holder of thunderbolt, whea strong you think of dispelling the ignorance passions etc. you hear of the prayer of me who is a new sage and really a new sage.

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    Translation

    Let the Worship-Worthy God accept our prayers, at this time of dawn, and know of our faithful devotion along with the praises. He is the Showerer of Bliss through our offerings. O Mighty God of Destruction of forces of evil and ignorance, when Thou, the Most-powerful. One energises us to,smash our enemies, like Kama, Krodha, etc with the great spiritual force, deadly like the thunderbolt, lettest Thou listen to the well-meditated prayer of me, this newly enlightened devotee of Thine.

    Footnote

    The verse also applies to the yogis.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(उतो) निश्चयेन (नः) अस्माकं मध्ये (अस्याः) दृश्यमानायाः (उषसः) प्रभातवेलायाः (जुषेत) सेवेत। सेवनं कुर्यात् (हि) अवधारणे (अर्कस्य) पूजनीयस्य परमात्मनः (बोधि) बुध अवगमने-लिङर्थे लुङ् प्रथमपुरुषस्यैकवचनम्। बोधं कुर्यात् (हविषः) आदानस्य। ग्रहणस्य (हवीमभिः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७। हु दानादानयोः-मनिन्, ईडागमः। ग्राह्यव्यवहारैः (स्वर्षाता) विभक्तेर्डा। सुखस्य सेवने (हवीमभिः) दातव्यपदार्थैः (यत्) यतः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (हन्तवे) तवेन् प्रत्ययः। हन्तुं नाशयितुम् (मृधः) हिंसकान् शत्रून् (वृषा) सुखस्य वर्षकः। बलिष्ठः (वज्रिन्) हे दण्डदातः (चिकेतसि) कित ज्ञाने, जौहोत्यादिकः, लेटि अडागमः। जानासि (आ) समन्तात् (मे) मम (अस्य) तस्य (वेधसः) मेधाविनः (नवीयसः) नव-ईयसुन्। नवीनतरस्य। अभ्यासिनो ब्रह्मचारिणः (मन्म) मननीयं कथनम् (श्रुधि) शृणु (नवीयसः) नवतरस्य। स्तुत्यतरस्य। सुबोधाचार्यस्य ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নঃ) আমাদের মধ্যে (উতো) নিশ্চিতরূপে সেই [জিজ্ঞাসু পুরুষ] (অস্যাঃ) এই (উষসঃ) ঊষার [প্রভাত বেলার] (জুষেত) সেবান করুক এবং (হবীমভিঃ) গ্রহণযোগ্য ব্যবহার ও (হবীমভিঃ) দান যোগ্য পদার্থসমূহ দ্বারা (হি)(স্বর্ষাতা) সুখের সেবনে (অর্কস্য) পূজনীয় পরমাত্মার (হবিষঃ) গ্রহণের (বোধি) বোধ/উপলব্ধি করে/করুক। (যৎ) কারণ (বজ্রিন্) হে দণ্ডদাতা (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মন্] (বৃষা) সুখ বর্ষণকারী মহাবলবান্ আপনি (মৃধঃ) হিংসক শত্রুদের (হন্তবে) নাশ করতে (চিকেতসি) জানেন, [এজন্য] (মে) আমার ন্যায় (নবীয়সঃ) অধিক নবীন [অভ্যাসী ব্রহ্মচারী] এবং (অস্য) সেই (নবীয়সঃ) অধিক স্তুতিযোগ্য (বেধসঃ) বুদ্ধিমান্ [আচার্য] এর (মন্ম) মননযোগ্য কথন (আ) উত্তম প্রকারে (শ্রুধি) শ্রবণ করুন ॥৩॥

    भावार्थ

    যেভাবে প্রাতঃকালে আলোক বাড়তে থাকে, তেমনই মনুষ্যগণ পরস্পরের প্রতি উত্তম ব্যবহারের মাধ্যমে পরমাত্মার প্রতি ভক্তি বৃদ্ধি করুক, জগদীশ্বর বিঘ্ননাশক। সেই পরমেশ্বরের উপাসনা নবীন অভ্যাসী ব্রহ্মচারী এবং সুবোধ আচার্য সহ সকলেই করে থাকে ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (উত উ) তথা পরমেশ্বর (নঃ) আমাদের (অস্যাঃ উষসঃ) জীবনের এই ঊষাকাল (জুষেত) প্রীতিপূর্বক স্বীকার করেন, এবং (হবীমভিঃ) আমাদের আহ্বানের কারণে, (হি) নিশ্চিতরূপে, (অর্কস্য) আমাদের স্তুতি এবং (হবিষঃ) আত্মাহুতি অর্থাৎ আত্ম-সমর্পণ (বোধি) জানেন। এবং (হবিমভিঃ) আমাদের আহ্বানের কারণে, (স্বর্ষাতা) আমাদের স্বর্গীয় সুখ প্রদানের জন্য, আমাদের স্তুতি এবং আত্মসমর্পণ স্মরণ রাখেন। (যদ্) কেননা (বজ্রিন্) হে ন্যায়বজ্রধারী (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! আপনি (মৃধঃ) সংগ্রামকারী কামাদির (হন্তবে) হননের জন্য, সমুচিত সাধন-সমূহকে, (চিকেতসি) সম্যক্ প্রকারে জানেন, (বৃষা) এবং এগুলোর হননের পর আপনি সুখ এবং আনন্দের বর্ষা করেন। (মে অস্য) আমি এই (নবীয়সঃ) নবীন (বেধসঃ) মেধাবী উপাসকই (মন্ম) মননীয়-স্তুতি-সমূহকে (আশ্রুধি) পূর্ণরূপে শ্রবণ করুন, (নবীয়সঃ) আমার নবীন উপাসকের স্তুতি অবশ্যই শ্রবণ করুন।

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