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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 43/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृग्वङ्गिरा देवता - मन्युशमनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मन्युशमन सूक्त
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    अ॒यं द॒र्भो विम॑न्युकः॒ स्वाय॒ चार॑णाय च। म॒न्योर्वि॑मन्युकस्या॒यं म॑न्यु॒शम॑न उच्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । द॒र्भ: । विऽम॑न्युक:। स्वाय॑ । च॒ । अर॑णाय । च॒ । म॒न्यो: । विऽम॑न्युकस्य । अ॒यम् । म॒न्यु॒ऽशम॑न: । उ॒च्य॒ते॒ ॥४३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं दर्भो विमन्युकः स्वाय चारणाय च। मन्योर्विमन्युकस्यायं मन्युशमन उच्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । दर्भ: । विऽमन्युक:। स्वाय । च । अरणाय । च । मन्यो: । विऽमन्युकस्य । अयम् । मन्युऽशमन: । उच्यते ॥४३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 43; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    क्रोध की शान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (दर्भः) दर्भ अर्थात् दुःख नाश करनेवाला वा सुकर्म गूँथनेवाला पुरुष (स्वाय) अपने समुदाय के लिये (च च) और (अरणाय) प्राप्ति योग्य शूद्र अन्त्यज आदि के लिये (विमन्युकः) क्रोध हटानेवाला है। (अयम्) यह (मन्योः) क्रोधी का (विमन्युकः) क्रोध दूर करनेवाला और (मन्युशमनः) क्रोध शान्त करनेवाला (उच्यते) कहा जाता है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य को योग्य है कि बड़े और छोटों से शान्तचित्त होकर बर्ताव करे ॥१॥ (दर्भ) अर्थात् कुश घास औषधविशेष भी है, जो वात पित्त कफ त्रिदोष आदि रोग नाश करता है ॥

    टिप्पणी

    १−(अयम्) पुरोवर्ती (दर्भः) दृदलिभ्यां भः। उ० ३।१५१। इति दॄ विदारणे−भ। यद्वा। दृभो ग्रन्थे−घञ्। दुःखविदारकः। सुकर्मग्रन्थकः (विमन्युकः) शेषाद् विभाषा। पा० ५।४।१५४। इति कप्। वि विगमितो मन्युर्येन सः। क्रोधनिवारकः (स्वाय) ज्ञातये (च च) समुच्चये (अरणाय) ऋ गतौ−ल्यु। प्राप्तव्याय शूद्रान्त्यजादये (मन्योः) मतुपो लोपः। मन्युमतः पुरुषस्य (विमन्युकस्य) सुपां सुपो भवन्तीति वक्तव्यम्। वा० पा० ७।१।३९। इति प्रथमार्थे षष्ठी। विमन्युकः। क्रोधनिवारकः (अयम्) (मन्युशमनः) क्रोधशान्तिकरः (उच्यते) अभिधीयते ॥

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    विषय

    विमन्युक: 'दर्भ:'

    पदार्थ

    १. (अयं दर्भ:) = यह कुशा [घास] (स्वाय च) = अपनों के लिए भी (च अरणाय) = और शत्रुओं के लिए भी (विमन्युकः) =  क्रोधापनयन का हेतु है-इष्टजनविषयक व अनिष्टजनविषयक क्रोध को शान्त करता है, अथवा इष्टजनों व अनिष्टजनों से किये गये क्रोध को शान्त करता है। २. (मन्यो:) = मन्युमान् शत्रुभूत पुरुष का तथा (विमन्युकस्य) = मन्युरहित-आपाततः क्रोधाविष्ट आत्मीय पुरुष का (अयम्) = यह दर्भ (मन्युशमन:) = क्रोध को शान्त करनेवाला (उच्यते) = कहा जाता है। सम्भवतः इसीलिए यज्ञवेदि पर कुश के प्रयोग को महत्त्व दिया गया है।

    भावार्थ

    दर्भ का प्रयोग क्रोध को शान्त करनेवाला है।

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    भाषार्थ

    (अयम्, दर्भः) यह दर्भनामक घास-विशेष (स्वाय) निज व्यक्ति के लिये (च) और (अरणाय) विदेशी के लिए (विमन्युकः) मन्यु का विगत करने वाला है। (विमन्युकस्य) विगतमन्यु वाले के आपाततः हुए (मन्यो:) मन्यु का (अयम्) यह दर्भ (मन्युशमनः) मन्यु का शमन करता है, अतः दर्भ 'मन्युशमन" (उच्यते) कहा जाता है, अर्थात् दर्भ का नाम "मन्युशमन" भी है।

