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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 13
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
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    तृती॑यकं वितृती॒यं स॑द॒न्दिमु॒त शा॑र॒दम्। त॒क्मानं॑ शी॒तं रू॒रं ग्रैष्मं॑ नाशय॒ वार्षि॑कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तृती॑यकम् । वि॒ऽतृ॒ती॒यम् । स॒द॒म्ऽदिम् । उ॒त । शा॒र॒दम् । त॒क्मान॑म् । शी॒तम् । रू॒रम् । ग्रैष्म॑म् । ना॒श॒य॒ । वार्षि॑कम् ॥२२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तृतीयकं वितृतीयं सदन्दिमुत शारदम्। तक्मानं शीतं रूरं ग्रैष्मं नाशय वार्षिकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तृतीयकम् । विऽतृतीयम् । सदम्ऽदिम् । उत । शारदम् । तक्मानम् । शीतम् । रूरम् । ग्रैष्मम् । नाशय । वार्षिकम् ॥२२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे वैद्य !] (तृतीयकम्) तिजारी, (वितृतीयम्) चौथिया आदि अन्तरिया, (सदन्दिम्) सदा फूटन करनेवाले, निरन्तरा (उत्) और (शारदम्) शरद ऋतु में आनेवाले, (शीतम्) शीत, (रूरम्) क्रूर, (ग्रैष्मम्) ग्रीष्म में आनेवाले, (वार्षिकम्) वर्षा में होनेवाले (तक्मानम्) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (नाशय) मिटा दे ॥१३॥

    भावार्थ

    सद्वैद्य देश, काल, स्वभाव आदि का विचार करके मनुष्यों को स्वस्थ रक्खे ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(तृतीयकम्) अ० १।२५।४। तृतीयदिने आगच्छन्तम् (वितृतीयम्) तृतीयदिनाद् भिन्नम् (सदन्दिम्) सदम् इत्यव्ययं सदेत्यर्थे। उपसर्गे घोः किः। पा० ३।३।९२। इति सदम्+दो अवखण्डने−कि। सदा खण्डकं पीडकम्। निरन्तरम् (उत) अपि (शारदम्) शरद्−अण्। शरदि भवम् (तक्मानम्) दुःखकरं ज्वरम् (शीतम्) अ० १।२५।४। शीतस्पर्शम् (रूरम्) म० १०। क्रूरम् (ग्रैष्मम्) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। इति ग्रसु अदने−मक्, ग्री भावः, षुक् च। ग्रीष्म−अण्। ग्रीष्मे भवम् (नाशय) नष्टं कुरु (वार्षिकम्) अ० ४।१९।१। वर्षासु भवम् ॥

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    विषय

    शारदं, ग्रैष्मं, वार्षिकम्

    पदार्थ

    १. (तृतीयकम्) = तीसरे दिन आनेवाले, (वि-तृतीयम्) = तीन दिन छोड़कर आनेवाले [चौथैया] (सदन्दिम्) = [सदं, दो अवखण्डने] सदा पीड़ित करनेवाले (उत) = और (शारदम्) = शरद् ऋतु में आनेवाले (तक्मानम्) = ज्वर को (नाशय) = नष्ट कर । २. (शीतम्) = सर्दी से लगकर आनेवाले, (सरम्) = गर्मी लगकर आनेवाले, (गृष्मम्) = ग्रीष्म ऋतु में हो जानेवाले तथा वार्षिकम्-वर्षाऋतु में होनेवाले ज्वर को [नाशय] नष्ट कर।

    भावार्थ

    एक सवैद्य सब प्रकार के रोगों को उचित औषधोपचार से दूर कर दे।

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    भाषार्थ

    (तृतीयकम्) तीसरे दिन के, (वितृतीयम्) तीसरे दिन से विभिन्न दिनों के, (सदन्दिम्) सदा क्षीणकारी या अवखण्डितकारी, (उत) तथा (शारदम्) शरदृतु में होनेवाले, (ग्रैष्मम्) ग्रीष्म ऋतु में होनेवाले, (वार्षिकम्) वर्षा ऋतु में होनेवाले, (शीतम्, रूरम्) [मन्त्र १०] (तक्मानम्) तक्मा-ज्वर को (नाशय) नष्ट कर [हे परमेश्वर]।

    टिप्पणी

    [सदन्दिम्=सदम्+दिम् (दीङ्क्षये, अथवा दो अवखण्डने)।]

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    विषय

    ज्वर का निदान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    हे पुरुष ! तू (तृतीयकम्) तीसरे दिन आने वाले (वि-तृतीयकम्) दो दिन का अन्तर देकर आने वाले (सदन्दिम्) निरन्तर रहने वाले (उत शारदम्) या शरत्-काल में होने वाले, (शीतं) या शीत देकर आने वाले (रूरं) पीड़ा या तीव्र ताप, जलन उत्पन्न करके देह तोड़ने वाले या (ग्रैष्मं) गर्मी से उत्पन्न होने वाले या (वार्षिकम्) वर्षाकाल में होने वाले (तक्मानं) ज्वर को (नाशय) विनाश कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Fever

    Meaning

    Fever must be eliminated: whether it relapses on third day, or fourth day, or it comes daily, or in the cold season, whether it comes with cold and shivers, or with dryness and pain, or with heat and burning, or it comes in the rainy season.

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    Translation

    May you drive away all types of fevers enlisted below : (i) tritiyakam - tertian, (ii) vitrtiyam-intermittent, (iii) Sadamdim - constant, (iv) Sardam-autumnal, (v) takmanam - pertaining to skin eruptions, (vi) Sitam - in cold, (vii) rüram - that comes in sisira (cold winters), (viii) graismam - in summers, (ix) varsikam - during rains.

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    Translation

    O physician! destroy the fevers of the Kinds-intermittent fever; that which leaves after two days; continuous fever; that which emerges in the autumn; cold and hot fevers; that which comes in the summer season and the rainy fever.

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    Translation

    O physician, chase Fever whether cold or hot, brought by the summer or the rains, tertian, intermittent, or autumnal, or continual!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(तृतीयकम्) अ० १।२५।४। तृतीयदिने आगच्छन्तम् (वितृतीयम्) तृतीयदिनाद् भिन्नम् (सदन्दिम्) सदम् इत्यव्ययं सदेत्यर्थे। उपसर्गे घोः किः। पा० ३।३।९२। इति सदम्+दो अवखण्डने−कि। सदा खण्डकं पीडकम्। निरन्तरम् (उत) अपि (शारदम्) शरद्−अण्। शरदि भवम् (तक्मानम्) दुःखकरं ज्वरम् (शीतम्) अ० १।२५।४। शीतस्पर्शम् (रूरम्) म० १०। क्रूरम् (ग्रैष्मम्) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। इति ग्रसु अदने−मक्, ग्री भावः, षुक् च। ग्रीष्म−अण्। ग्रीष्मे भवम् (नाशय) नष्टं कुरु (वार्षिकम्) अ० ४।१९।१। वर्षासु भवम् ॥

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