अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 85/ मन्त्र 3
यच्चि॒द्धि त्वा॒ जना॑ इ॒मे नाना॒ हव॑न्त ऊ॒तये॑। अ॒स्माकं॒ ब्रह्मे॒दमि॑न्द्र भूतु॒ तेऽहा॒ विश्वा॑ च॒ वर्ध॑नम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । चि॒त् । हि । त्वा॒ । जना॑: । इ॒मे । नाना॑ । हव॑न्ते । ऊ॒तये॑ ॥ अ॒स्माक॑म् । ब्रह्म॑ । इ॒दम् । इ॒न्द्र॒ । भू॒तु॒ । ते॒ । अहा॑ । विश्वा॑ । च॒ । वर्ध॑नम् ॥८५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यच्चिद्धि त्वा जना इमे नाना हवन्त ऊतये। अस्माकं ब्रह्मेदमिन्द्र भूतु तेऽहा विश्वा च वर्धनम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । चित् । हि । त्वा । जना: । इमे । नाना । हवन्ते । ऊतये ॥ अस्माकम् । ब्रह्म । इदम् । इन्द्र । भूतु । ते । अहा । विश्वा । च । वर्धनम् ॥८५.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) क्योंकि (चित्) निश्चय करके (हि) ही (त्वा) तुझको (इमे) यह (जनाः) मनुष्य (नाना) नाना प्रकार से (ऊतये) रक्षा के लिये (हवन्ते) पुकारते हैं−(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (इदम्) अब (अस्माकम्) हमारा (ब्रह्म) धन (भूतु) होवे (ते) तेरी (विश्वा अहा) सब दिनों (च) ही (वर्धनम्) बढ़ती है ॥३॥
भावार्थ
सब प्राणी परमात्मा की प्रार्थना करके अपनी रक्षा करते हैं, हम भी निरन्तर भक्ति करके उसके अनन्त कोश से पुरुषार्थपूर्वक धन आदि प्राप्त करके अपनी वृद्धि करें ॥३॥
टिप्पणी
३−(यत्) यतः (चित्) निश्चयेन (हि) (त्वा) (जनाः) मनुष्याः (इमे) वर्तमानाः (नाना) विविधम् (हवन्ते) आह्वयन्ति (ऊतये) रक्षणाय (अस्माकम्) (ब्रह्म) धनम् (इदम्) इदानीम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (भूतु) भवतु (ते) तव (अहा) दिनानि (विश्वाः) सर्वाणि (च) अवधारणे (वर्धनम्) वृद्धिः ॥
विषय
ज्ञानीभक्त, न कि आर्तभक्त
पदार्थ
१. (यत्) = जो (चित् हि) = निश्चय से (इमे) = ये (नाना जना:) = विविध वृत्तियोंवाले लोग हैं, वे सब (ऊतये) = अपने रक्षण के लिए (त्वा हवन्ते) = आपको पुकारते हैं। पीड़ा के आने पर सब प्रभु को याद करते ही हैं, परन्तु पीड़ा के दूर होने पर प्रभु के ये आर्तभक्त प्रभु को भूल भी जाते हैं, २. परन्तु हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (अस्माकम् इदं ब्रह्म) = हमसे किया गया यह स्तवन (ते) = आपके लिए (विश्वा च अहा) = सब दिनों में (वर्धनम्) = यश का वर्धन करनेवाला (भूतु) = हो। हम आपके ज्ञानीभक्त बनें और सब कार्यों को आपके स्मरण के साथ ही करें। इसप्रकार हमारे सब कर्म पवित्र हों और हमारा जीवन बड़ा यशस्वी बने।
भावार्थ
हम केवल पीड़ा के आने पर ही प्रभु के भक्त न बनें। प्रभु के ज्ञानीभक्त बनकर हम सदा प्रभु का स्मरण करनेवाले हों। यह प्रभु का सतत स्मरण ही हमारे जीवनों को यशस्वी बनाएगा।
भाषार्थ
(इमे) ये (नाना जनाः) नाना जन, (ऊतये) आत्मरक्षार्थ, (यत् चित् हि) जो (त्वा) आपका (हवन्ते) आह्वान करते हैं, परन्तु (इन्द्र) हे परमेश्वर! (अस्माकम्) हम (ते) आप के उपासकों का, (इदं ब्रह्म) आप ब्रह्म का स्तावक स्तोत्र, (विश्वा च अहा) सदा (वर्धनम्) आप की बढ़ोतरी का (भूतु) वर्णन करनेवाला होता है।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Although these many people invoke you and pray for protection and progress for themselves in many different ways, yet, we pray, our adoration and prayers and all this wealth, honour and excellence bestowed upon us by you be dedicated to you and always, day and night, exalt your munificence and glory.
Translation
O Almighty God, though these men for their protection pray you in various ways yet our this prayer may be always and all the days the disseminater of your glory.
Translation
O Almighty God, though these men for their pro ection pray you in various ways yet our this prayer may be always and all the days the disseminator of your glory.
Translation
O Most Adorable Lord, although these people of the world invoke Thee for their protection, in various ways, yet these Vedic verses praise-songs of ours may for all days, be propagating Thy qualities.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(यत्) यतः (चित्) निश्चयेन (हि) (त्वा) (जनाः) मनुष्याः (इमे) वर्तमानाः (नाना) विविधम् (हवन्ते) आह्वयन्ति (ऊतये) रक्षणाय (अस्माकम्) (ब्रह्म) धनम् (इदम्) इदानीम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (भूतु) भवतु (ते) तव (अहा) दिनानि (विश्वाः) सर्वाणि (च) अवधारणे (वर्धनम्) वृद्धिः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(যৎ) কেননা (চিৎ) নিশ্চিতরূপে (হি) ই (ত্বা) আপনাকে (ইমে) এই সমস্ত (জনাঃ) মনুষ্য (নানা) নানা প্রকারে (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য (হবন্তে) আহ্বান করে −(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যশালী জগদীশ্বর] (ইদম্) এখন (অস্মাকম্) আমাদের (ব্রহ্ম) ধন (ভূতু) হোক (তে) আপনার (বিশ্বা অহা) সকল দিনে (চ) ই (বর্ধনম্) বাড়তে থাকুক ॥৩॥
भावार्थ
সকল প্রাণী পরমাত্মার প্রার্থনা দ্বারা নিজের রক্ষা করে, আমরাও যেন নিরন্তর ভক্তির মাধ্যমে পরমাত্মার অনন্ত কোশ/ধন-ভাণ্ডার হতে পুরুষার্থপূর্বক ধন আদি প্রাপ্ত করে নিজেদের ধন-সম্পদ বৃদ্ধি করি ॥৩॥
भाषार्थ
(ইমে) এই (নানা জনাঃ) নানা জন, (ঊতয়ে) আত্মরক্ষার্থে, (যৎ চিৎ হি) যে (ত্বা) আপনার (হবন্তে) আহ্বান করে, কিন্তু (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (অস্মাকম্) আমরা (তে) আপনার উপাসকদের, (ইদং ব্রহ্ম) আপনার ব্রহ্মের স্তাবক স্তোত্র, (বিশ্বা চ অহা) সদা (বর্ধনম্) আপনার বৃদ্ধির (ভূতু) বর্ণনাকারী।
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