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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 108/ मन्त्र 4
    ऋषिः - शौनक् देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मेधावर्धन सूक्त
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    यामृष॑यो भूत॒कृतो॑ मे॒धां मे॑धा॒विनो॑ वि॒दुः। तया॒ माम॒द्य मे॒धयाग्ने॑ मेधा॒विनं॑ कृणु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ऋषय: । भूतऽकृत: । मेधाम् । मेधाविन: । विदु: । तया । माम् । अद्य । मेधया । अग्ने । मेधाविनम् । कृणु ॥१०८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यामृषयो भूतकृतो मेधां मेधाविनो विदुः। तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कृणु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ऋषय: । भूतऽकृत: । मेधाम् । मेधाविन: । विदु: । तया । माम् । अद्य । मेधया । अग्ने । मेधाविनम् । कृणु ॥१०८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 108; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (4)

    विषय

    बुद्धि और धन की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस (मेधाम्) धारणावती बुद्धि वा सम्पत्ति को (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले, (मेधाविनः) उत्तम बुद्धि वा सम्पत्तिवाले (ऋषयः) ऋषि लोग (विदुः) जानते हैं। (अग्ने) हे विद्याप्रकाशक परमेश्वर वा आचार्य ! (तया मेधया) उसी धारणावती बुद्धि वा सम्पत्ति से (माम्) मुझको (अद्य) आज (मेधाविनम्) उत्तमबुद्धि वा सम्पत्तिवाला (कृणु) कर ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की उपासना और आप्त धर्मज्ञ विद्वानों की सेवा से शुद्ध विज्ञान प्राप्त करके उन्नति करें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−अ० ३२। म० १४ ॥

    टिप्पणी

    ४−(याम्) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः (भूतकृतः) भूतमुचितं कर्म कुर्वन्ति ते (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिं सम्पत्तिं वा (मेधाविनः) धीमन्तः, ऐश्वर्यवन्तः (विदुः) साक्षात्कुर्वन्ति (तया) (माम्) उपासकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (मेधया) धारणावत्या बुद्ध्या सम्पत्त्या वा (मेधाविनम्) बुद्धिमन्तं धनिनं वा (कृणु) कुरु ॥

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    विषय

    'भूतकृतः' ऋषयः

    पदार्थ

    १. (याम्) = जिस मेधाम् मेधाबुद्धि को भूतकृत:-[भूतम्] प्रत्येक कार्य को उचितरूप में करनेवाले ऋषयः तत्वद्रष्टा अथवा बुराइयों का संहार करनेवाले [ऋष् to kill] मेधाविन:-प्रशस्त मेधावाले पुरुष विदुः जानते हैं, हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो! आप (तया मेधया) = उस मेधा से (माम्) = मुझे भी (अद्य) = आज (मेधाविनं कृणु) = मेधावी कीजिए।

    भावार्थ

    हमें वह मेधा प्राप्त हो, जिसके प्राप्त होने पर हम उचित ही कर्म करते हैं और सब बुराइयों को दूर करनेवाले होते हैं।

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    भाषार्थ

    (भूतकृतः) सत्यकर्मों के करने वाले (ऋषयः) ऋषि तथा (मेधाविन) मेधावाले प्रज्ञानी; (याम् मेधाम्) जिस मेधा को (विदुः) जानते हैं, (तया मेधया) उस मेधा द्वारा (अग्ने) हे ज्ञानमय परमेश्वर (माम्) मुझे (अद्य) आज (मेधाविनम्) मेधासम्पन्न प्रज्ञानी (कृणु) कर।

    टिप्पणी

    [भूत= भू सत्तायाम् (भ्वादिः) + क्तः। अग्निः= परमेश्वर, यथा "तदेवाग्निस्तदादित्यः" (यजु० ३२।१)।]

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    विषय

    मेधा का वर्णन।

    भावार्थ

    (याम्) जिस (मेधाम्) मेधा को (भूतकृतः) उत्पन्न समस्त पदार्थों का उपयोग करने वाले अथवा पञ्चभूतों की साधना करने वाले, उन पर वशीकार साधना करने वाले (मेधाविनः) मेधावी, विद्वान्, मतिमान् पुरुष (विदुः) प्राप्त करते हैं, हे (अग्ने) आचार्य रूप अग्ने ! परमेश्वर ! (तथा) उस (मेधया) मेधा से (अद्य) आज, भ (माम् मेधाविनं कृणु) मुझ ब्रह्मचारी को भी मेधावी बनाओ।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘यां मेघां देवगणाः पितरश्च उपासते’ (च०) ‘कुरु’ इति यजु०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शौनक ऋषिः। मेधा देवता। ४ अग्निर्देवता। १, ४, ५ अनुष्टुप्, २ उरोबृहती, ३ पथ्या वृहती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Intelligence

    Meaning

    With that noble intelligence which the wise sages of vision and creative-inventive mind knew, had and developed, O Agni, lord of light, bless me, and make me wise and creative with the vision divine.

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    Subject

    Agni

    Translation

    The understanding, which the wise seers, the creators of beings, have acquired, with that, O adorable Lord; may you make wise today.

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    Translation

    O Self-refulgent God! make me wise with that of the knowledge which the wise seers of the primal emergence attain and retain.

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    Translation

    Do Thou, O God, make me wise this day with that intellect, which the creative Rishis which the men endowed with wisdom know.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(याम्) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः (भूतकृतः) भूतमुचितं कर्म कुर्वन्ति ते (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिं सम्पत्तिं वा (मेधाविनः) धीमन्तः, ऐश्वर्यवन्तः (विदुः) साक्षात्कुर्वन्ति (तया) (माम्) उपासकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (मेधया) धारणावत्या बुद्ध्या सम्पत्त्या वा (मेधाविनम्) बुद्धिमन्तं धनिनं वा (कृणु) कुरु ॥

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