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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    ऋषिः - चातनः देवता - सत्यौजा अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सत्यौजा अग्नि सूक्त
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    य आ॑ग॒रे मृ॒गय॑न्ते प्रतिक्रो॒शेऽमा॑वा॒स्ये॑। क्र॒व्यादो॑ अ॒न्यान्दिप्स॑तः॒ सर्वां॒स्तान्त्सह॑सा सहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । आ॒ऽग॒रे । मृ॒गय॑न्ते । प्र॒ति॒ऽक्रो॒शे । अ॒मा॒ऽवा॒स्ये᳡ ।क्र॒व्य॒ऽअद॑: । अ॒न्यान् । दिप्स॑त: । सर्वा॑न् । तान् । सह॑सा । स॒हे॒ ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य आगरे मृगयन्ते प्रतिक्रोशेऽमावास्ये। क्रव्यादो अन्यान्दिप्सतः सर्वांस्तान्त्सहसा सहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । आऽगरे । मृगयन्ते । प्रतिऽक्रोशे । अमाऽवास्ये ।क्रव्यऽअद: । अन्यान् । दिप्सत: । सर्वान् । तान् । सहसा । सहे ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो दुष्ट (आगरे) घर में (प्रतिक्रोशे) गूँजते हुए (अमावास्ये) अमावस के अन्धकार में (मृगयन्ते) खोजते फिरते हैं। (अन्यान्) दूसरों को (दिप्सतः) सतानेवाले (तान् सर्वान्) उन सब (क्रव्यादः) मांसभक्षी सिंह आदिकों को (सहसा) बल से (सहे) मैं जीतता हूँ ॥३॥

    भावार्थ

    रात्री के अन्धकार में जो सिंह आदि हिंसक पशु वा मनुष्य सतावें, राजा उनका यथावत् प्रबन्ध करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ये) शत्रवः (आगरे) ॠदोरप्। पा० ३।३।७७। इति गॄ निगरणे-अप्। आगारे। गृहे (मृगयन्ते) मृग अन्वेषणे। अन्विच्छन्ति (प्रतिक्रोशे) प्रतिध्वनियुक्ते (अमावास्ये) अमा सह वसतश्चन्द्रार्कौ यस्याम्, अमा+वस निवासे-ण्यत्, टाप्। इति अमावास्या कृष्णपक्षान्ततिथिः। अ च। पा० ४।३।३१। इति अमावास्या-अ प्रत्ययः, जात इत्यर्थे। अमावास्यायां जाते कृष्णकाले (क्रव्यादः) अ० २।२५।५। मांसभक्षकान् सिंहादीन् (अन्यान्) इतरान् पुरुषान् (दिप्सतः) हिंसितुमिच्छून्। (सर्वान्) (तान्) (सहसा) बलेन (सहे) अभिभवामि ॥

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    विषय

    आगरे प्रतिक्रोशे अमावास्ये

    पदार्थ

    १. (ये) = जो हमें आगरे [आ गीर्यते समन्ताद् युज्यते अत्र] भोजनालय [Hotel] में (मृगयन्ते) = मारने के लिए ढूंढते फिरते हैं, प्रतिकोशे-प्रतिकूल शत्रुओं से किये हुए आक्रोश के अवसर पर-कलह के अवसर पर (अमावास्ये) = अमावास्या की रात्रि में अन्धकार में मारने के लिए खोजते फिरते हैं, इन (व्यादः) = मांसभोजी (अन्यान् दिप्सतः) = औरों को मारने की इच्छा करनेवाले (तान् सर्वान)  उन सबको (सहसा) = शत्रुमर्षक बल के द्वारा (सहे) = पराभूत करता हूँ।

    भावार्थ

    भोजनालयों में, कलहों के अवसर पर, अन्धकारमयी रात्रि में जो औरों को मारने की इच्छा करते हैं, 'वैश्वानर अग्नि' उन सबको बल से पराभूत करें।

