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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शापनाशन सूक्त
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    उप॒ प्रागा॑त्सहस्रा॒क्षो यु॒क्त्वा श॒पथो॒ रथ॑म्। श॒प्तार॑मन्वि॒च्छन्मम॒ वृक॑ इ॒वावि॑मतो गृ॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । प्र । अ॒गा॒त् । स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्ष: । यु॒क्त्वा । श॒पथ॑: । रथ॑म् । श॒प्तार॑म् । अ॒नु॒ऽइ॒च्छन् । मम॑ । वृक॑:ऽइव । अवि॑ऽमत: । गृ॒हम् ॥३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप प्रागात्सहस्राक्षो युक्त्वा शपथो रथम्। शप्तारमन्विच्छन्मम वृक इवाविमतो गृहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । प्र । अगात् । सहस्रऽअक्ष: । युक्त्वा । शपथ: । रथम् । शप्तारम् । अनुऽइच्छन् । मम । वृक:ऽइव । अविऽमत: । गृहम् ॥३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 37; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुवचन के त्याग का उपदेश।

    पदार्थ

    (सहस्राक्षः) सहस्रों व्यवहार में दृष्टिवाला (शपथः) शान्तिपथ बतानेवाला (रथम्) रथ को (युक्त्वा) जीत कर (मम) मेरे (शप्तारम्) कुवचन बोलनेवाले को (अन्विच्छन्) ढूँढता हुआ (उप) समीप (प्र अगात्) आया है, (इव) जैसे (वृकः) भेड़िया (अविमतः) भेड़वाले के (गृहम्) घर में [आता है] ॥१॥

    भावार्थ

    राजा बहुदर्शी होकर कुवचनभाषियों को दण्ड देता रहे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(उप) समीपे (प्र) प्रकर्षेण (अगात्) आगतवान् (सहस्राक्षः) अ० ३।११।३। सहस्रेषु व्यवहारेषु अक्षि दृष्टिर्यस्य सः। बहुदर्शी (युक्त्वा) संयोज्य (शपथः) अ० २।७।२। शम् शान्तिकरणे−ड+पथ गतौ−अच्। शस्य मङ्गलस्य पथो यस्मात् सः। शान्तिमार्गदर्शकः (रथम्) यानम् (शप्तारम्) शापकारिणम्। कुवचनभाषिणम् (अन्विच्छन्) अनुसृत्य गच्छन् (मम) (वृकः) हिंस्रजन्तुविशेषः (इव) यथा (अविमतः) अवीनां मेषाणां स्वामिनः पुरुषस्य (गृहम्) गेहम् ॥

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    विषय

    सहस्त्राक्षः शपथ:

    पदार्थ

    १. जिस समय अपशब्द कहनेवाला पुरुष किसी के लिए अपशब्द का प्रयोग करता है तब वह उसके सहनों दोषों को देखनेवाला बनता है-मानो सहस्रों आँखों से उसके दोषों को ढंढने के लिए यत्नशील होता है, अत: आक्रोश को 'सहस्राक्ष' कहा गया है। यह (सहस्त्राक्ष: शपथ:) = सहनों आँखोंबाला आक्रोश [अपशब्द] (रथं युक्त्वा) = अपने रथ को जोतकर (उपप्रागात्) = शाप देनेवाले के समीप ही पहुँचता है। जैसे एक योद्धा रथ-स्थित होकर शत्रु पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार यह शपथ रथ-स्थित होकर शाप देनेवाले की ओर जाता है। २. यह शपथ (मम) = मुझे (शतारम्) = शाप देनेवाले को (अन्विच्छन्) = ढूँढता हुआ उस शप्ता के घर में ऐसे ही पहुँचे, इव जैसेकि (वृक:) = भेड़िया भेड़ को ढूँढता हुआ (अविमतः गृहम्) = भेड़वाले के घर में पहुँचता है।

