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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 76/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६
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    कस्ते॒ मद॑ इन्द्र॒ रन्त्यो॑ भू॒द्दुरो॒ गिरो॑ अ॒भ्युग्रो वि धा॑व। कद्वाहो॑ अ॒र्वागुप॑ मा मनी॒षा आ त्वा॑ शक्यामुप॒मम्राधो॒ अन्नैः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क । ते॒ । मद॑: । इ॒न्द्र॒ । रन्त्य॑: । भू॒त् । दुर॑: । गिर॑: । अ॒भि । उ॒ग्र: । वि । धा॒व॒ ॥ कत् । वाह॑: । अ॒र्वाक् । उप॑ । मा॒ । म॒नी॒षा । आ । त्वा॒ । श॒क्या॒म् । उ॒प॒ऽमम् । राध॑: । अन्नै॑: ॥७६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्ते मद इन्द्र रन्त्यो भूद्दुरो गिरो अभ्युग्रो वि धाव। कद्वाहो अर्वागुप मा मनीषा आ त्वा शक्यामुपमम्राधो अन्नैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क । ते । मद: । इन्द्र । रन्त्य: । भूत् । दुर: । गिर: । अभि । उग्र: । वि । धाव ॥ कत् । वाह: । अर्वाक् । उप । मा । मनीषा । आ । त्वा । शक्याम् । उपऽमम् । राध: । अन्नै: ॥७६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (कः) कौनसा (ते) तेरा (मदः) हर्ष (रन्त्यः) [हमारे लिये] आनन्ददायक (भूत्) होवे, (उग्रः) तेजस्वी तू (गिरः) स्तुतियों को (अभि) प्राप्त होकर (दुरः) [हमारे] द्वारों पर (वि धाव) दौड़ता आ। (कत्) कब (वाहः) वाहन [घोड़ा रथ आदि] (मनीषा) बुद्धि के साथ (मा उप) मेरे समीप (अर्वाक्) सामने [होवे], और (उपमम्) समीपस्थ (त्वा) तुझको (आ) प्राप्त होकर (अन्नैः) अन्नों के सहित (राधः) धन (शक्याम्) पाने को समर्थ हो जाऊँ ॥३॥

    भावार्थ

    प्रजागण पुरुषार्थी धार्मिक राजा का आदरपूर्वक निमन्त्रण करके उन्नति के उपायों का विचार करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(कः) (ते) तव (मदः) हर्षः (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (रन्त्यः) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। रमु क्रीडायाम्-तिप्रत्ययः। हितार्थे यत्। रन्तये रमणाय हितः। रमयिता। प्रीतिकरः (भूत्) भवेत् (दुरः) अस्माकं द्वाराणि (गिरः) स्तुतीः (अभि) अभिगत्य। प्राप्य (उग्रः) तेजस्वी (वि) विविधम् (धाव) धावु गतिशुद्ध्योः। शीघ्रमागच्छ (कत्) कदा (वाहः) वाहकः। अश्वरथादिकः (अर्वाक्) अभिमुखः (उप) उपेत्य (मा) माम् (मनीषा) प्रज्ञया (आ) आगत्य। प्राप्य (त्वा) त्वाम् (शक्याम्) प्राप्तुं शक्नुयाम् (उपमम्) समीपस्थम् (राधः) धनम् (अन्नैः) अदनीयपदार्थैः ॥

