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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शन्ताति देवता - पवमानः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - पावमान सूक्त
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    पव॑मानः पुनातु मा॒ क्रत्वे॒ दक्षा॑य जी॒वसे॑। अथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मान: । पु॒ना॒तु॒ । मा॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । जी॒वसे॑ । अथो॒ इति॑ । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥१९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमानः पुनातु मा क्रत्वे दक्षाय जीवसे। अथो अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमान: । पुनातु । मा । क्रत्वे । दक्षाय । जीवसे । अथो इति । अरिष्टऽतातये ॥१९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पवित्र आचरण के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (पवमानः) पवित्र परमेश्वर (मा) मुझे (क्रत्वे) उत्तम कर्म वा बुद्धि के लिये, (दक्षाय) बल के लिये, (जीवसे) जीवन के लिये (अथो) और भी (अरिष्टतातये) कल्याण करने के लिये (पुनातु) शुद्ध आचरणवाला करे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेद द्वारा विज्ञान प्राप्त करके बुद्धि, बल और कीर्ति बढ़ा कर आप सुखी रहें और सब को सुखी रक्खें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(पवमानः) पवित्रः परमेश्वरः (पुनातु) शुद्धाचारिणं करोतु (मा) माम् (क्रत्वे) अ० ४।३१।६। उत्तमकर्मणे प्रज्ञायै वा (दक्षाय) अ० २।२९।३। प्रवृद्धाय बलाय (जीवसे) तुमर्थे सेसेन०। पा० ३।४।९। इति जीव प्राणधारणे−असे। जीवनार्थम् (अथो) अपि च (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। क्षेमकरणाय ॥

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    विषय

    क्रत्वे, दक्षाय, जीवसे, अरिष्टतातये

    पदार्थ

    १. (पवमानः) = पवित्र करनेवाले प्रभु (मा पुनातु) = मुझे पवित्र करें, जिससे मेरा जीवन (क्रत्वे) = उत्तम ज्ञान व कर्मसंकल्पों के लिए हो। मेरा यह जीवन (दक्षाय) = बल के लिए हो। (जीवसे) = मैं पूर्ण जीवन को जीनेवाला होऊँ अथ (उ) = और निश्चय से (अरिष्टतातये) = मैं कल्याण के विस्तार के लिए होऊँ।

    भावार्थ

    प्रभु-सम्पर्क मुझे 'कुतुमान, दक्ष, पूर्ण, जीवनवाला व कल्याणमय कार्यों को करनेवाला' बनाए।

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    भाषार्थ

    (पवमानः) पवित्र करने वाला परमेश्वर (मा) मुझे (पुनातु) पवित्र करे (क्रत्वे) पवित्र कर्म करने के लिये, पवित्र प्रज्ञा की प्राप्ति के लिये (दक्षाय) वृद्धि के लिये, (जीवसे) पवित्र जीवन के लिये, (अयो) और (अरिष्टतातये) अहिंसा के विस्तार के लिये।

    टिप्पणी

    [ऋतु = कर्मनाम; प्रज्ञानाम (निघं० २।१;३।९)। दक्षाय =दक्ष वृद्धौ (भ्वादिः)। अरिष्ट = रिष हिंसार्थः, तदभावः (भ्वादिः), तस्य ताति: विस्तारः (तनु विस्तारे, तनादिः), अथवा "तातिः" = प्रत्ययः, करणार्थे ("शिवशमरिष्टस्य करे", अष्टा० ४।४।१४३)] अधिक पवित्रता के लिये पुनः परमेश्वर से प्रार्थना की गई है।

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    विषय

    पवित्र होने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (पवमानः) सब के पावन प्रभु (मा) मुझे (क्रत्वे) ज्ञान, (दक्षाय) बल, (जीवसे) सम्पूर्ण जीवन, (अथो) और (अरिष्टतातये) क्लेश रहित, सुख कल्याण के लिये (पुनातु) पवित्र करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शन्तातर्ऋषिः। नाना देवता, उत चन्द्रमा देवता। १, २ गायत्र्यौ, ३ अनुष्टुप् । तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Purification of the Soul

    Meaning

    May the Supreme Lord of Purity, immacultate and purifying, purify and sanctify me for holiness of yajnic action, perfection of performance, noble living and a long life for the achievement, protection and expansion of all round well being for all.

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    Translation

    May the purifier Lord purify me for good actions, dexterity and Jong life as, well as for augmenting well-being.

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    Translation

    May God who is pure by his nature make me pure for wisdom and act, for power, for life and for unassailed security.

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    Translation

    May God make me pure for wisdom and for power and life, and un- assailed security.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(पवमानः) पवित्रः परमेश्वरः (पुनातु) शुद्धाचारिणं करोतु (मा) माम् (क्रत्वे) अ० ४।३१।६। उत्तमकर्मणे प्रज्ञायै वा (दक्षाय) अ० २।२९।३। प्रवृद्धाय बलाय (जीवसे) तुमर्थे सेसेन०। पा० ३।४।९। इति जीव प्राणधारणे−असे। जीवनार्थम् (अथो) अपि च (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। क्षेमकरणाय ॥

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