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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रजापति देवता - रेतः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पुंसवन सूक्त
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    समीम॑श्व॒त्थ आरू॑ढ॒स्तत्र॑ पुं॒सुव॑नं कृ॒तम्। तद्वै पु॒त्रस्य॒ वेद॑नं॒ तत्स्त्री॒ष्वा भ॑रामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒मीम् । अ॒श्व॒त्थ: । आऽरू॑ढ: । तत्र॑ । पु॒म्ऽसुव॑नम् । कृ॒तम् । तत् । वै । पुत्रस्य॑ । वेद॑नम् । तत् । स्त्री॒षु । आ । भ॒रा॒म॒सि॒ ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसुवनं कृतम्। तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत्स्त्रीष्वा भरामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शमीम् । अश्वत्थ: । आऽरूढ: । तत्र । पुम्ऽसुवनम् । कृतम् । तत् । वै । पुत्रस्य । वेदनम् । तत् । स्त्रीषु । आ । भरामसि ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (अश्वत्थः) बलवानों में ठहरनेवाला पुरुष (शमीम्) शान्तस्वभाव स्त्री के प्रति (आरूढः) आरूढ हो चुकता है, (तत्र) उस काल में (पुंसुवनम्) सन्तान का उत्पत्तिकर्म (कृतम्) किया जाता है। (तत्) वह कर्म (वै) हा (पुत्रस्य) कुलशोधक संतान की (वेदनम्) प्राप्ति का कारण है, (तत्) उस कर्म को (स्त्रीषु) स्त्रियों में (आभरामसि) हम पहुँचाते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    वीर्यवान् पति और शान्तस्वभाव पत्नी यथाविधि परस्पर संयोग करके सन्तान उत्पन्न करें ॥१॥ इस सूक्त का विधान पुंसवनसंस्कार में भी दयानन्दकृत संस्कारविधि में है ॥

    साथ कौशिक गृहसूत्र के अनुसार शमी पर पाये जाने वाले पीपल के चूर्ण का भी सेवन स्त्री-पुरुष को  करना चाहिए। यह औषधि पुत्रोत्पादक है। 

    टिप्पणी

    १−(शमीम्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति शम उपशमे−इन्, ङीप्। शमी कर्मनाम−निरु० २।१। शान्तस्वभावां स्त्रियम् (अश्वत्थः) अ० ३।६।१। अश्वेषु बलवत्सु तिष्ठतीति सः। अतिवीरपुरुषः (आरूढः) अधिगतः (तत्र) तस्मिन् काले (पुम् सुवनम्) भूसूधू०। उ० २।८०। इति षूङ् प्रसवे−क्युन्। पुंसो रक्षकस्य सन्तानस्योत्पादनम् (कृतम्) विहितम् (तत्) पुंसवनम् (पुत्रस्य) कुलशोधकस्य सन्तानस्य (वेदनम्) विद्लृ लाभे−ल्युट्। लाभकारणम् (तत्) कर्म (स्त्रीषु) पत्नीषु (आभरामसि) आ हरामः। प्रापयामः ॥

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    विषय

    शमी+अश्वत्थ

    पदार्थ

    १. (शमीम्) = शान्त, उद्वेगरहित, धीर स्त्री पर (अश्वत्थः) = अश्व के समान शीघ्रगामी तथा दृढाङ्गरूप से स्थिर ( स्थ) पुरुष (आरूढः) = आरुढ़ होता है, अर्थात् शमी स्त्री में यह अश्वत्थ पुरुष गर्भाधान करता है, (तत्र) = वहाँ (पुंसुवनम्) = वीर सन्तान का उत्पादन (कृतम्) = किया जाता है, (तत्) = उस पुत्रजनक वीर्य को (स्त्रीषु) = स्त्रियों में (आभरामसि) = स्थापित करते हैं।

    भावार्थ

    स्त्री 'शमी' हो-शान्त स्वभाव की, पुरुष 'अश्वत्थ' हो- क्रियाशील व दृढाङ्ग । ऐसा होने पर वीर सन्तान उत्पन्न होती है।

