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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 76/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६
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    प्रेर॑य॒ सूरो॒ अर्थं॒ न पा॒रं ये अ॑स्य॒ कामं॑ जनि॒धा इ॑व॒ ग्मन्। गिर॑श्च॒ ये ते॑ तुविजात पू॒र्वीर्नर॑ इन्द्र प्रति॒शिक्ष॒न्त्यन्नैः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ई॒र॒य॒ । सूर॑: । अर्थ॑म् । न । पा॒रम् । ये । अ॒स्य॒ । काम॑म् । ज॒नि॒धा:ऽइ॑व । ग्मन् ॥ गिर॑: । च॒ । ये । ते॒ । तु॒वि॒जा॒त॒ । पू॒र्वी: । नर॑: । इ॒न्द्र॒ । प्र॒ति॒ऽशिक्ष॑न्ति । अन्नै॑: ॥७६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रेरय सूरो अर्थं न पारं ये अस्य कामं जनिधा इव ग्मन्। गिरश्च ये ते तुविजात पूर्वीर्नर इन्द्र प्रतिशिक्षन्त्यन्नैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । ईरय । सूर: । अर्थम् । न । पारम् । ये । अस्य । कामम् । जनिधा:ऽइव । ग्मन् ॥ गिर: । च । ये । ते । तुविजात । पूर्वी: । नर: । इन्द्र । प्रतिऽशिक्षन्ति । अन्नै: ॥७६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (तुविजात) हे बहुत प्रकार से प्रसिद्ध (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (सूरः न) सूर्य के समान तू [उनको] (अर्थम्) पाने योग्य (पारम्) पार की ओर (प्र ईरय) आगे बढ़ा (ये) जो (जनिधाः इव) वीरों को उत्पन्न करनेवाली पत्नियों के धारण करनेवाले के समान (अस्य) उस [तेरे] (कामम्) मनोरथ को (ग्मन्) प्राप्त होते हैं, (च) और (ये) जो (नरः) नेता लोग (ते) तेरे लिये (पूर्वीः) सनातन (गिरः) वाणियों [विद्याओं] को (अन्नैः) अन्नों के साथ (प्रतिशिक्षन्ति) समर्पण करते हैं ॥॥

    भावार्थ

    जैसे मनुष्य वीरसू पत्नी का प्रयत्नपूर्वक आदर करते हैं, वैसी ही राजा हितैषी नेता पुरुषों की उन्नति में तत्पर रहें ॥॥

    टिप्पणी

    −(प्र) प्रकर्षेण (ईरय) गमय (सूरः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। षू प्रेरणे-क्रन्। सूर्यः (अर्थम्) उषिकुषिगर्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। ऋ गतौ-थन्। अरणीयं प्रापणीयम् (न) यथा (पारम्) परतीरम् (ये) पुरुषाः (अस्य) त्वदीयस्य (कामम्) मनोरथम् (जनिधाः) अ० २।३०।। जनि+दधातेः-क्विप्। जनीनां वीरपुत्रजनयित्रीणां पत्नीनां धर्तारः (इव) यथा (ग्मन्) अगमन्। प्राप्नुवन्ति (गिरः) वाणीः। विद्याः (च) (ये) (ते) तुभ्यम् (तुविजात) बहुप्रसिद्ध (पूर्वीः) सनातनीः (नरः) नेतारः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्रतिशिक्षन्ति) शिक्षतिर्दानकर्मा-निघ० ३।२०। प्रत्यक्षं ददति। समर्पयन्ति (अन्नैः) ॥

