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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 8
    ऋषिः - देवजामयः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३
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    त्वमि॑न्द्राभि॒भूर॑सि॒ विश्वा॑ जा॒तान्योज॑सा। स विश्वा॒ भुव॒ आभ॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ॒न्द्र॒ । अ॒भि॒ऽभू: । अ॒सि॒ । विश्वा॑ । जा॒तानि॑ । ओज॑सा ॥ स: । विश्वा॑: । भुव॑: । आ । अ॒भ॒व॒: ॥९३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा। स विश्वा भुव आभवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । अभिऽभू: । असि । विश्वा । जातानि । ओजसा ॥ स: । विश्वा: । भुव: । आ । अभव: ॥९३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परमेश्वर] (त्वम्) तू (ओजसा) पराक्रम से (विश्वा) सब (जातानि) उत्पन्न वस्तुओं को (अभिभूः) वश में रखनेवाला (असि) है, (सः) सो तू (विश्वाः) सब (भुवः) भूमियों को (आ) सब ओर से (अभवः) प्राप्त हुआ है ॥८॥

    भावार्थ

    परमात्मा सब संसार को वश में रखकर सब स्थानों में व्यापक है ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (अभिभूः) अभिभविता। वशीकर्ता (असि) (विश्वा) सर्वाणि (जातानि) उत्पन्नानि भूतानि (ओजसा) पराक्रमेण (सः) स त्वम् (विश्वाः) सर्वाः (भुवः) भूमीः (आ) समन्तात् (अभवः) भू प्राप्तौ–। प्राप्तवानसि ॥

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    विषय

    'अभिभू' बनकर 'आभूति' वाला होना

    पदार्थ

    १.हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय व शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले बालक! (त्वम्) = तू (विश्वा जातानि) = सब उत्पन्न हुए-हुए इन वासनारूप शत्रुओं को (ओजसा) = अपनी ओजस्विता से (अभिभूः असि) = पराभूत करनेवाला है। काम, क्रोध, लोभ से तू आक्रान्त नहीं होता। २. (स:) = वह तू (विश्वा:) = सब (भुवः) = भूमियों को-अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमयकोशों को (आभव:) = आभूति [ऐश्वर्य]-वाला बनाता है। इन्हें क्रमश: 'तेज, वीर्य, बल व ओज, मन्यु तथा सहस्' से परिपूर्ण करता है।

    भावार्थ

    माता ने बालक को यह प्रेरणा देनी है कि [क] तूने काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं को अभिभूत करना है तथा [ख] अन्नमय आदि सब कोशो का आभूतिवाला बनाना है।माता से उत्तम प्रेरणा प्राप्त करके यह शत्रुओं का कर्षण करनेवाला 'कृष्ण' बनता है-यह अंग-प्रत्यंग में रसवाला'आंगिरस होता है। यह इन्द्र का उपासन करता है और प्रभु इस छोटे इन्द्र को कहते हैं कि -

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! आपने (ओजसा) निज ओज के कारण (विश्वा जातानि) सब उत्पन्न पदार्थों पर (अभिभूः असि) विजय पाई हुई है। (सः) वे आप (विश्वाः भुवः) सब भुवनों में (आभवः) पूर्णतया स्थित हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    You, Indra, are the supreme ruler over all things come into existence by your self-refulgence which indeed is the light and life of all the worlds. O ruler, you too be that all over the world.

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    Translation

    O Almighty God, you are preeminent over all creatures by your strength and vigour. You pervade all that exists.

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    Translation

    O Almighty God, you are preeminent over all creatures by your strength and vigor. You pervade all that exists.

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    Translation

    Let the Adorable Lord, king or soul, who is the master of wealth, swiftly moving by His self-bearing laws or powers, Strong and overwhelming all the daring forces of the foe or evil by His limitless, great strength of raining down destruction and protection, come to our rejoicings.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (अभिभूः) अभिभविता। वशीकर्ता (असि) (विश्वा) सर्वाणि (जातानि) उत्पन्नानि भूतानि (ओजसा) पराक्रमेण (सः) स त्वम् (विश्वाः) सर्वाः (भुवः) भूमीः (आ) समन्तात् (अभवः) भू प्राप्तौ–। प्राप्तवानसि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরমেশ্বর] (ত্বম্) তুমি (ওজসা) পরাক্রম দ্বারা (বিশ্বা) সকল (জাতানি) উৎপন্ন পদার্থ সমূহকে (অভিভূঃ) বশীকর্তা/বশয়িতা/নিয়ন্ত্রনকারী (অসি) হও, (সঃ) সেই তুমি (বিশ্বাঃ) সর্ব (ভুবঃ) স্থানে (আ) সর্বতোভাবে (অভবঃ) ব্যাপ্ত ॥৮॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা বিশ্ব সংসারকে বশীভূত করে সকল স্থানে ব্যাপক হয়ে বিরাজমান॥৮॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (ওজসা) নিজ ওজ-এর কারণে (বিশ্বা জাতানি) সকল উৎপন্ন পদার্থের ওপর (অভিভূঃ অসি) বিজয় প্রাপ্ত। (সঃ) সেই আপনি (বিশ্বাঃ ভুবঃ) সকল ভুবনে (আভবঃ) পূর্ণরূপে স্থিত।

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