अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त
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इन्द्रः॒ सेनां॑ मोहयतु म॒रुतो॑ घ्न॒न्त्वोज॑सा। चक्षूं॑ष्य॒ग्निरा द॑त्तां॒ पुन॑रेतु॒ परा॑जिता ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । सेना॑म् । मो॒ह॒य॒तु॒ । म॒रुत॑: । घ्न॒न्तु॒ । ओज॑सा । चक्षूं॑षि । अ॒ग्नि: । आ । द॒त्ता॒म् । पुन॑: । ए॒तु॒ । परा॑ऽजिता ॥१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः सेनां मोहयतु मरुतो घ्नन्त्वोजसा। चक्षूंष्यग्निरा दत्तां पुनरेतु पराजिता ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । सेनाम् । मोहयतु । मरुत: । घ्नन्तु । ओजसा । चक्षूंषि । अग्नि: । आ । दत्ताम् । पुन: । एतु । पराऽजिता ॥१.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
युद्ध विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) प्रतापी सूर्य (सेनाम्) [शत्रु] सेना को (मोहयतु) व्याकुल कर दे। (मरुतः) दोषनाशक पवन के झोंके (ओजसा) बल से (घ्नन्तु) नाश कर दें। (अग्निः) अग्नि (चक्षूंषि) नेत्रों को (आ, दत्ताम्) निकाल देवे। [जिससे] (पराजिता) हारी हुई सेना (पुनः) पीछे (एतु) चली जावे ॥६॥
भावार्थ
युद्धकुशल सेनापति राजा अपनी सेना का व्यूह ऐसा करे जिससे उसकी सेना सूर्य, वायु और अग्नि वा बिजुली और जल के प्रयोगवाले अस्त्र, शस्त्र, विमान, रथ, नौकादि के बल से शत्रुसेना को नेत्रादि से अङ्ग-भङ्ग करके सर्वदा हराकर भगा दे ॥६॥
टिप्पणी
६−(इन्द्रः) प्रतापी सूर्यः। (मरुतः। दोषनाशका वायुवेगाः। (घ्नन्तु)। हन-लोट्। नाशयन्तु। (ओजसा)। शस्त्रास्त्रादीनां बलेन। (चक्षूंषि)। अक्षीणि। नेत्राणि। (अग्निः)। अग्निप्रयोगः। (आ, दत्ताम्)। अपहरतु। (पुनः)। पश्चात्। निवर्त्य। (एतु) गच्छतु। (पराजिता)। पराभूता सती। अन्यत् सुगमं व्याख्यातं च ॥
विषय
इन्द्र, मरुत् व अग्नि
पदार्थ
१. (इन्द्रः) = सेनापति (सेनाम्) = शत्र-सेना को (मोहयत) = मोह में डाल दे-उनके चित्त अव्यवस्थित हो जाएँ, प्रबल आक्रमण से घबराकर उन्हें कर्तव्याकर्तव्य की समझ ही न रहे। (मरुतः) = सैनिक (ओजसा) = पूर्ण आजस्विता के साथ, शूरता के साथ घ्नन्तु आक्रमण करके शत्रुओं को मारनेवाले हों। २. (अग्निः) = आग्रेयास्त्रों का प्रयोग (चक्षूंषी आदत्ताम्) = शत्रुओं की आँखों को छीन ले, अर्थात् शत्रुओं की आँखें चंधिया जाएँ। इसप्रकार वह शत्रुसेना (पराजिता) = पराजित हुई-हुई (पुनः एतु) = फिर वापस भाग जानेवाली हो।
भावार्थ
इन्द्र, मरुत व अग्नि-सेनापति, सैनिक व अग्नेयास्त्रों का प्रयोग-ये सब शत्रुओं को परजित करके भगा दें।
विशेष
सूक्त का विषय 'शत्रुसेना के विनाश के द्वारा राष्ट्र का रक्षण' है। अगले सूक्त का विषय भी यही है । ऋषि, देवता भी वही है। प्रथम मन्त्र भी एक-आध शब्द के परिवर्तन के साथ वही है।
विषय
शत्रु सेनाओं के प्रति सेनापति के कर्तव्य ।
भावार्थ
(इन्द्रः) राजा या ऐश्वर्यवान् या विजुली के समान शस्त्रधारी पुरुष (सेनां) शत्रु सेना को (मोहयतु) व्याकुल, विमूढ़ कर दे । (मरुतः) वायु के समान वेगवान्, उग्र भट लोग (ओजसा) बड़े बल से (घ्नन्तु) मारें और (अभिः) तीव्र आग्नेय अस्त्र उनके (चक्षूंषि) आंखों को (आदत्ताम्) हर ले । इस प्रकार वह शत्रुसेना (पुनः) बाद में (पराजिता) पराजित होकर (एतु) लौट जाय या हमारी शरण में आये और हमारी सेना पुनः (पर-अजिता) शत्रु से विना हारे ही लौट आये ।
टिप्पणी
(प्र०) ‘इन्द्रसेना’ इति क्वचित् पाठः । (तृ०) ‘चक्षुष्यंग्निराधत्ताम्’ इति सायणाभिमतः पाठः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः । अग्निमरुदिन्द्रादयो वहवो देवताः । सेनामोहनम् । १ त्रिष्टुप् । २ विराड् गर्भा भुरिक् । ३, ६ अनुष्टुभौ । विराड् पुरोष्णिक् । षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Storm the Enemy
Meaning
Let Indra, with his force and power, stupefy the enemy power and force. Let the stormy troops destroy the enemies with their power and lustre. Let light and fire, Agni, dazzle the enemy eyes to bewilderment, and let the enemy retreat, defeated even before the actual fight.