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    भाषार्थ

    (अमावस्या) अमावस्या१ के रात्रि काल में, (प्रतिक्रोशे) प्रतिद्वंद्विता में किये आक्रोश में, नादों या नारों में, (ये) जो (आगरे=आगारे) हमारे राष्ट्र-गृह में [घुसकर] (मृगयन्ते) हमारी खोज करते हैं, तथा (अन्यान्) हम अधिकारियों से भिन्न अन्य प्रजाजनों को (दिप्सतः) दम्भ से हिंसित करना चाहते हैं, (तान् सर्वान्) उन सब (क्रव्याद:) मांस-भक्षकों का (सहसा) साहसपूर्वक या बल द्वारा (सहे) मैं सेनापति पराभव करता हूं।

    टिप्पणी

    [सह: बलनाम (निघं० २।९)। सहे= अनुभवामि (सायण), पराभव करता हूँ। क्रव्याद:= शत्रुसैनिक। युद्ध में हत्या करना, मानुषमांस को खाना ही है।] [१. अमावस्या के रात्रिकाल में अंधेरा होने से, शत्रुदल को, छिपे-छिपे खोज का स्वपसर मिल जाता है। मृगपन्ते=मृण अन्वेषणे (चुरादिः), अन्वेषण खोज करना, ढुंढना।]

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    विषय

    न्याय-विधान और दुष्टों का दमन।

    भावार्थ

    (ये) जो लोग (आगरे) घर में, (प्रतिक्रोशे) कलह के अवसरो में और (अमावास्ये) एक स्थान पर एकत्र होने के अवसरों और स्थानों में (मृगयन्ते) प्रतिहिंसा के भाव से दूसरों का घात लगाते हैं और (अन्यान्) अपरिचित लोगों की (दिप्सतः) हिंसा करने वाले (क्रव्यादः) परमांसभोजी, बिना अधिकार के दूसरे का माल चुराने और छीनने वाले हैं (तान् सर्वान्) उन सबों को (सहसा) अपने बल से मैं शासक (सहे) अपने नीचे दबा दूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः। सत्यौजा अग्निर्देवता। १-८ अनुष्टुभः, ९ भुरिक्। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Power of Truth

    Meaning

    Whoever in the home, in disputes or in gatherings and crowds, hurts and hunts others for nothing, whoever the flesh eater, whoever the injurer of others, let me challenge and punish them all with the force of justice.

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    Translation

    Who seck their preys at the moonless night with agreed Shouts and counter-shouts, all those flesh-eaters, bent upon harming others, I overpower with my overwhelming might.

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    Translation

    I overcome, with might them who hunts at the time of dark moon, at the time of quarrel and in the house of ours and also all those others who injure others and who devours the flesh of others.

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    Translation

    Those who, at the time of a quarrel in the house, and in the darkness of midnight, hurt for others to injure them, flesh-eaters, others who would harm,—all these I overcome with might.

    Footnote

    I: A King.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ये) शत्रवः (आगरे) ॠदोरप्। पा० ३।३।७७। इति गॄ निगरणे-अप्। आगारे। गृहे (मृगयन्ते) मृग अन्वेषणे। अन्विच्छन्ति (प्रतिक्रोशे) प्रतिध्वनियुक्ते (अमावास्ये) अमा सह वसतश्चन्द्रार्कौ यस्याम्, अमा+वस निवासे-ण्यत्, टाप्। इति अमावास्या कृष्णपक्षान्ततिथिः। अ च। पा० ४।३।३१। इति अमावास्या-अ प्रत्ययः, जात इत्यर्थे। अमावास्यायां जाते कृष्णकाले (क्रव्यादः) अ० २।२५।५। मांसभक्षकान् सिंहादीन् (अन्यान्) इतरान् पुरुषान् (दिप्सतः) हिंसितुमिच्छून्। (सर्वान्) (तान्) (सहसा) बलेन (सहे) अभिभवामि ॥

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