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    विषय

    भवसागर के पार

    पदार्थ

    १.हे प्रभो! आप (सूरः न) = सूर्य के समान हैं-आप हमारे हृदयाकाशों को प्रकाशित करनेवाले हैं और हमें कर्मों की प्रेरणा देनेवाले हैं। आप अर्थ (प्रेरय:) = 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' रूप पुरुषार्थों की हमें प्रेरणा दीजिए। (पारम्) = आप हमें इस भवसागर के पार प्राप्त कराइए। आपकी प्रेरणा से धर्मपूर्वक धनों का अर्जन करते हुए और उनके द्वारा उचित आनन्दों का उपभोग करते हुए हम मोक्ष के अधिकारी हों। २. हे प्रभो! आप उन्हें भवसागर से पार कीजिए ये जो (अस्य) = इन आपकी (कामम्) = इच्छा को जनिधा (इव) = विकास को धारण करनेवाले की भांति (ग्मन्) = प्राप्त होते हैं, अर्थात् प्रभु की कामना के अनुसार कार्यों को करते हुए जीवन में शक्तियों का विकास करते हैं और इसप्रकार प्रभु के प्रिय बनकर ये मोक्ष को प्राप्त होते हैं। ३. हे (तुविजात) = महान् विकास को प्राप्त करानेवाले इन्द्र-प्रभो! (ये च नर:) = और जो लोग ते आपकी (पूर्वी:) = सृष्टि के प्रारम्भ में दी जानेवाली अथवा हमारे जीवनों का पूरण करनेवाली (गिर:) = वेदवाणियों को (अन्नै:) = सात्विक अन्नों के द्वारा शुद्ध अन्त:करणवाले होकर (प्रतिशिक्षन्ति) = एक-एक करके सीखते हैं, इन लोगों को आप अवश्य भवसागर के पार प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    हम सात्त्विक अन्नों के सेवन के द्वारा शुद्ध अन्त:करणवाले होकर, वेदवाणियों का प्रकाश प्राप्त करें। उनके अनुसार कर्त्तव्यकर्मों को करते हुए भवसागर से पार हो जाएँ।

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    भाषार्थ

    (ये) जो उपासक (अस्य) इस परमेश्वर की (कामम्) कामना को (ग्मन्) पूरा करते हैं, (इव) जैसे कि (जनिधाः) जन्मदाता पिता-पुत्र की कामना को पूरा करता है,—तब (सूरः) प्रेरक आप, हे परमेश्वर! उपासकों की (अर्थम् न) अभ्यर्थनाओं को (प्रेरय) प्रेरित कीजिए, सफल कीजिए, जो अभ्यर्थनाएँ कि उपासकों को (पारम्) भवसागर से पार कर देती हैं। (तुविजात) हे बहुतों में प्रकट होनेवाले (इन्द्र) परमेश्वर! (ये) जो (नरः) उपासक-नेता (ते) आप की (पूर्वीः) अनादि (गिरः च) वेदवाणियों की (अन्नैः प्रति शिक्षन्ति) शिक्षा प्रत्येक को, अपने प्राणों की आहुतियाँ देकर करते हैं, उनकी अभ्यर्थनाओं को आप पूर्ण कर देते हैं।

    टिप्पणी

    [अर्थं न पारम्=जैसे सांसारिक-धन सांसारिक कष्टों से पार करता है, वैसे आध्यात्मिक धन अविद्याजनित कष्टों से पार करता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, like the sun that leads from darkness to light, inspire and lead humanity to the attainment of their desire for freedom across the world, all who entertain this ambition like their love for home life earlier. O lord of infinite manifestation, bless all those people who adore you with songs of universal exhortation, who guide others to sing and pray with universal voice, and who offer homage to divinity with foods and charity in various forms. Indra, like the sun that leads from darkness to light, inspire and lead humanity to the attainment of their desire for freedom across the world, all who entertain this ambition like their love for home life earlier. O lord of infinite manifestation, bless all those people who adore you with songs of universal exhortation, who guide others to sing and pray with universal voice, and who offer homage to divinity with foods and charity in various forms.

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    Translation

    O powerful Divinity, you like sun speed up towards their final goal the people who like bride grooms have attain the desired end of this world and those persons who impart the knowledge of your Vedic speech full of all perfections through the medium of enjoyable means.

