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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भृगुः देवता - त्रैककुदाञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
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    यदि॒ वासि॑ त्रैककु॒दं यदि॑ यामु॒नमु॒च्यसे॑। उ॒भे ते॑ भ॒द्रे नाम्नी॒ ताभ्यां॑ नः पाह्याञ्जन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । वा॒ । असि॑ । त्रै॒क॒कु॒दम् । यदि॑ । या॒मु॒नम् । उ॒च्यसे॑ । उ॒भे इति॑ । ते॒ । भ॒द्रे इति॑ । नाम्नी॒ इति॑ । ताभ्या॑म् । न॒: । पा॒हि॒ । आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒ ॥९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि वासि त्रैककुदं यदि यामुनमुच्यसे। उभे ते भद्रे नाम्नी ताभ्यां नः पाह्याञ्जन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । वा । असि । त्रैककुदम् । यदि । यामुनम् । उच्यसे । उभे इति । ते । भद्रे इति । नाम्नी इति । ताभ्याम् । न: । पाहि । आऽअञ्जन ॥९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि वा) चाहे तू (त्रैककुदम्) तीन प्रकार के [आध्यात्मिक आदि] सुखों के पहुँचानेवाले, यद्वा तीनों लोकों वा कालों में गतिवाले पुरुषों का ईश्वर (असि) है, (यदि=यदि वा) चाहे तू (यामुनम्) यमों, नियन्ताओं, न्यायकारियों का हितकारी (उच्यसे) कहा जाता है, (उभे) दोनों (ते) तेरे (नाम्नी) नाम (भद्रे) कल्याणकारक हैं, (आञ्जन) हे संसार के व्यक्त करनेवाले ब्रह्म ! (ताभ्याम्) उन दोनों से (नः पाहि) हमारी रक्षा कर ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर के उत्तम उत्तम गुणों का चिन्तन करके पुरुषार्थ के साथ दुष्कर्मों से बचकर सदा आनन्द भोगे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(यदि वा) अथवा (असि) भवसि (त्रैककुदम्) व्याख्यातम् म० ९। (यदि) अथवा (यामुनम्) अजियमिशीङ्भ्यश्च। उ० ३।६१। इति यम नियमने-उनन्। यमयतीति यमुनः। तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति अण्। यमुनेभ्यो यमेभ्यो न्यायकारिभ्यो हितम् (उच्यसे) त्वं कथ्यसे (उभे) त्रैककुदं यामुनमिति (ते) तव (भद्रे) कल्याणकरे (नाम्नी) नामनी, संज्ञे (ताभ्याम्) नामभ्याम् (नः) अस्मान् (पाहि) रक्ष (आञ्जन) म० ३। हे संसारस्य व्यक्तीकारक, ब्रह्म ॥

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    विषय

    त्रैककुर्द यामुनम्

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! आप (यदि वा) = या तो (त्रैककुदम् असि) = 'ज्ञान, शक्ति व धन' तीनों के दृष्टिकोण से शिखर पर पहुँचे हुए हैं, अत: 'ककुदम्' नामवाले हैं। (यदि) = अथवा (यामुनम्) = [यमुनाया: अपत्यम्] संयमवृत्ति से प्रादुर्भूत होनेवाले हैं। संयमी पुरुष के हृदय में आपका प्रादुर्भाव होता है, अत: 'यामुनम्' इस नाम से (उच्यसे) = कहे जाते हैं । २. (ते) = आपके ये (उभे) = दोनों (नाम्नी) = नाम [त्रैककुद और यामुन] (भद्रे) = कल्याणकर हैं। हे (आञ्जन) = हमारे जीवनों में सब गुणों का प्रकाश करनेवाले प्रभो! (ताभ्याम्) = उन दोनों नामों के द्वारा (न:पाहि) = आप हमारा रक्षण कीजिए। हम भी त्रैककुद बनने का प्रयत्न करें-ज्ञान, शक्ति व ऐश्वर्य के शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करें तथा यामुन बनें-यथाशक्तिसंयमी जीवनवाले हों।।

    भावार्थ

    प्रभु को 'त्रैककुद व यामुन' नामों से स्मरण करते हुए हम जहाँ ज्ञान, शक्ति व ऐश्वर्य की प्राप्ति में आगे बढ़ें, वहाँ संयमी जीवनवाले हों।

    विशेष

    यह संयमी जीवनवाला पुरुष 'अथर्वा' [न डाँवाडोल] बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है। यह प्रभु को शंख' नाम से स्मरण करता है-'शम् ख' इन्द्रियों को शान्ति देनेवाला। यह कहता है कि -