Translation
Let the resplendent king confound the army (of the enemies) and let the storm-troopers strike hard with vigour. Let the army Chief deprive it of vision. Let it go back completely defeated.
Translation
Let the Ruler daze their army, let the armed men slay it with their might, let Agni, the weapon launched through fire take away their eyes and let the conquered host retreat.
Translation
Let the king daze their army. Let the valiant soldiers, ever ready to die,slay it with their might. Let the fiery missile take their eyes away, and let theconquered host retreat.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(इन्द्रः) प्रतापी सूर्यः। (मरुतः। दोषनाशका वायुवेगाः। (घ्नन्तु)। हन-लोट्। नाशयन्तु। (ओजसा)। शस्त्रास्त्रादीनां बलेन। (चक्षूंषि)। अक्षीणि। नेत्राणि। (अग्निः)। अग्निप्रयोगः। (आ, दत्ताम्)। अपहरतु। (पुनः)। पश्चात्। निवर्त्य। (एतु) गच्छतु। (पराजिता)। पराभूता सती। अन्यत् सुगमं व्याख्यातं च ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) সম্রাট্ (সেনাম্) শত্রুসেনাকে (মোহয়তু) কর্তব্যাকর্তব্যের জ্ঞান রহিত করুক, (মরুতঃ) মারার ক্ষেত্রে কুশল/হনন কুশল আমাদের সৈনিক (ওজসা) বল দ্বারা (ঘ্নন্তু) সেনার হনন করুক। (অগ্নিঃ) অগ্নি (চক্ষূংষি) শত্রুদের দৃষ্টির (আ ধত্তম্) অপহরণ করুক, (পুনঃ) তৎপশ্চাৎ (পরাজিতা) পরাজিত অবশিষ্ট-শত্রুসেনা (এতু) আমাদের শরণে আসুক।
टिप्पणी
[মরুতঃ সৈনিকাঃ (যজু০ ১৭।৪০)। অগ্নিঃ=সৌরাগ্নি, সৌর রশ্মিসমূহ। সৌর রশ্মিকে যন্ত্রিত করে সৈনিকদের প্রতি প্রেরিত করলে চক্ষু অন্ধকার হয়ে যায় এবং কিছু সময় পর্যন্ত সৈনিক দেখতে পারে না এবং ইন্দ্রের বশবর্তী হয়ে শরণাগত হয়ে যায়। মোহয়তু=মুহ বৈচিত্যে (দিবাদিঃ) বৈচিত্যম্ = চিতি অর্থাৎ চেতনা রাহিত্য।]
मन्त्र विषय
যুদ্ধবিদ্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) প্রতাপী সূর্য (সেনাম্) [শত্রু] সেনাকে (মোহয়তু) ব্যাকুল করুক । (মরুতঃ) দোষনাশক পবনের আঘাত (ওজসা) শক্তি দ্বারা (ঘ্নন্তু) নাশ করুক। (অগ্নিঃ) অগ্নি (চক্ষূংষি) নেত্রদ্বয় (আ, দত্তাম্) হরণ করুক। [যাতে] (পরাজিতা) পরাজিত সেনা (পুনঃ) পুনঃ (এতু) চলে যায় ॥৬॥
भावार्थ
যুদ্ধকুশল সেনাপতি রাজা নিজের সেনা এর ব্যূহ এমনভাবে করুক যাতে তাঁর সেনা সূর্য, বায়ু এবং অগ্নি বা বিদ্যুৎ ও জলের প্রয়োগকারী অস্ত্র, শস্ত্র, বিমান, রথ, নৌকাদি এর বল এর মাধ্যমে শত্রুসেনাকে নেত্রাদি থেকে অঙ্গ-ভঙ্গ করে সর্বদা পরাজিত করে তাড়িয়ে দেয় ॥৬।।
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