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    Translation

    O powerful Divinity, you like sun speed up towards their final goal the people who like bride grooms have attain the desired end of this world and those persons who impart the knowledge of your Vedic speech full of all perfections through the medium of enjoyable means.

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    Translation

    O Mighty Lord of High Renown and Glory, energise those, who enable this soul to attain his highest object and desire of salvation, like the husbands fulfilling the wishes of their wives and the Sun lights up mobiling all objects, and also those, who offer Thee their praise-songs, full of right knowledge and purpose, along with all means of sustenance.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(प्र) प्रकर्षेण (ईरय) गमय (सूरः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। षू प्रेरणे-क्रन्। सूर्यः (अर्थम्) उषिकुषिगर्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। ऋ गतौ-थन्। अरणीयं प्रापणीयम् (न) यथा (पारम्) परतीरम् (ये) पुरुषाः (अस्य) त्वदीयस्य (कामम्) मनोरथम् (जनिधाः) अ० २।३०।। जनि+दधातेः-क्विप्। जनीनां वीरपुत्रजनयित्रीणां पत्नीनां धर्तारः (इव) यथा (ग्मन्) अगमन्। प्राप्नुवन्ति (गिरः) वाणीः। विद्याः (च) (ये) (ते) तुभ्यम् (तुविजात) बहुप्रसिद्ध (पूर्वीः) सनातनीः (नरः) नेतारः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्रतिशिक्षन्ति) शिक्षतिर्दानकर्मा-निघ० ३।२०। प्रत्यक्षं ददति। समर्पयन्ति (अन्नैः) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তুবিজাত) হে বহু প্রসিদ্ধ (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ রাজন্] (সূরঃ ন) সূর্যের সমান তুমি [তাঁদের] (অর্থম্) প্রাপ্তিযোগ্য (পারম্) পারে/লক্ষ্যে (প্র ঈরয়) উত্তমরূপে গমন/প্রেরণ করাও, (যে) যারা (জনিধাঃ ইব) বীরপুত্রের জন্মদাত্রী পত্নীদের ধারকের সমান (অস্য) সেই প্রসিদ্ধ [তোমার] (কামম্) মনোরথকে (গ্মন্) প্রাপ্ত হয়, (চ) এবং (যে) যে সকল (নরঃ) নেতাগণ (তে) তোমার জন্য (পূর্বীঃ) সনাতন, চিরন্তন (গিরঃ) বাণী সমূহকে [বিদ্যাকে] (অন্নৈঃ) অন্নের সহিত (প্রতিশিক্ষন্তি) সমর্পণ করে ॥৫॥

    भावार्थ

    যেমন মনুষ্য বীরসন্তানের জন্মদাত্রী পত্নীর প্রযত্নপূর্বক আদর করে, তেমনই রাজা হিতৈষী নেতা পুরুষদের উন্নতিতে তৎপর থাকে/থাকুক ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (যে) যে উপাসক (অস্য) এই পরমেশ্বরের (কামম্) কামনা (গ্মন্) পূরণ করেন, (ইব) যেমন (জনিধাঃ) জন্মদাতা পিতা-পুত্রের কামনা পূরণ করে,—তখন (সূরঃ) প্রেরক আপনি, হে পরমেশ্বর! উপাসকদের (অর্থম্ ন) অভ্যর্থনা (প্রেরয়) প্রেরিত করুন, সফল করুন, যে অভ্যর্থনা উপাসকদের (পারম্) ভবসাগর থেকে উদ্ধার/রক্ষা/পার করে। (তুবিজাত) হে অসংখ্যের মধ্যে প্রকটিত (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (যে) যে (নরঃ) উপাসক-নেতা (তে) আপনার (পূর্বীঃ) অনাদি (গিরঃ চ) বেদবাণীর (অন্নৈঃ প্রতি শিক্ষন্তি) শিক্ষা প্রত্যেককে, নিজের প্রাণের আহুতি প্রদান করে, তাঁদের অভ্যর্থনা আপনি পূর্ণ করেন।

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