अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वरुणः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
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सर्वं॒ तद्राजा॒ वरु॑णो॒ वि च॑ष्टे॒ यद॑न्त॒रा रोद॑सी॒ यत्प॒रस्ता॑त्। संख्या॑ता अस्य नि॒मिषो॒ जना॑नाम॒क्षानि॑व श्व॒घ्नी नि मि॑नोति॒ तानि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसर्व॑म् । तत् । राजा॑ । वरु॑ण: । वि । च॒ष्टे॒ । यत् । अ॒न्त॒रा । रोद॑सी इति॑ । यत् । प॒रस्ता॑त् । सम्ऽख्या॑ता: । अ॒स्य॒ । नि॒ऽमिष॑: । जना॑नाम् । अ॒क्षान्ऽइ॑व । श्व॒ऽघ्नी । नि । मि॒नो॒ति॒ । तानि॑ ॥१६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वं तद्राजा वरुणो वि चष्टे यदन्तरा रोदसी यत्परस्तात्। संख्याता अस्य निमिषो जनानामक्षानिव श्वघ्नी नि मिनोति तानि ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वम् । तत् । राजा । वरुण: । वि । चष्टे । यत् । अन्तरा । रोदसी इति । यत् । परस्तात् । सम्ऽख्याता: । अस्य । निऽमिष: । जनानाम् । अक्षान्ऽइव । श्वऽघ्नी । नि । मिनोति । तानि ॥१६.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पदार्थ
(राजा वरुणः) राजा वरुण (तत् सर्वम्) वह सब (वि चष्टे) देखता रहता है, (यत्) जो कुछ (रोदसी अन्तरा) सूर्य और भूमि के बीच में, और (यत्) जो कुछ (परस्तात्) परे है। (जनानाम्) मनुष्यों के (निमिषः) पलक मारने (अस्य) इस [वरुण] के (संख्याताः) गिने हुए हैं, वह (तानि) हिंसा कर्मों को (नि मिनोति) गिरा देता है (श्वघ्नी इव) जैसे धन हारनेवाला जुआरी (अक्षान्) पासों को [गिरा देता है] ॥५॥
भावार्थ
वरुण सर्वज्ञ सर्वनियन्ता है, वह दुष्टों को दण्ड देकर ऐसे गिरा देता है, जैसे हारा जुआरी निर्धन होकर क्रोध से पांसे आदि पटक देता है। यहाँ गिराने मात्र में दृष्टान्त है ॥५॥
टिप्पणी
५−(सर्वम् तत्) सकलं वृत्तम् (राजा वरुणः) समर्थः परमेश्वरः (विचष्टे) अ० ४।११।२। विशेषेण पश्यति (यत्) (रोदसी अन्तरा) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (परस्तात्) म० ४। दूरदेशे (संख्याताः) परिगणिताः (अस्य) वरुणस्य (निमिषः) मिष स्पर्धायाम्-क्विप्। निमेषाः। चक्षुषः स्पन्दनकालाः। (जनानाम्) प्राणिनाम् (अक्षान्) अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ-स। द्यूतसाधनानि (इव) यथा (श्वघ्नी) कर्मणि हनः। पा० ३।२।७६ इति। स्व+हन-णिनि। सस्य शः। श्वघ्नी कितवो भवति, स्वं हन्ति स्वं पुनराश्रितं भवति-निरु० ५।२२। स्वहा, स्वघाती। धननाशकः। द्यूतकारकः (निमिनोति) डुमिञ् प्रक्षेपणे। नीचैः क्षिपति (तानि) तर्द हिंसे-ड। तर्दनानि। हिंसनानि ॥
विषय
प्रभु के लिए परोक्ष नहीं
पदार्थ
१. (राजा वरुणः) = वह शासक व पाप-निवारक प्रभु (तत् सर्वं विचष्टे) = उस सबको देखता है (यत्) = जो (रोदसी अन्तरा) = द्यावापृथिवी के बीच में है और (यत् परस्तात्) = जो इन लोकों के परे है। २. (जनानाम्) = लोगों की (निमिष:) = पलकों की झपकों को भी (अस्य संख्याता:) = इसने गिना हुआ है। यह (तानि) = उन पलकों की झपकों को भी इसप्रकार (निमिनोति) = नाप लेता है (इव) = जैसेकि (श्वप्नी) = जुवारी (अक्षान) = पाशों को नापता है।
भावार्थ
