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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः सूक्तम् - कल्याणार्थप्रार्थना
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    उ॒तेदानीं॒ भग॑वन्तः स्यामो॒त प्र॑पि॒त्व उ॒त मध्ये॒ अह्ना॑म्। उ॒तोदि॑तौ मघव॒न्त्सूर्य॑स्य व॒यं दे॒वानां॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । इ॒दानी॑म् । भग॑ऽवन्त: । स्या॒म॒ । उ॒त । प्र॒ऽपि॒त्वे । उ॒त । मध्ये॑ । अह्ना॑म् । उ॒त । उत्ऽइ॑तौ । म॒घ॒ऽव॒न् । सूर्य॑स्य । व॒यम् । दे॒वाना॑म् । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥१६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। उतोदितौ मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । इदानीम् । भगऽवन्त: । स्याम । उत । प्रऽपित्वे । उत । मध्ये । अह्नाम् । उत । उत्ऽइतौ । मघऽवन् । सूर्यस्य । वयम् । देवानाम् । सुऽमतौ । स्याम ॥१६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने के लिये प्रभात गीत।

    पदार्थ

    (उत) और (इदानीम्) इस समय (उत उत) और भी (अह्नाम्) दिनों के (मध्ये) मध्य (प्रपित्वे) पाये हुए [ऐश्वर्य] में हम (भगवन्तः) बड़े ऐश्वर्यवाले (स्याम) होवें। (उत) और (मघवन्) हे महाधनी ईश्वर ! (सूर्यस्य) सूर्य के (उदितौ) उदय में (देवानाम्) विद्वानों की (सुमतौ) सुमति में (वयम्) हम (स्याम) रहें ॥४॥

    भावार्थ

    मन्त्र ३ के अनुसार पाये हुए ऐश्वर्य को हम सब और आगे भी बढ़ावें, और जैसे सूर्य के उदय में प्रकाश बढ़ता जाता है वैसे ही देवताओं के अनुकरण से हम अपनी धार्मिक बुद्धि का अभ्युदय करें ॥४॥ ‘उदितौ’ के स्थान पर ऋग् और यजुर्वेद में ‘उदिता’ है ॥

    टिप्पणी

    ४−(उत्) समुच्चये। (इदानीम्) इदम्-दानीम्। इदम् इश्। पा० ५।३।३। दानीं च। पा० ५।३।१९। इति वर्तमाने दानीम्। अस्मिन् काले। (भगवन्तः) सकलैश्वर्ययुक्ताः। (स्याम) भवेम। (उत, उत) नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति द्विर्वचनम्। अपि च। (प्रपित्वे) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। उ० ४।१०५। प्र+आप्लृ व्याप्तौ-इत्वन्, आकारलोपः। प्रपित्वेऽभीक इत्यासन्नस्य प्रपित्वे प्राप्ते-निरु० ३।२०। प्राप्ते सौभाग्ये। (अह्नाम् मध्ये) दिनानाम्। मध्ये। भविष्यकाले। (उदितौ) उद्+इण् गतौ-क्तिन्। उदये। उद्गमने। (मघवन्) अ० २।५।७। महि वृद्धौ, दाने च-घञर्थे क, मतुप्। मघमिति धननामधेयं महंतेर्दानकर्मणः-निरु० १।७। हे प्रशस्तधनवन्। (सूर्यस्य) आदित्यस्य। (देवानाम्) आप्तविदुषाम्। (सुमतौ) कल्याण्यां बुद्धौ ॥

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    विषय

    'प्रातः, मध्याह्न व सायं' का भग

    पदार्थ

    १. हम (उत) = निश्चय से (इदानीम्) = इस जीवन के प्रात:काल में प्रथम सबन [२४ वर्ष की अवस्था तक] में (भगवन्त:) = 'ऐश्वर्य व धर्म'-रूप भगवाले (स्याम) = हों, (उत) = और (अह्रां मध्ये) = जीवन के मध्यभाग-द्वितीय सवन [गृहस्थ] में यशयुक्त और श्री सम्पन्न बनें, (उत) = तथा (प्रपित्वे) = जीवन के ढलने पर तृतीय सवन [वानप्रस्थ और संन्यास] में हम 'ज्ञान-वैराग्य' रूप धनवाले हों। इसप्रकार जीवन को छह भगों से पूर्ण बनाकर (वयम्) = हम है (मघवन्) = ऐश्वर्यशाली प्रभो! (उत) = निश्चय से (सूर्यस्य उदितौ) = सूर्य के उदय होते ही (देवानाम्) = माता-पिता आदि देवों की (सुमती) = कल्याणकारी मति में (स्याम) = सदा निवास करें।

