अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 85/ मन्त्र 4
वि त॑र्तूर्यन्ते मघवन्विप॒श्चितो॒ऽर्यो विपो॒ जना॑नाम्। उप॑ क्रमस्व पुरु॒रूप॒मा भ॑र॒ वाजं॒ नेदि॑ष्ठमू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवि । त॒र्तू॒र्य॒न्ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । वि॒प॒:ऽचित॑: । अ॒र्य: । विप॑: । जना॑नाम् ॥ उप॑ । क्र॒म॒स्व॒ । पु॒रु॒ऽरूप॑म् । आ । भ॒र॒ । वाज॑म् । नेदि॑ष्ठम् । ऊ॒तये॑ ॥८५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
वि तर्तूर्यन्ते मघवन्विपश्चितोऽर्यो विपो जनानाम्। उप क्रमस्व पुरुरूपमा भर वाजं नेदिष्ठमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठवि । तर्तूर्यन्ते । मघऽवन् । विप:ऽचित: । अर्य: । विप: । जनानाम् ॥ उप । क्रमस्व । पुरुऽरूपम् । आ । भर । वाजम् । नेदिष्ठम् । ऊतये ॥८५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(मघवन्) हे महाधनी ! [परमेश्वर] (विपश्चितः) बड़े ज्ञानी (विपः) प्रेरक बुद्धिमान् लोग (जनानाम्) मनुष्यों के बीच (अर्यः=अरीन्) वैरियों को (वि) विविध प्रकार (तर्तूर्यन्ते) बार-बार हराते हैं। (उप क्रमस्व) तू [हमें] पराक्रमी कर, और (ऊतये) तृप्ति के लिये (पुरुरूपम्) बहुत प्रकारवाले (वाजम्) बल को (नेदिष्ठम्) अति समीप (आ) सब प्रकार से (भर) भर ॥४॥
भावार्थ
सब मनुष्य बुद्धिमानों के समान परमात्मा को हृदय में धारण करके पराक्रम के साथ वैरियों को जीतें ॥४॥
टिप्पणी
४−(वि) विविधम् (तर्तूर्यन्ते) तॄ अभिभवे यङ्लुकि छान्दसं रूपम्। तातिरति। भृशं तरन्ति। अभिभवन्ति (मघवन्) हे धनवन् परमेश्वर (विपश्चितः) बहुज्ञानिनः (अर्यः) द्वितीयायाः प्रथमा यणादेशश्च। अरयः। अरीन् (विपः) विप क्षेपे-क्विप्। विपो मेधाविनाम-निघ० ३।१। प्रेरका मेधाविनः (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये (उप क्रमस्व) पराक्रमयुक्तान् कुरु (पुरुरूपम्) बहुविधम् (आ) समन्तात् (भर) धर (वाजम्) बलम् (नेदिष्ठम्) अन्तिक-इष्ठन्। अतिसमीपम् (ऊतये) तर्पणाय ॥
विषय
पुरुरूप वाज
पदार्थ
१. हे (मघवन्) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (विपश्चित:) = सब वस्तुओं को सूक्ष्मता से देखकर चिन्तन करनेवाले विद्वान् (अर्य:) = [ऋगतौ] शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाले वीर तथा (जनानां विपः) = तत्वज्ञान की प्रेरणा से लोगों को कम्पित कर देनेवाले-उन्हें एक बार हिला देनेवाले लोग (वितर्तुर्यन्ते) = सब कष्टों को तैर जाते हैं। २.हे प्रभो। आप (नेदिष्ठम् उपक्रमस्व) = हमें समीपता से प्राप्त होइए। हम आपके अधिक-से-अधिक समीप हों। आप हमें (ऊतये) = रक्षण के लिए (पुरुरूपम्) = अनेक रूपोंवाले (वाजम्) = बल को (आभर) = प्राप्त कराइए । शरीर, इन्द्रियों, मन व बुद्धि के विविध बलों को प्राप्त करके हम अपना रक्षण करने में समर्थ हों।
भावार्थ
हम ज्ञानी व वीर बनकर आपत्तियों को तैरनेवाले हों। प्रभु के समीप होते हुए अनेकरूपा शक्ति को प्राप्त करके अपने रक्षण के लिए समर्थ हों। से यह प्रभु के समीप रहनेवाला व्यक्ति सबका मित्र 'विश्वामित्र' बनता है, और प्रार्थना करता है|
भाषार्थ
(मघवन्) हे ऐश्वर्यशाली! (विपश्चितः) मेधावी उपासक, उपासना द्वारा, (वि तर्तूर्यन्ते) आप को विशेषतया त्वरायुक्त अर्थात् शीघ्रफलदायी करते हैं। क्योंकि आप ही (अर्यः) सबके स्वामी और प्रापणीय हैं, और आप ही (जनानाम्) सब जनों में (विपः) मेधावी हैं। (उप क्रमस्व) हे परमेश्वर! शीघ्र फलदान प्रारम्भ कीजिए। (ऊतये) हमारी रक्षा के लिए, (पुरुरूपम्) नानारूप (वाजम्) शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक बल, (नेदिष्ठम्) हमारे समीप, (आ भर) प्राप्त कराइए।
टिप्पणी
[विपः मेधावी (निघं০ ३.१५)। जनानां विपः=अर्थात् मनुष्यों में आप जैसा कोई मेधावी नहीं है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
O lord of might and majesty, the wise, the noble and the vibrant leaders of the people, by your grace, cross over all obstacles of their struggle for life and success, whenever they face any. Pray, come lord, and give us instant energy of versatile form for our protection and victory at the earliest.