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    भाषार्थ

    (आञ्जन) हे सर्वत्र संसार की अभिव्यक्ति करनेवाले ब्रह्म-पुरुष ! (यदि वा) चाहे तु (त्रैककुदम् असि) तीन ककुद-स्थलों मे आविर्भूत हुआ है, (यदि वा) अथवा (यामुनम्) उपराम विधि से प्रकट हुआ (उच्यसे) कहा जाता है, (ते) तेरे (उभे नाम्नी) दोनों नाम (भद्रे) सुखदायक और कल्याण करनेवाले हैं, (ताभ्याम्) उन दोनों नामों द्वारा (न:) हमारी (पाहि) रक्षा कर।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में पुल्लिङ्ग (आञ्जन) तथा नपुंसक (त्रैककुदम्) दोनों पदों का प्रयोग हुआ है, जोकि ब्रह्म-पुरुष और ब्रह्म दोनों का निर्देश करता है। 'त्रैककुदम्' नाम की व्याख्या पूर्वोक्त मन्त्रों में की जा चुकी है। यामुनम्= यम उपरमे (भ्वादिः), सांसारिक भोगों से उपरतिः, विश्राम, उन भोगों का परित्याग। भद्रे=भदि कल्याण सुखे च (भ्वादिः)।]

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    विषय

    अञ्जन के दृष्टान्त से ज्ञान का वर्णन।

    भावार्थ

    हे ज्ञानाञ्जन ! (यदि वा त्रैककुदम् असि) चाहे तेरा नाम ‘त्रैककुद’ अर्थात् तीनों वेदों से उत्पन्न ज्ञान रूप है। (यदि वा यामुनम् उच्यसे) और चाहे तू ‘यामुन’ यम, नियम साधना से योगजरूप में उत्पन्न होकर ‘यामुन’ कहाता है। (ते) तेरे (उभे) वे दोनों (भद्रे) कल्याण और सुखकर उत्तम (नाम्नी) स्वरूप हैं, (ताभ्यां) उन दोनों से (नः) हमें (पाहि) पालन कर। यहाँ लोक में प्रसिद्ध दो प्रकार के भञ्जनों का भी उपदेश कर दिया।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भगुर्ऋषिः। त्रैककुदमञ्जनं देवता। १, ४-१० अनुष्टुभः। कुम्मती। ३ पथ्यापंक्तिः। दशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Anjana, Refinement

    Meaning

    O vision of clairvoyance, Anjana, whether you are Traikakuda, i.e., born of the Triple Master through the threefold divine vision of knowledge, action and meditation, or, whether you are called Yamuna, i.e., meditative guide through the social and personal ethics of Yama and Niyama, both ways your names are noble. By both of these, pray, protect and guide us through life to the beauty and grace of life divine.

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    Translation

    O ointment, whether you are of the Trikakut mountain, or you are said to be of Yamuna, both of your names (Gangotri and Yamunotri) are excellent, with them, may you protect us.

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    Translation

    Both the names of the salve are auspicious if it bears the name as Traikakudam, produced by three peaked mountain and if it bears the name as Yamanam that which is prepared by mixing some other medicines. Let it protect us in both the cases.

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    Translation

    O Knowledge, if thou hast emanated from the three aspects of the Vedas, or proceeded from Yamas and Niyamas, the limbs of Yoga, both thesenames are auspicious by these two protect thou us!

    Footnote

    Three aspects: Knowledge,ज्ञान, Action, कर्म, contemplation,उपासना,Yamas: (1) Non-violence (2) Truth (3) Non-stealing (4) Celibacy (5) Non-arrogance. Niyamas: (1) Purity (2) Contentment (3) Austerity (4) Study (5) Resignation to God. Griffith interprets Yamunam as obtained from the river Yamuna, त्रैककुंद as three peaked hill. This interpretation is illogical, as it savors of history in the Vedas, which are free from it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यदि वा) अथवा (असि) भवसि (त्रैककुदम्) व्याख्यातम् म० ९। (यदि) अथवा (यामुनम्) अजियमिशीङ्भ्यश्च। उ० ३।६१। इति यम नियमने-उनन्। यमयतीति यमुनः। तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति अण्। यमुनेभ्यो यमेभ्यो न्यायकारिभ्यो हितम् (उच्यसे) त्वं कथ्यसे (उभे) त्रैककुदं यामुनमिति (ते) तव (भद्रे) कल्याणकरे (नाम्नी) नामनी, संज्ञे (ताभ्याम्) नामभ्याम् (नः) अस्मान् (पाहि) रक्ष (आञ्जन) म० ३। हे संसारस्य व्यक्तीकारक, ब्रह्म ॥

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