प्रभु सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अन्दर-बाहर देख रहे हैं। मनुष्यों की पलकों की झपकों को भी वे ठीक प्रकार माप रहे हैं, अर्थात् छोटी-से-छोटी क्रिया को भी प्रभु जान रहे हैं।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( रोदसी अन्तरा यत् ) = द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य में जो प्राणिमात्र वर्त्तमान हैं ( यत् परस्तात् ) = और जो हमारे सम्मुख वा हमसे परे वर्त्तमान हैं ( सर्वं तद् ) = उन सबको ( विचष्टे ) = वरुण राजा भली प्रकार देखते हैं, ( जनानाम् निमिष: ) = प्राणियों के नेत्रस्पन्दादि सर्व व्यवहार ( अस्य संख्याता: ) = इस वरुण के गिने हुए हैं ( श्वघ्नी अक्षान् इव तानि निमिनोति ) = जैसे जुआरी अपनी जय के लिए जुए के पासों को फेंकता है, ऐसे ही सब प्राणियों के पुण्य पाप कर्मों के फलों को वरुण राजा देते हैं।
भावार्थ
भावार्थ = हे श्रेष्ठ प्रभो! ऊपर का द्युलोक, नीचे का पृथिवी लोक और इन दोनों में जो प्राणिमात्र वर्त्तमान हैं और जो हमारे सम्मुख वा हमसे परे वर्त्तमान हैं इन सबको आप अपनी सर्वज्ञता से देख रहे हैं। जैसे कोई जुआरी पासों को जानकर फेंकता है ऐसे आप ही प्राणियों के शुभ-अशुभ कर्मों के फलप्रदाता हैं ।
भाषार्थ
(वरुण: राजा) वरुण राजा (तद् सर्वम्) उस सबको (वि चष्टे) विवेकपूर्वक देखता है, (यत्) जोकि (रोदसी) द्युलोक और पृथिवी के (अन्तरा) अन्तराल में है, (यत्) और जो (परस्तात्) उससे परे है। (जनानाम्) जनों के (निमिष:) निमेष-उन्मेष (अस्य) इस वरुण के (संख्याताः) गिने हुए हैं, (तानि) उन गिने निमेष-उन्मेषों को अर्थात् अक्षिस्पन्दनों को, वह वरुण ही (निमिनोति) प्रक्षिप्त प्रेरित करता है, (इव) जैसे कि (श्वघ्नी) अपने भविष्य का हनन करनेवाला जुआ-खिलाड़ी, (अक्षान्) पासों को [आस्फार में] (नि मिनोति) फेंकता है [स्वविजय की भावना से।]
टिप्पणी
[आस्फार=क्रीडाफलक। श्वः उपाशंसनीयः कालः (निरुक्त १।३।६) श्वघ्नी= श्वः घ्नी। निमिनोति= डुमिञ् निक्षेपणे (स्वादिः)। “श्वघ्नी= स्वम् आत्मानम्, स्वकीयं धनं च हन्तीति कितवः श्वघ्नी” (सायण), “श्वघ्नी कितवो भवति। स्वं हन्ति” (निरुक्त ५।२२)। निमिनोति =डुमिञ् प्रक्षेपणे (स्वादिः)।]
विषय
राजा और ईश्वर का शासन।
भावार्थ
राजा वरुण की सर्वदर्शिता को बतलाते हैं। (राजा वरुणः) राजा, सबका शासक परमात्मा (तत् सर्वम्) वह सब (यत् रोदसी अन्तरा) जो इन दोनों लोकों के बीच में और (यत् परस्तात्) जो इन से परे भी है वह सब कुछ (विचष्टे) नाना प्रकारों से और विशेष रूप से देखता है। (अस्य) इसने (जनानां) मनुष्यों और प्राणियों के (निमिषः) पलकों की झपकों तक को (संख्याताः) गिन रक्खा है। क्योंकि (श्वघ्नी) जुआरी जिस प्रकार अपने (अक्षान्) पासों को (नि-मिनोति) खूब नाप जोख कर रखता हैं उसी प्रकार वह भी इन सब लोकों को नाप २ कर रखता, जोखता और रचता रहता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। सत्यानृतान्वीक्षणसूक्तम्। वरुणो देवता। १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्। ७ जगती। ८ त्रिपदामहाबृहती। ९ विराट् नाम त्रिपाद् गायत्री, २, ४, ६ त्रिष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
All Watching Divinity
Meaning
All that, the ruler Varuna watches closely, whatever is in heaven and earth and beyond. Even people’s wink of the eye every moment throughout life is watched, counted and assessed by him as every cast and move of the dice is perceived by the player. (May be he is a player. He has cast the die and watches. We are the dice. He casts us according to our Karma, but we move according to our will, still within the rules of his game.)