    टिप्पणी

    [अरणाय = अ+रण शब्दे (भ्वादिः), तथा रण गतौ (भ्वादिः), जिस के साथ हमारा बोलचाल नहीं अर्थात् विदेशी। दर्भ:= दॄ विदारणे (क्र्यादिः), घास-विशेष जो कि अनावृत पैर को, या छूने पर अङ्ग को, विदीर्ण कर देता है। यथा 'दर्भेण चरणः क्षत इत्यकाण्डे तन्वी स्थिता कतिचिदेव पदानि गत्वा" (शाकुन्तल नाटक)। यह कुश-घास है, जिसका ऊपर का भाग कांटेदार होता है, तेज होता है। इसीलिये कुशाग्रबुद्धि शब्द का प्रयोग विषयशीघ्रगाही के लिये होता है। कुश-घास का रस सम्भवतः "मन्युशमन" हो]।

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    विषय

    क्रोधशान्ति के उपाय।

    भावार्थ

    क्रोध शान्त करने का चौथा उपाय बतलाते हैं। (अयम्) यह (दर्भः) दाभ, दमन या कुश घास है वह (स्वाय च) अपने सम्बन्धियों और (अरणाय च) अपने शत्रु के लिये भी (वि-मन्युकः) सर्वथा क्रोधरहित है इसमें कांटा नहीं, सरल सीधा है, हवा के झोंके से भी मुड़ जाता है। पर तो भी बहुतों को रस्सी बन कर (दर्भः) बांध लेता है। इसी प्रकार जो पुरुष (स्वाय च अरणाय च) अपने सम्बन्धी और शत्रु दोनों के लिये (वि-मन्युकः) क्रोध रहित शान्त पुरुष है वह (दर्भः) समाज को रस्सी के समान गांठने वाला होता है वह (वि-मन्युकः) स्वभावतः मन्यु रहित पुरुषों के उठे हुए (मन्योः) क्रोधों का भी अथवा (मन्योः विमन्युकस्य) क्रोधी और क्रोध रहित पुरुषों के बीच में आकर उनके (मन्यु-शमनः) क्रोध या कलह को शान्त करा देनेवाला (उच्यते) कहा जाता है वह पुरुष उन के कलहों को मिटा सकता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    परस्परैकचित्तकरणे भृग्वङ्गिरा ऋधिः। मन्युशमनं देवता। अनुष्टुप् छन्दः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Calmness of Anger

    Meaning

    This ‘darbha’ grass is the tranquilizer of anger for our own people and for others high or low. This is called pacifier of the angry man’s passion and fury.

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    Subject

    Manyu - Samanam : Soother of Anger

    Translation

    This darbha (kusa grass; Poa Cyno-suroides) is anger remover for one’s kinsman as well as for a stranger. This is called soother of the anger of a very furious person.

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    Translation

    The grass called Darbh is the mitigator of anger for akin and stronger alike. As it softens the anger of angry man therefore it is known the softener of anger.

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    Translation

    Just as a blade of grass is free from wrath for a friend or foe, is free from thorn and bends with the draft of wind, but fastens many strung in a string, similarly, a man who is free from wrath for his kin or enemy, consolidates the society like a string, and is called the appeaser of the wrath of an angry person or one free from anger.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अयम्) पुरोवर्ती (दर्भः) दृदलिभ्यां भः। उ० ३।१५१। इति दॄ विदारणे−भ। यद्वा। दृभो ग्रन्थे−घञ्। दुःखविदारकः। सुकर्मग्रन्थकः (विमन्युकः) शेषाद् विभाषा। पा० ५।४।१५४। इति कप्। वि विगमितो मन्युर्येन सः। क्रोधनिवारकः (स्वाय) ज्ञातये (च च) समुच्चये (अरणाय) ऋ गतौ−ल्यु। प्राप्तव्याय शूद्रान्त्यजादये (मन्योः) मतुपो लोपः। मन्युमतः पुरुषस्य (विमन्युकस्य) सुपां सुपो भवन्तीति वक्तव्यम्। वा० पा० ७।१।३९। इति प्रथमार्थे षष्ठी। विमन्युकः। क्रोधनिवारकः (अयम्) (मन्युशमनः) क्रोधशान्तिकरः (उच्यते) अभिधीयते ॥

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