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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रजापति देवता - प्रजापत्यनुमतिः, सिनीवाली छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पुंसवन सूक्त
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    प्र॒जाप॑ति॒रनु॑मतिः सिनीवा॒ल्य॑चीक्लृपत्। स्त्रैषू॑यम॒न्यत्र॒ दध॒त्पुमां॑समु दधदि॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाऽप॑ति: । अनु॑ऽमति: । सि॒नी॒वा॒ली । अ॒ची॒क्लृ॒प॒त् । स्रैसू॑यम् । अ॒न्यत्र॑ । दध॑त् । पुमां॑सम्। ऊं॒ इति॑ । द॒ध॒त्। इ॒ह ॥११.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापतिरनुमतिः सिनीवाल्यचीक्लृपत्। स्त्रैषूयमन्यत्र दधत्पुमांसमु दधदिह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाऽपति: । अनुऽमति: । सिनीवाली । अचीक्लृपत् । स्रैसूयम् । अन्यत्र । दधत् । पुमांसम्। ऊं इति । दधत्। इह ॥११.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनुमतिः) अनुकूल बुद्धिवाली, (सिनीवाली) अन्नवाली (प्रजापतिः) प्रजापालक शक्ति परमेश्वर ने (अचीक्लृपत्) यह शक्ति दी है। (अन्यत्र) दूसरे प्रकार में [स्त्री का रज अधिक होने में] (स्त्रैषूयम्) स्त्रीजन्मसंबन्धी क्रिया (दधत्=दधते) वह [ईश्वर] धारण करता है और (इह) इसमें [पुरुष का वीर्य अधिक होने पर] (उ) निश्चय करके (पुमांसम्) बलवान् संतान को (दधत्) वह स्थापित करता है ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम बुद्धिवाला, अन्नवान् और प्रजापालक होकर ईश्वरनियम से गृहस्थ आश्रम के योग्य होता है और स्त्री का रज अधिक होने पर कन्या और पुरुष का वीर्य अधिक होने पर पुरुषसन्तान उत्पन्न होता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(प्रजापतिः) प्रजापालिका शक्तिः परमेश्वरः (अनुमतिः) अनुकूलबुद्धियुक्ता (सिनीवाली) अ० २।२६।२। अन्नधर्त्री। अन्नवती (अचीक्लृपत्) कृपू सामर्थ्ये ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। समर्थमकरोत् (स्त्रैषूयम्) राजसूयसूर्य० पा० ३।१।११४। इति स्त्री+षूङ् प्रसवे−क्यप्। स्त्रीसूय−अण् सम्बन्धे। कन्याजन्मसम्बन्धि कर्म (अन्यत्र) अन्यप्रकारे। स्त्रीरजआधिक्ये (दधत्) दध धारणे−लडर्थे लेट् परस्मैपदं च छान्दसम्। ईश्वरो दधते स्थापयति (पुमांसम्) पुरुषसन्तानम् (उ) अवश्यम् (दधत्) (इह) अस्मिन्विधौ। पुरुषवीर्याधिक्ये ॥

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    विषय

    प्रजापतिः, अनुमतिः, सिनीवाली

    पदार्थ

    १. (प्रजापतिः) = प्रजा का रक्षण करनेवाली, (अनुमतिः) = पति के अनुकूल मति- (विचार) - वाली, (सिनीवाली) = प्रशस्त अन्नों का सेवन करनेवाली स्त्री (अचीक्लृपत्) = समर्थ होती है-उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाली होती है। २. यह स्(त्रैषूयम्) = स्त्री सन्तान को जन्म देने को अन्यत्र और स्थानों पर रखती हुई (उ) = निश्चय से इह यहाँ (पुमांसं दधत्) = वीर नर सन्तान को ही जन्म देती है। इस 'प्रजापति, अनुमति, सिनीवाली' की कोख से वीर नर सन्तान जन्म लेते हैं।

    भावार्थ

    स्त्री में प्रजा - रक्षण की प्राबल भावना हो , बा पाती के साथ अनुकूल बुद्धिवाली हो तथा प्रशस्त अन्नों का सेवन करती हो तो वह प्रायः नर - संतान को जन्म देती है |