    भावार्थ

    हम जीवन के षड्विध ऐश्वर्य को प्राप्त करें और सदा देवों की सुमति में रहें।

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    भाषार्थ

    (उत) तथा (इदानीम्) इस काल में (भगवन्त:) भगवाले (स्याम) हम हों, (उत) तथा (प्रपित्वे) [सूर्य के] पश्चिम में प्रपतनकाल में, (उत) तथा (अह्राम् मध्ये) दिनों के मध्यकाल में, (उत) तथा (सूर्यस्य उदितौ) सूर्य के उदयकाल में (मघवन्) हे धनशाली परमेश्वर! (वयम्) हम (देवानाम्) देवताओं की (सुमतौ स्याम) सुमति में हों, रहें।

    टिप्पणी

    [देवानाम्=देवो दानाद् वा (निरुक्त ७।४।१५)। इदानीम्= अब अर्थात् जब भी कोई प्रत्याशी माँगने के लिए आ जाए। मन्त्र में "मघवन्" पद द्वारा भग के धनवान् स्वरूप का कथन किया है। देवों की सुमति है दान करने की, हम दानी भी इस सुमति में रहें, ऐसी प्रार्थना या इच्छा प्रकट की गई है।]

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    विषय

    नित्य प्रातः ईश्वरस्तुति का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (मघवन्) धन और ज्ञानसम्पन्न ईश्वर (उत) और (इदानीं) इस समय (भगवन्तः) सौभाग्यसम्पन्न (स्याम) हों (उत) और (प्रपित्वे) सायंकाल के समय (उत) और (अह्नाम्) दिनों के (मध्ये) मध्यकाल में (उत) और (सूर्यस्य उदितौ) सूर्य के उदयकाल में भी (वयं) हम (देवानां) देव, विद्वान् जनों के (सुमतौ) शुभ मति, सद्विचारों में, उनके अनुकूल (स्याम) रहें ।

    टिप्पणी

    ‘उतोदिता मघवन्’ इति पाठमेदः, ऋ०। ‘तेन वयं’ इति पाठभेदः ऋ० ॥ सर्व इज्जोहवीति ऋग्वेदीयः पाठः। तिङां तिङो भवन्तीति तिपः- स्थाने मिविति सायणकृतं समाधानम् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । बृहस्पत्यादयो नाना देवताः । १ आर्षी जगती । ४ भुरिक् पंक्तिः । २, ३, ५-७ त्रिष्टुभः । सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    मन्त्रार्थ

    आध्यात्मिक दृष्टि- (मघवन्) ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (उत-इदानीम्) हां इस समय (देवानां सुमतौ) प्रथम मन्त्रोक्त अग्नि आदि से तेरे दिव्य स्वरूपों की यथार्थ स्तुति में “मन्यते चेतिकर्मा" (निघ ३।४) (वयं स्याम) हम हों तो (भगवन्तः स्याम) उस उस नाम के ऐश्वर्य वाले हो जावें यथान्यत्र-तेजोसि "तेजोमय धेहि" (यजु० १६१६) (उत प्रपित्वे) अपि सायं उनकी सुस्तुति में हो जावें तो सायं ही हम ऐश्वर्य गुणवाले होजावें (उत मध्ये-अह्नाम्) अपि दिन के मध्य में “जात्याख्यायामेकस्मिन् बहुवचनमन्यतर स्याम्' (अष्टा० १।२।५८) उनकी सुस्तुति में होवें तो दिन के मध्य में ही हम उनसे ऐश्वर्य वाले हो जावें (उत सूर्यस्य-उदिता) अपि सूर्य के 'उदितों' उदय होने पर उनकी सुस्तुति में हो जावें तो सूर्य के उदय काल में ही हम उनसे ऐश्वर्य वाले हो जावें ॥ व्यावहारिक दृष्टि- (मघवन्) ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! (उत-इदानीं देवानां सुमतौ स्याम भगवन्तः स्याम) अपि इस समय तेरे उपासक की श्रेष्ठ मति में हम हो जायें तो हम इस समय ही ऐश्वर्य वाले हो जावें । आगे सुगम पूर्ववत् ॥४॥

    विशेष

    अथर्ववेदानुसार ऋषि:- अथर्वा (स्थिरस्वभाव जन) देवता- लिङ्गोक्ता: (मन्त्रों में कहे गए नाम शब्द) ऋग्वेदानु सार ऋषिः- वसिष्ठ: (अत्यन्तवसने वाला उपासक) देवता- १ मन्त्रे लिङ्गोक्ताः (मन्त्रगत नाम) २–६ भग:- (भजनीय भगवान्) ७ उषाः (कमनीया या प्रकाशमाना प्रातर्वेला) आध्यात्मिक दृष्टि से सूक्त में 'भग' देव की प्रधानता है बहुत पाठ होने से तथा 'भग एव भगवान्' (५) मन्त्र में कहने से, भगवान् ही भिन्न-भिन्न नामों से भजनीय है। तथा व्यावहारिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं व्यवहार में भिन्न-भिन्न रूप में उपयुक्त होने से।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Morning Prayer

    Meaning

    Maghavan, magnanimous lord of honour and prosperity, we pray, we may be prosperous at the present time, and we may be prosperous at the rise of the sun. Let us prosper at the middle of the day, and let us be prosperous in the evening. Let us always abide in the good will and guidance of the noble saints and sages and brilliant leaders of light and wisdom.