Translation
O Almighty God, the men for wisdom, men of industry and the man of initiative among people cross over the worldy miseries. O Divine Power, you come near me for my security and give me the vigour of various mode and form.
Translation
O Almighty God, the men for wisdom, men of industry and the man of initiative among people cross over the worldy miseries. O Divine Power, you come near me for my security and give me the vigor of various mode and form.
Translation
O Mighty Lord of Fortunes, the progressive, the wise and the learned persons of creative genius amongst the general people of the world, specially surpass others. Letest Thee be near us for our protection and completely fill us with food, power, wealth and learning.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(वि) विविधम् (तर्तूर्यन्ते) तॄ अभिभवे यङ्लुकि छान्दसं रूपम्। तातिरति। भृशं तरन्ति। अभिभवन्ति (मघवन्) हे धनवन् परमेश्वर (विपश्चितः) बहुज्ञानिनः (अर्यः) द्वितीयायाः प्रथमा यणादेशश्च। अरयः। अरीन् (विपः) विप क्षेपे-क्विप्। विपो मेधाविनाम-निघ० ३।१। प्रेरका मेधाविनः (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये (उप क्रमस्व) पराक्रमयुक्तान् कुरु (पुरुरूपम्) बहुविधम् (आ) समन्तात् (भर) धर (वाजम्) बलम् (नेदिष्ठम्) अन्तिक-इष्ठन्। अतिसमीपम् (ऊतये) तर्पणाय ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবন্) হে মহাধনী ! [পরমেশ্বর] (বিপশ্চিতঃ) পরম জ্ঞানী (বিপঃ) প্রেরক বুদ্ধিমানগণ (জনানাম্) মনুষ্যদের মধ্যে (অর্যঃ=অরীন্) শত্রুদের (বি) বিবিধ প্রকারে (তর্তূর্যন্তে) বার-বার পরাজিত করে। (উপ ক্রমস্ব) আপনি [আমাদের] পরাক্রমশালী করুন এবং (ঊতয়ে) তৃপ্তির জন্য (পুরুরূপম্) বহু প্রকারের (বাজম্) বলকে (নেদিষ্ঠম্) অতি সমীপে (আ) সর্ব প্রকারে (ভর) পূর্ণ করুন ॥৪॥
भावार्थ
সকল মনুষ্য বুদ্ধিমানদের ন্যায় পরমাত্মাকে হৃদয়ে ধারণ পূর্বক পরাক্রমের সহিত শত্রুদের পরাজিত করে বিজয়ী হোক ॥৪॥
भाषार्थ
(মঘবন্) হে ঐশ্বর্যশালী! (বিপশ্চিতঃ) মেধাবী উপাসক, উপাসনা দ্বারা, (বি তর্তূর্যন্তে) আপনাকে বিশেষভাবে ত্বরাযুক্ত অর্থাৎ শীঘ্রফলদায়ী করে। কেননা আপনিই (অর্যঃ) সকলের স্বামী এবং প্রাপণীয়, এবং আপনিই (জনানাম্) সকলের মধ্যে (বিপঃ) মেধাবী। (উপ ক্রমস্ব) হে পরমেশ্বর! শীঘ্র ফলদান প্রারম্ভ করুন। (ঊতয়ে) আমাদের রক্ষার জন্য, (পুরুরূপম্) নানারূপ (বাজম্) শারীরিক, মানসিক, আধ্যাত্মিক বল, (নেদিষ্ঠম্) আমাদের সমীপে, (আ ভর) প্রাপ্ত করান।
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