अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म्। तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्य: । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् ॥ तस्मै॑ । ऊं॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥९७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्। तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते ॥
स्वर रहित पद पाठवयम् । एनम् । इदा । ह्य: । अपीपेम । इह । वज्रिणम् ॥ तस्मै । ऊं इति । अद्य । समना । सुतम् । भर । आ । नूनम् । भूषत । श्रुते ॥९७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वीर के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(वयम्) हमने (इदा) परम ऐश्वर्य के साथ [वर्तमान] (एनम्) इस (वज्रिणम्) वज्रधारी [वीर] को (ह्यः) कल (इह) यहाँ पर [तत्त्व रस] (अपीपेम) पान कराया है। [हे विद्वान् !] (तस्मै) उस (समना) पूर्ण बलवाले [शूर] के लिये (उ) ही (अद्य) आज (सुतम्) सिद्ध किये हुये [तत्त्व रस] को (भर) भर दे, और (नूनम्) निश्चय करके (श्रुते) सुनने योग्य शास्त्र के बीच (आ) सब ओर से (भूषत) तुम शोभा बढ़ाओ ॥१॥
भावार्थ
जिस पराक्रमी वीर को सदा तत्त्वज्ञान का उपदेश होता है, वहाँ प्रत्येक मनुष्य अलग-अलग और सब मनुष्य मिलकर विज्ञान की उन्नति करते हैं ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद में है-८।६६ [सायणभाष्य ]। ७-९ मन्त्र १, २ सामवेद-उ० ८।२।१३, मन्त्र १ साम० पू० ३।८।१० ॥ १−(वयम्) (एनम्) (इदा) इदि परमैश्वर्ये-क्विप्, नलोपः। परमैश्वर्येण सह वर्तमानम् (ह्यः) गतदिने (अपीपेम) पीङ् पाने जुहोत्यादौ लङ् परस्मैपदं छान्दसम्। पानं कारितवन्तः (इह) अत्र (वज्रिणम्) (तस्मै) (उ) निश्चयेन (अद्य) अस्मिन् दिने (समना) अन प्राणने-अच्, विभक्तेर्डा। समनाय। पूर्णबलवते (सुतम्) संस्कृतं तत्त्वरसम् (भर) धर (आ) समन्तात् (नूनम्) अवश्यम् (भूषत) अलंकुरुत (श्रुते) श्रवणीये शास्त्रे ॥
विषय
स्तवन, सोम-रक्षण, प्रभु-प्राप्ति
पदार्थ
१. (वयम्) = हम (एनम्) = इस (वज्रिणम्) = वज्रहस्त प्रभु को (इह) = इस जीवन में (इदा) = अब और (ह्यः) = भूतकाल में भी [गत दिवस में भी] (अपीपेम) = अप्यायित करते हैं। स्तोत्रों के द्वारा हम प्रभु की भावना को अपने अन्दर बढ़ाते हैं। २. (तस्मा उ) = उस प्रभु-प्राप्ति के लिए (अद्य) = आज (समना) = संग्राम के द्वारा-वासनाओं को संग्राम में पराजित करने के द्वारा (सुतं भरा) = सोम का सम्भरण करते हैं। वे प्रभु (नूनम्) = निश्चय से (श्रुते) = शास्त्र श्रवण होने पर (भूषत) = प्राप्त होते हैं [आभवतु -आगच्छतु]।
भावार्थ
हम सदा प्रभु का स्तवन करें। स्तुति द्वारा वासनाओं को पराजित करके सोम का रक्षण करें। सोम-रक्षण द्वारा तीव्र बुद्धि होकर प्रभु-दर्शन करनेवाले बनें।
भाषार्थ
(वयम्) हम उपासकों ने (इह) इस उपासना-यज्ञ में, (वज्रिणम्) पापों के प्रति वज्रधारी (एनम्) इस परमेश्वर को (इद्) ही (आ पीपेम) भक्तिरस पिलाया है। हे उपासक! तू (समना) मनोभावनाओं के साथ (अद्य) आज अर्थात् प्रतिदिन, (तस्मै उ) उसी परमेश्वर के लिए (सुतं भर) उत्पन्न भक्तिरस की भेंट ला। हे उपासको! (श्रुते) वेदों द्वारा परमेश्वर-सम्बन्धी श्रवण कर लेने पर (नूनम्) निश्चयपूर्वक (आ भूषत) स्तुतियों द्वारा इसकी शोभा को बढ़ाओ।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Here today as before we have regaled this lord of the thunderbolt. For him, again, now, all of one mind, bear and bring the distilled soma of homage, and worship him who would, for certain, for joy of the song, grace the celebrants.