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    विषय

    रन्त्यः मदः

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (ते मदः) = आपकी प्राप्ति का मद (क:) = अनिर्वचनीय आनन्द देनेवाला है और (रन्त्यः भूत्) = रमणीय है। प्रभु को प्राप्त करनेवाला व्यक्ति एक अवर्णनीय सुख का अनुभव करता है और उसे सारा संसार सुन्दर-ही-सुन्दर प्रतीत होता है। २. (अभि उग्रः) = आप अतिशयेन तेजस्वी हो। (दुरः) = मेरे इन्द्रिय द्वारों को तथा (गिरः) = ज्ञानवाणियों को (विधाव) = विशेषरूप से शुद्ध कर दीजिए। आपकी तेजस्विता मेरी सब मलिनताओं को नष्ट कर दे। ३. हे प्रभो! (कत्) = मुझे कब (वाहः) = इधर-उधर भटकानेवाला यह मन (अर्वाक्) = अन्तर्मुख होगा और (कत्) = कब (मा) = मुझे (मनीषा) = बुद्धि (उप) = आपके समीप पहुँचानेवाली होगी। ४. हे प्रभो! आप 'इन्द्रियशुद्धि, मन की अन्तर्मुखीवृत्ति तथा मनीषा की प्रामि' के द्वारा मुझे इस योग्य बनाइए कि (उपमम्) = अन्तिकतम-अत्यन्त समीप हृदय में ही निवास करनेवाले (त्वा) = आपको (आशक्याम्) = प्राप्त होने में समर्थ होऊँ और (अन्नै:) = अन्नों के साथ (राधः) = कार्यसाधक धन को भी प्राप्त कर सकूँ। अन्न व धन को प्राप्त करके मैं मार्ग पर आगे बढुंगा तथा आपका स्मरण मुझे मार्गभ्रष्ट होने से बचाएगा।

    भावार्थ

    हम प्रभु-प्राप्ति के लिए यत्नशील हों। प्रभु हमारी इन्द्रियों को शद्ध करें, मन को अन्तर्मुख करें तथा हमें बुद्धि-सम्पन्न बनाएँ। अन्न व धन को प्राप्त करके हम आगे बढ़ें और प्रभु-प्रासि के मार्ग पर चलनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ते) आप का (कः) कौनसा (मदः) मस्ताना आनन्दरस है, जो कि उपासक को (रन्त्यः) रमणीय (भूत्) प्रतीत हुआ है, जो (उग्रः) उग्र आनन्दरस कि (गिरः दुरः) वेदवाणियों के घर आप में (वि धाव) विशेषतया प्रकट हो रहा है? तथा हे परमेश्वर! (कद्) कब आपकी (मनीषा) मनोवाञ्छा, (मा) मुझे (अर्वाक्) आप की ओर, और (उप) आप के समीप, (अभि वाहः) ले जायगी? ताकि मैं (अन्नैः) अन्नमय शरीर, इन्द्रियों और मन द्वारा (त्वा) आपके प्रति (उपमम्) उपमायोग्य (राधः) आराधना-धन, या आत्मसमर्पणधन (आ शक्याम्) भेंट करने में सशक्त हो सकूं।

    टिप्पणी

    [वि धाव=वि धावति। गिरो दुरः, दुरः=द्वार, तत्सम्बन्धी गृह।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    What is the most exhilarating song of prayer and presentation dear to you? O lustrous lord of force and power, come to us by the doors of yajna in response to our songs of invocation. Harbinger of power and peace, when shall I see you face to face? When will my prayer be fruitful? When shall I be able to regale you with homage and adoration, most eminent master and ruler? What is the most exhilarating song of prayer and presentation dear to you? O lustrous lord of force and power, come to us by the doors of yajna in response to our songs of invocation. Harbinger of power and peace, when shall I see you face to face? When will my prayer be fruitful? When shall I be able to regale you with homage and adoration, most eminent master and ruler?

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    Translation

    O Almighty God, what is your most gladdening blessedness. O victorious one, you like the entrances give the Vedic speeches. When like a stream you will be the object of our realization ? When the intuition will dawn to us? When in your communion I will enjoy the spiritual wealth with other supporting means, the corn, grain etc.

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    Translation

    O Almighty God, what is your most gladdening blessedness, O victorious one, you like the entrances give the Vedic speeches. When like a stream you will be the object of our realization ? When the intuition will dawn to us ? When in your communion I will enjoy the spiritual wealth with other supporting means, the corn, grain etc.