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    Translation

    May we, at this hour be fortunate, also in the forenoon ot at midday, or at sun-rise; may we, O bounteous Lord, be happy in the loving kindness of all divine powers. (Cf. Rv VII.41.4)

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    Translation

    O’ Generous One; through thy grace let us become prosperous at present, at the approach of day and at noon time and let us attain felecite at the rising of the sun and at evening too, so that we may enjoy the loving-kindness of the enlightened persons.

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    Translation

    So may felicity be ours at present, at sunset, and at moon tide. May we still, O Bounteous God, be happy at sunrise in the protecting favour of the learned.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(उत्) समुच्चये। (इदानीम्) इदम्-दानीम्। इदम् इश्। पा० ५।३।३। दानीं च। पा० ५।३।१९। इति वर्तमाने दानीम्। अस्मिन् काले। (भगवन्तः) सकलैश्वर्ययुक्ताः। (स्याम) भवेम। (उत, उत) नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति द्विर्वचनम्। अपि च। (प्रपित्वे) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। उ० ४।१०५। प्र+आप्लृ व्याप्तौ-इत्वन्, आकारलोपः। प्रपित्वेऽभीक इत्यासन्नस्य प्रपित्वे प्राप्ते-निरु० ३।२०। प्राप्ते सौभाग्ये। (अह्नाम् मध्ये) दिनानाम्। मध्ये। भविष्यकाले। (उदितौ) उद्+इण् गतौ-क्तिन्। उदये। उद्गमने। (मघवन्) अ० २।५।७। महि वृद्धौ, दाने च-घञर्थे क, मतुप्। मघमिति धननामधेयं महंतेर्दानकर्मणः-निरु० १।७। हे प्रशस्तधनवन्। (सूर्यस्य) आदित्यस्य। (देवानाम्) आप्तविदुषाम्। (सुमतौ) कल्याण्यां बुद्धौ ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (উত) এবং (ইদানীম্) এই কালে (ভগবন্তঃ) ভগসম্পন্ন (স্যাম) আমরা হই, (উত) এবং (প্রপিত্বে) [সূর্যের] পশ্চিমে প্রপতনকালে/অস্তকালে, (উত) এবং (অহ্নাম্ মধ্যে) দিনের মধ্যকালে, (উত) এবং (সূর্যস্য উদিতৌ) সূর্যের উদয়কালে (মঘবন্) হে ধনশালী/ধনবান পরমেশ্বর ! (বয়ম্) আমরা যেন (দেবানাম্) দেবতাদের (সুমতৌ স্যাম) সুমতিতে হই, থাকি।

    टिप्पणी

    [দেবানাম্ =দেবো দানাদ্ বা (নিরুক্ত ৭।৪।১৫)। ইদানীম্= এখন অর্থাৎ যখনই কোনো প্রত্যাশী চাওয়ার জন্য/প্রত্যাশা করার জন্য চলে আসে। মন্ত্রে "মঘবন্" পদ দ্বারা ভগ-এর ধনবান স্বরূপের কথন হয়েছে। দেবগণের সুমতি হল দান করার, আমরা দানীরাও এই সুমতিতে যেন থাকি, এমন প্রার্থনা বা ইচ্ছা প্রকট করা হয়েছে।]

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    मन्त्र विषय

    বুদ্ধিবর্ধনায় প্রভাতগীতিঃ

    भाषार्थ

    (উত) এবং (ইদানীম্) এই সময় (উত উত) আরও (অহ্নাম্) দিনের (মধ্যে) মধ্যে (প্রপিত্বে) প্রাপ্ত [ঐশ্বর্যে] আমরা (ভগবন্তঃ) পরম ঐশ্বর্যবান (স্যাম) হই। (উত) এবং (মঘবন্) হে মহাধনী ঈশ্বর ! (সূর্যস্য) সূর্যের (উদিতৌ) উদয়ে (দেবানাম্) বিদ্বানদের (সুমতৌ) সুমতিতে যেন (বয়ম্) আমরা (স্যাম) থাকি ॥৪॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ৩ এর অনুসারে প্রাপ্ত ঐশ্বর্যকে আমরা সর্বতোভাবে বৃদ্ধি করি, এবং যেমন সূর্যের উদয়ে আলো বৃদ্ধি হতে থাকে তেমনই দেবতাদের অনুকরণে আমরা নিজেদের ধার্মিক বুদ্ধি এর অভ্যুদয় করি ॥৪॥ ‘উদিতৌ’ এর স্থানে ঋগ্ ও যজুর্বেদে ‘উদিতা’ রয়েছে।

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