    विशेष

    अगले सूक्त में सर्प - विष -निवारण का प्रकरण हिया | गरुड़ सर्प का विनाश करता है | इस सर्प - विनाशक व्यक्ति का नाम श्री 'गरुत्मान्' [गरुड] रक्खा गया है | यही अगले सूक्त का ऋषि है |

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    भाषार्थ

    (प्रजापतिः) प्रजाओं के पति परमेश्वर ने, (अनुमतिः) पति के अनुकूल मति वाली पत्नी ने, (सिनोवाली) अन्नवाली तथा सुन्दर केशोंवाली पत्नी ने, (अचीक्लृपत्) रेतस् का [पुत्ररूप में] निर्माण किया है। (स्त्रैषूयम्) कन्या की उत्पत्ति [प्रजापति ने] (अन्यत्र) भिन्न अवस्था में (दधत्) स्थापित की है, ( उ) और (पुमासम्) पुमान् की उत्पत्ति (इह) यहां (दधत्) स्थापित की है, अर्थात् पति के अश्वत्य सदृश शक्तिशाली होने पर।

    टिप्पणी

    [(१) प्रजापति द्वारा निर्मित नियम "अश्वत्व और शमी" शब्दों द्वारा कथित नियम, (२) और पत्यनुरक्ता पत्नी (३) तथा प्रभूत अन्नवाली पत्नी, ये पुत्र तथा कन्या को उत्पत्ति में सामर्थ्य वाले होते हैं। पत्नी यदि पत्यनुरक्ता न हो तो परस्पर प्रेम के अभाव में श्रेष्ठ सन्ताने उत्पन्न नहीं होती श। पत्नी के गृह में यदि खाद्य और पेय की यथोचित मात्रा न हो तो माता और सन्तानों का यथेष्ट पालन-पोषण न हो सकने से भी सन्ताने निर्बल हो जाती हैं। अनुमति और सिनीवाली चन्द्रकला-विशेष नहीं, अपितु देवपत्नियां हैं, दिव्यपुरुषों की पत्नियां हैं, "देवपत्न्यौ" इति नैरुक्ताः (निरुक्त ११।३।३२; पद सिनीवाली २२); सिनम् अन्ननाम (निघं० २।७)। अचीक्लृपत् - कृपू सामर्थ्ये (भ्वादिः)। अन्यत्र स्त्री के अश्वत्थ-सदृश शक्तिशाली, और पति के शमी आकृतिक अर्थात् निर्बल होने पर]।

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    भाषार्थ

    (प्रजापतिः) प्रजाओं के पति परमेश्वर ने, (अनुमतिः) पति के अनुकूल मति वाली पत्नी ने, (सिनीवाली) अन्नवाली तथा सुन्दर केशोंवाली पत्नी ने, (अचीक्लृपत्) रेतस् का [पुत्ररूप में] निर्माण किया है। (स्त्रैषूयम्) कन्या की उत्पत्ति [प्रजापति ने] (अन्यत्र) भिन्न अवस्था में (दधत्) स्थापित की है, ( उ) और (पुमांसम्) पुमान् की उत्पत्ति (इह) यहां (दधत्) स्थापित की है, अर्थात् पति के अश्वत्थ सदृश शक्तिशाली होने पर।

    टिप्पणी

    [(१) प्रजापति द्वारा निर्मित नियम "अश्वत्व और शमी" शब्दों द्वारा कथित नियम, (२) और पत्यनुरक्ता पत्नी (३) तथा प्रभूत अन्नवाली पत्नी, ये पुत्र तथा कन्या को उत्पत्ति में सामर्थ्य वाले होते हैं। पत्नी यदि पत्यनुरक्ता न हो तो परस्पर प्रेम के अभाव में श्रेष्ठ सन्ताने उत्पन्न नहीं होती श। पत्नी के गृह में यदि खाद्य और पेय की यथोचित मात्रा न हो तो माता और सन्तानों का यथेष्ट पालन-पोषण न हो सकने से भी सन्ताने निर्बल हो जाती हैं। अनुमति और सिनीवाली चन्द्रकला-विशेष नहीं, अपितु देवपत्नियां हैं, दिव्यपुरुषों की पत्नियां हैं, "देवपत्न्यौ" इति नैरुक्ताः (निरुक्त ११।३।३२; पद सिनीवाली २२); सिनम् अन्ननाम (निघं० २।७)। अचीक्लृपत् - कृपू सामर्थ्ये (भ्वादिः)। अन्यत्र स्त्री के अश्वत्थ-सदृश शक्तिशाली, और पति के शमी आकृतिक अर्थात् निर्बल होने पर]।