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    Translation

    O Mighty Lord of Bliss, what is this exhilarating spirit of Thine which is so charming and pleasure-giving. Lets! Thee rush towards our praise-songs as people do towards the doors of their houses. When wilt Thou reveal Thy current of constant bliss to me; fully controlling my mind, so that I may enjoy all the wealth of glorious bliss, being near Thee, through all means of enjoyment.

    Footnote

    God’s rushing towards devotees’ songs means readily accepting them. Pt. Jaidev-has applied all the verses of this Sukta to king also.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(कः) (ते) तव (मदः) हर्षः (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (रन्त्यः) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। रमु क्रीडायाम्-तिप्रत्ययः। हितार्थे यत्। रन्तये रमणाय हितः। रमयिता। प्रीतिकरः (भूत्) भवेत् (दुरः) अस्माकं द्वाराणि (गिरः) स्तुतीः (अभि) अभिगत्य। प्राप्य (उग्रः) तेजस्वी (वि) विविधम् (धाव) धावु गतिशुद्ध्योः। शीघ्रमागच्छ (कत्) कदा (वाहः) वाहकः। अश्वरथादिकः (अर्वाक्) अभिमुखः (उप) उपेत्य (मा) माम् (मनीषा) प्रज्ञया (आ) आगत्य। प्राप्य (त्वा) त्वाम् (शक्याम्) प्राप्तुं शक्नुयाम् (उपमम्) समीपस्थम् (राधः) धनम् (अन्नैः) अदनीयपदार्थैः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহাপ্রতাপী রাজন্] (কঃ) কোন (তে) তোমার (মদঃ) হর্ষ (রন্ত্যঃ) [আমাদের জন্য] আনন্দদায়ক (ভূৎ) হয়, (উগ্রঃ) তেজস্বী তুমি (গিরঃ) স্তুতি (অভি) প্রাপ্ত হয়ে (দুরঃ) [আমাদের] দ্বারে (বি ধাব) শীঘ্র আগমন করো। (কৎ) কবে (বাহঃ) বাহন [ঘোড়া রথ আদি] (মনীষা) বুদ্ধির সহিত (মা উপ) আমার সমীপে (অর্বাক্) সামনে [হবে] এবং (উপমম্) সমীপস্থ (ত্বা) তোমাকে (আ) প্রাপ্ত হয়ে (অন্নৈঃ) অন্নের সহিত আমরা (রাধঃ) ধন (শক্যাম্) প্রাপ্তির ক্ষেত্রে সমর্থ্য হয়ে যাই ॥৩॥

    भावार्थ

    প্রজাগণ পুরুষার্থী ধার্মিক রাজাকে আদরপূর্বক নিমন্ত্রণ করে উন্নতির উপায় বিচার করুক॥৩॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তে) আপনার (কঃ) কোন (মদঃ) আনন্দরস আছে, যা উপাসকের (রন্ত্যঃ) রমণীয় (ভূৎ) প্রতীত হয়েছে, যে (উগ্রঃ) উগ্র আনন্দরস (গিরঃ দুরঃ) বেদবাণীর ঘর আপনার মধ্যে (বি ধাব) বিশেষভাবে প্রকট হচ্ছে? তথা হে পরমেশ্বর! (কদ্) কখন আপনার (মনীষা) মনোবাঞ্ছা, (মা) আমাকে (অর্বাক্) আপনার দিকে, এবং (উপ) আপনার সমীপে, (অভি বাহঃ) নিয়ে যাবে? যাতে আমি (অন্নৈঃ) অন্নময় শরীর, ইন্দ্রিয়-সমূহ এবং মন দ্বারা (ত্বা) আপনার প্রতি (উপমম্) উপমাযোগ্য (রাধঃ) আরাধনা-ধন, বা আত্মসমর্পণধন (আ শক্যাম্) সমর্পিত করার ক্ষেত্রে সশক্ত হই/হতে পারি।

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