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    भाषार्थ

    (शमीम्, अश्वत्थः, आरूढः) शमी वृक्ष पर अश्वत्य वृक्ष आरूढ हुआ, (तत्र) उस कर्म में (पुंसुवनम्) पुमान्-पुत्र का उत्पत्ति कर्म ( कृतम् ) किया गया। (तद्) वह कर्म (वै) निश्चय से (पुत्रस्य) पुत्र की ( वेदनम् ) प्राप्ति कराता है, (तत्) उसे (स्त्रीषु) स्त्रियों में (आ भरामसि) हम सम्पादित करते हैं। [रेतस् को स्थापित करते हैं, मन्त्र २]

    टिप्पणी

    [मन्त्र में गर्भाधान सम्बन्धी कर्म का वर्णन है। शमी द्वारा शान्त प्रकृतिक स्त्री अर्थात् पत्नी का वर्णन है, और अश्वत्थ द्वारा दृढ़ाङ्ग परिपुष्ट पति का। इस परिस्थिति में पुत्र की उत्पत्ति होती है। अश्वत्थः= शक्ति में अश्व के सदृश स्थिति वाला पति। स्त्रीषु और आभरामसि में बहुवचन है। इस द्वारा भिन्न-भिन्न परिवार की नाना पत्नियों और नाना पतियों को सूचित किया है।

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    विषय

    गर्भाधान और प्रजनन विद्या।

    भावार्थ

    (शमीम्) शान्त, उद्वेगरहित, धीर स्त्री—मादा, पर (अश्वत्थः) अश्व के समान शीघ्रगामी, दृढ़ांग रूप से स्थिर पुरुष =नर (आरूढः) गर्भाधान करे, (तत्र) इस अवस्था में (पुंसुवनम्) पुमान् पुत्र के उत्पन्न होने का विधान (पुत्रस्य) पुमान् पुत्र को (वेदनं) प्राप्त कराने वाला है। (तत्) उसी दृढ़ वीर्य को (स्त्रीषु) स्त्रियों में हम पुरुष (आ भरामसि) धारण करावें। पुमान् पुत्रों को प्राप्त करने के लिये स्त्री उद्देगरहित और पुरुष दृढांग होना चाहिये। कइयों के मत से—शमी नामक वृक्ष पर उगा हुआ पीपल पुमान् पुत्र उत्पन्न करने की ओषधि है। उसीसे पुत्र लाभ होता है और उस औषधि से प्राप्त वीर्य का आधान करना चाहिये।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्ऋषिः। रेतो देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Punsavana

    Meaning

    An ashvattha plant rooted and grown on a shami tree is the medication and tonic for punsavana, i.e., the tonic for the birth of a male child. We prescribe for the women.

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    Translation

    Asvattha (holy fig tree) mounted on a sami (Mimosa suma). There a male birth is assured. That is certainly the obtainment of a son. That we administer to women.

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    Translation

    Ashvatta rooted on the tree of Shami is medicine in conducting the ceremony of Pumsavan. It being used there to perform the Pumsavan, a male birth is certain. This is the means of finding of a son. We the house-holders bring and use it in the woman.

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    Translation

    An able-bodied husband should cohabit with a calm, tranquil wife. This ceremony of producing a son, will certainly produce a son. Let us men in stil semen in women.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(शमीम्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति शम उपशमे−इन्, ङीप्। शमी कर्मनाम−निरु० २।१। शान्तस्वभावां स्त्रियम् (अश्वत्थः) अ० ३।६।१। अश्वेषु बलवत्सु तिष्ठतीति सः। अतिवीरपुरुषः (आरूढः) अधिगतः (तत्र) तस्मिन् काले (पुम् सुवनम्) भूसूधू०। उ० २।८०। इति षूङ् प्रसवे−क्युन्। पुंसो रक्षकस्य सन्तानस्योत्पादनम् (कृतम्) विहितम् (तत्) पुंसवनम् (पुत्रस्य) कुलशोधकस्य सन्तानस्य (वेदनम्) विद्लृ लाभे−ल्युट्। लाभकारणम् (तत्) कर्म (स्त्रीषु) पत्नीषु (आभरामसि) आ हरामः। प्रापयामः ॥

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