Translation
We here verily yesterday let this brave man drink the somajuice. So to day offer him eqipped with bolt the pressed juice for his strength, O man you adorn him with the knowledge of what is to hear.
Translation
We here verily yesterday let this brave man drink the soma juice. So today offer him equipped with bolt the pressed juice for his strength, O man you adorn him with the knowledge of what is to hear.
Translation
Even a wicked person trampling others under his heels like a wolf, marauding sheep and moving intoxicated like the mad elephant, becomes graceful and adorned with good nature under the knowledge and instructions of Him. O Evil-Destroyer Lord, the self-same Thou, listen to this praise-song of our, come to us (i.e., be realised by us) with wonderful intelligence and action.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद में है-८।६६ [सायणभाष्य ]। ७-९ मन्त्र १, २ सामवेद-उ० ८।२।१३, मन्त्र १ साम० पू० ३।८।१० ॥ १−(वयम्) (एनम्) (इदा) इदि परमैश्वर्ये-क्विप्, नलोपः। परमैश्वर्येण सह वर्तमानम् (ह्यः) गतदिने (अपीपेम) पीङ् पाने जुहोत्यादौ लङ् परस्मैपदं छान्दसम्। पानं कारितवन्तः (इह) अत्र (वज्रिणम्) (तस्मै) (उ) निश्चयेन (अद्य) अस्मिन् दिने (समना) अन प्राणने-अच्, विभक्तेर्डा। समनाय। पूर्णबलवते (सुतम्) संस्कृतं तत्त्वरसम् (भर) धर (आ) समन्तात् (नूनम्) अवश्यम् (भूषत) अलंकुरुत (श्रुते) श्रवणीये शास्त्रे ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বীরলক্ষণোপদেশঃ
भाषार्थ
(বয়ম্) আমরা (ইদা) পরম ঐশ্বর্যের সহিত [বর্তমান] (এনম্) এই (বজ্রিণম্) বজ্রধারী [বীর]কে (হ্যঃ) অতীতে/গতকাল (ইহ) এখানে [তত্ত্বরস] (অপীপেম) পান করিয়েছিলাম। [হে বিদ্বান্ !] (তস্মৈ) সেই (সমনা) পূর্ণ বলবান [বীর] এর জন্য (উ) অবশ্যই (অদ্য) আজ (সুতম্) সিদ্ধকৃত/সংস্কৃত/নিষ্পাদিত [তত্ত্বরস] (ভর) পূর্ণ করো এবং (নূনম্) নিশ্চিতরূপে (শ্রুতে) শ্রবণ যোগ্য শাস্ত্রে (আ) সকল দিক হতে (ভূষত) তুমি শোভাবর্ধন করো ॥১॥
भावार्थ
যে পরাক্রমশালী বীরের মধ্যে সদা তত্ত্বজ্ঞানের উপদেশ বিদ্যমান, সেখানে প্রত্যেক মনুষ্য পৃথক-পৃথক অথবা সকল মনুষ্য একত্রে মিলিত হয়ে বিজ্ঞানের উন্নতি সাধন করে ॥১॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদ -৮।৬৬ [সায়ণভাষ্য ৫৫]। ৭-৯ মন্ত্র ১, ২ সামবেদ-উ০ ৮।২।১৩, মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ৩।৮।১০ ॥
भाषार्थ
(বয়ম্) আমরা উপাসকগণ (ইহ) এই উপাসনা-যজ্ঞে, (বজ্রিণম্) পাপের প্রতি বজ্রধারী (এনম্) এই পরমেশ্বরকে (ইদ্) ই (আ পীপেম) ভক্তিরস পান করিয়েছি। হে উপাসক! তুমি (সমনা) মনোভাবনাসহিত (অদ্য) আজ অর্থাৎ প্রতিদিন, (তস্মৈ উ) সেই পরমেশ্বরের জন্য (সুতং ভর) উৎপন্ন ভক্তিরস অর্পণ করো। হে উপাসকগণ! (শ্রুতে) বেদ দ্বারা পরমেশ্বর-সম্বন্ধীয় শ্রবণ করলে (নূনম্) নিশ্চয়পূর্বক (আ ভূষত) স্তুতি-সমূহ দ্বারা পরমেশ্বরের শোভা বৃদ্ধি করো।
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