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    विषय

    गर्भाधान और प्रजनन विद्या।

    भावार्थ

    (प्रजापतिः) प्रजापति = पुरुष, (अनुमतिः) और अनुमति अर्थात् पति के अभिमत पुत्रका ही चिन्तन करने वाली (सिनीवाली) सिनीवाली अर्थात् स्त्री (अचीक्लृपत्) गर्भ धारण और पालन में समर्थ होते हैं। (अन्यत्र) अन्य दशा में (स्त्रसूयम् दधत्) बहुत सम्भव है कन्या को गर्भ में धारण करे। परन्तु (इह) इस उक्त प्रकार के अनुभव करने से (पुमांसम् उ दधत्) स्त्री पुमान् पुत्र को ही धारण करती है।

    टिप्पणी

    अनुमतिः—अनुमननात् इति यास्कः। जो स्त्री पति की अभिलाषा के अनुकूल ही पुत्र का निरन्तर चिन्तन करती है वह स्त्री ‘अनुमति’ कहाती है। योषा वै सिनीवाली। श० ६। ५। १। १० ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्ऋषिः। रेतो देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Punsavana

    Meaning

    Let Prajapati, the father, be sober and agreeable at heart. Let the mother too be strong and graceful. Thus the conception would be male. Otherwise the conception would be female. (This sukta says two things for the birth of a male child: the powder of five parts of a peepal tree rooted and grown on a shami tree taken by the woman produces certain chemical and genetic conditions in the woman for the birth of a male child. Secondly, the man should be virile, and the wife should be sober at heart and graceful in culture and conduct. In addition, there should be perfect harmony, anumati, between the man and wife.)

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    Subject

    As given in the Verse

    Translation

    The Lord of creatures, mutual consent, (anumati) and active life (sinivali) give shape (to the embryo). May they put a male here and the birth of girl elsewhere.

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    Translation

    Male, the father and obedient female, the mother produce son in this way and the female child otherwise. But by this(prescribed) procedure they find male child.

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    Translation

    Father and agreeable mother are competent to tend and foster the child in the womb. In certain circumstance a girl is conceived, but under other conditions a boy is conceived.

    Footnote

    In another circumstance: Where the menstrual discharge of a woman is abundant. In this condition: Where the semen of man s abundant. Griffith considers Anumati and Siniwali as deities presiding over different phases of the moon and associated with conception and child birth. This explanation is unacceptable, as there is no history in the Vedas.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(प्रजापतिः) प्रजापालिका शक्तिः परमेश्वरः (अनुमतिः) अनुकूलबुद्धियुक्ता (सिनीवाली) अ० २।२६।२। अन्नधर्त्री। अन्नवती (अचीक्लृपत्) कृपू सामर्थ्ये ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। समर्थमकरोत् (स्त्रैषूयम्) राजसूयसूर्य० पा० ३।१।११४। इति स्त्री+षूङ् प्रसवे−क्यप्। स्त्रीसूय−अण् सम्बन्धे। कन्याजन्मसम्बन्धि कर्म (अन्यत्र) अन्यप्रकारे। स्त्रीरजआधिक्ये (दधत्) दध धारणे−लडर्थे लेट् परस्मैपदं च छान्दसम्। ईश्वरो दधते स्थापयति (पुमांसम्) पुरुषसन्तानम् (उ) अवश्यम् (दधत्) (इह) अस्मिन्विधौ। पुरुषवीर्याधिक्ये ॥

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