    भावार्थ

    जैसे भेड़िया भेड़ को समाप्त कर देता है, उसीप्रकार शाप शाप देनेवाले को ही समाप्त करनेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (सहस्राक्षः) सर्वद्रष्टा या हजारों [शप्ताओं] का पूर्णतया क्षय करने वाला परमेश्वर (शपथः) शाप बनकर, (रथम् युक्त्वा) मानो रथ जोत कर (उप प्रागात्) शापकर्ता के समीप शीघ्रता से आ गया है, (मम) मेरे (शप्तारम्) शाप देने वाले को (अनु इच्छन्) ढूंडता हुआ; (इव) जैसे कि (वृकः) भेड़िया (अविमतः) भेड़ों वाले के (गृहम्) घर आ जाता है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में यह दर्शाया है कि परमेश्वर शाप देने वाले को ढूंड कर उस का हनन करता है। जैसे कि भेड़िया भेड़ का हनन कर देता है। इस निमित्त परमेश्वर स्वयं शपथ रूप हो जाता है और शापदाता का शपथ देकर उसका विनाश करता है, इसमें वह देर नहीं करता, अतः शीघ्र पहुंचने के लिये मानो वह रथ पर सवार हो शप्ता के हननार्थ उसके समीप पहुंचता है। "सहस्राक्षः= सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥” (यजु० ३१।१)] ।

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    विषय

    कठोर भाषण से बचना

    भावार्थ

    (सहस्र-अक्षः) हज़ारों आंखों वाला या इन्द्रियों में उत्तेजना पैदा करनेवाला (शपथः) शपथ = कठोर वचन रूप राजा तू (रथम् = युक्त्वा) रथ जोड़ कर (उप प्र अगात्) सब तक भली प्रकार पहुँच जाता है। (वृक इव) जिस प्रकार भेड़िया गन्ध के पीछे (अवि-मतः) भेढ़ पालनेवाले के घर तक पहुँच जाता है इसी प्रकार वह शपथ रूप राजा भी (मम शप्तारम्) मेरे ऊपर व्यर्थ दोषारोपण करनेवाले का (अनुइच्छन्) पता लगाता हुआ उस अपराधी को जा पकड़े और उसे दण्ड दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वस्त्ययनकामोऽथर्वा ऋषिः। चन्द्रमा देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    No Course Please

    Meaning

    Let the divine force of love and truth, thousand¬ eyed, all vigilant, come as protection against cursed ill- will, having yoked its chariot against ill will, execration and hate. Let it search out and destroy the imprecation and the imprecator like a wolf pouncing upon a sheepfold.

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    Subject

    Candramah

    Translation

    The thousand-eyed curse, having yoked his chariot, has come here seeking him, who cursed me, just as a wolf goes to the house of a sheep-owner.

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    Translation

    Hitherwards comes the thousand eyed (Possessing the force of large number spies) King, having yoked his steeds in chariot, desirous to seek the person who has evil designs against me like the wolf who goes to the home of the man who owns sheep.

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    Translation

    A far-sighted king, the shower of the path of peace, yoking his steeds, hath come seeking for my reviler, to punish him, as a wolf seeks for the house of the owner of sheep to destroy them.

    Footnote

    A king should punish the revilers and cursers of noble persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(उप) समीपे (प्र) प्रकर्षेण (अगात्) आगतवान् (सहस्राक्षः) अ० ३।११।३। सहस्रेषु व्यवहारेषु अक्षि दृष्टिर्यस्य सः। बहुदर्शी (युक्त्वा) संयोज्य (शपथः) अ० २।७।२। शम् शान्तिकरणे−ड+पथ गतौ−अच्। शस्य मङ्गलस्य पथो यस्मात् सः। शान्तिमार्गदर्शकः (रथम्) यानम् (शप्तारम्) शापकारिणम्। कुवचनभाषिणम् (अन्विच्छन्) अनुसृत्य गच्छन् (मम) (वृकः) हिंस्रजन्तुविशेषः (इव) यथा (अविमतः) अवीनां मेषाणां स्वामिनः पुरुषस्य (गृहम्) गेहम् ॥

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