Translation
The lustrous venerable Lord beholds all that exists between the space ánd earth and even beyond that. Keeps counter record even of the winkings of people. He fixes those things accordingly as a gambler throws dice.
Translation
The Imperial Ruler Varuna (The Supreme Being) beholdeth all this whatever is between heaven and earth and even all that is beyond them. He has counted the twinkling of eyelids of the people and he ordains and settles all things like man playing gambling throws dice.
Translation
God beholdeth all between heaven and earth, and all beyond them. The twinkling’s of men's eyelids bath He counted. He throws down the sinners as a gambler throws dice.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(सर्वम् तत्) सकलं वृत्तम् (राजा वरुणः) समर्थः परमेश्वरः (विचष्टे) अ० ४।११।२। विशेषेण पश्यति (यत्) (रोदसी अन्तरा) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (परस्तात्) म० ४। दूरदेशे (संख्याताः) परिगणिताः (अस्य) वरुणस्य (निमिषः) मिष स्पर्धायाम्-क्विप्। निमेषाः। चक्षुषः स्पन्दनकालाः। (जनानाम्) प्राणिनाम् (अक्षान्) अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ-स। द्यूतसाधनानि (इव) यथा (श्वघ्नी) कर्मणि हनः। पा० ३।२।७६ इति। स्व+हन-णिनि। सस्य शः। श्वघ्नी कितवो भवति, स्वं हन्ति स्वं पुनराश्रितं भवति-निरु० ५।२२। स्वहा, स्वघाती। धननाशकः। द्यूतकारकः (निमिनोति) डुमिञ् प्रक्षेपणे। नीचैः क्षिपति (तानि) तर्द हिंसे-ड। तर्दनानि। हिंसनानि ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
সর্বং তদ্ রাজা বরুণো বি চষ্টে য়দন্তরা রোদসী য়ৎপরস্তাৎ।
সংখ্যাতা অস্য নিমিষো জনানামক্ষাতিব শ্বঘ্নী নিমিনোতি তানি।।১৭।।
(অথর্ব ৪।১৬।৫)
পদার্থঃ (রোদসী অস্তরা য়ৎ) দ্যুলোক আর পৃথিবী লোকের মধ্যে যে প্রাণীসকল বর্তমান আছে (য়ৎ পরস্তাৎ) আর আমাদের সম্মুখে বা আমাদের পিছনে বর্তমান আছে, (সর্বং তদ্) তাদের সকলকে (বরুণো রাজা বি চষ্টে) রাজা বরণীয় পরমাত্মা ভালোভাবে দেখেন। (জনানাম্ নিমিষঃ) প্রাণীদের চোখের পলক ফেলার মতোও ঘটনা (অস্য সংখ্যাতা) তাঁর গণনা করা। (শ্বঘ্নী অক্ষাৎ ইব তানি নিমিনোতি) যেভাবে জুয়াড়ি নিজের জয়ের জন্য জুয়ার পাশ গুলো নিক্ষেপ করে, এভাবেই সকল প্রাণীর পাপ-পুণ্যের কর্মফল পরমাত্মা দান করেন।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে বরণীয় পরমাত্মা, রাজা বরুণ! উপরের দ্যুলোক আর নিচের পৃথিবীলোক আর এই দুইয়ের মাঝে যেসকল প্রাণী বর্তমান আছে, আর যারা আমাদের সম্মুখে আর যারা আমাদের পেছনে আছে, তাদের সকলকে তুমি তোমার সর্বজ্ঞতা স্বরূপে দেখছ। যেভাবে কোনো জুয়াড়ি সূক্ষ্ণভাবে হিসাব-নিকাশ করে নিজের স্বার্থস্বরূপ জয়ের জন্য পাশ গুলোকে নিক্ষেপ করে, সেভাবে তুমি, ন্যায়বিচারক পরমাত্মা প্রাণীদের শুভাশুভ কর্মের ফল সূক্ষ্ণভাবে হিসেব করে প্রদান করো।।১৭।।
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