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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रचेता देवता - दुःष्वप्ननाशनम् छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - दुःष्वप्ननाशन
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    अ॑व॒शसा॑ निः॒शसा॒ यत्प॑रा॒शसो॑पारि॒म जाग्र॑तो॒ यत्स्व॒पन्तः॑। अ॒ग्निर्विश्वा॒न्यप॑ दुष्कृ॒तान्यजु॑ष्टान्या॒रे अ॒स्मद्द॑धातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒व॒ऽशसा॑ । नि॒:ऽशसा॑ । यत् । प॒रा॒ऽशसा॑। उ॒प॒ऽआ॒रि॒म । जाग्र॑त: । यत् । स्व॒पन्त॑:। अ॒ग्नि: । विश्वा॑नि । अप॑ । दु॒:ऽकृ॒तानि॑ । अजु॑ष्टानि । आ॒रे । अ॒स्मत् । द॒धा॒तु॒ ॥४५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अवशसा निःशसा यत्पराशसोपारिम जाग्रतो यत्स्वपन्तः। अग्निर्विश्वान्यप दुष्कृतान्यजुष्टान्यारे अस्मद्दधातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अवऽशसा । नि:ऽशसा । यत् । पराऽशसा। उपऽआरिम । जाग्रत: । यत् । स्वपन्त:। अग्नि: । विश्वानि । अप । दु:ऽकृतानि । अजुष्टानि । आरे । अस्मत् । दधातु ॥४५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मानसिक पाप के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो पाप (अवशसा) विश्वासघात से (निःशसा) घृणा से, और (पराशसा) अपवाद से, अथवा (यत्) जो पाप (जाग्रतः) जागते हुए वा (स्वपन्तः) सोते हुए (उपारिम) हम ने किया है। (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर (विश्वानि) सब (अजुष्टानि) अप्रिय (दुष्कृतानि) दुष्कर्मों को (अस्मत्) हम से (आरे) दूर (अप दधातु) हटा रक्खे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सर्वशक्तिमान् न्यायकारी परमेश्वर का भय मानकर कभी कोई दुष्कर्म न करें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१६४।३ ॥

    टिप्पणी

    २−(अवशसा) शसु हिंसायाम्−क्विप्। अवशसनेन। विश्वासघातेन (निःशसा) नितरां हिंसनेन। अतिघृणया (यत्) यत्किंचित् पापम् (पराशसा) पराङ्मुखहिंसनेन अपवादेन (उप−आरिम) ऋ गतौ−लिट्। वयःसमीपे प्राप्तवन्तः। कृतवन्तः (जाग्रतः) जागृ निद्राक्षये−शतृ। जागरदवस्थापन्नाः (स्वपन्तः) निद्रावस्थां प्राप्ताः (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (विश्वानि) सर्वाणि (अप) अपकृत्य (दुष्कृतानि) दुष्कर्माणि (अजुष्टानि) अप्रियाणि (आरे) दूरे (अस्मत्) अस्मत्तः (दधातु) स्थापयतु ॥

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    विषय

    अवशसा, निःशसा, पराशसा

    पदार्थ

    १. (अवशसा) = [शसु हिंसायाम] अवस्तात् हिंसन से-चुपके-चुपके हिंसन से, (निःशसा) = नितरां हिंसन से, (पराशसा) = पराङ्मुख हिंसन से-सुदूर असाक्षात् रूप से हिंसन से (यत् उपारिम्) = हम जो पाप कर बैठते हैं, (जाग्रत:) = जागते हुए और (स्वपन्तः यत्) = सोते हुए जो पाप कर बैठते हैं, (अग्नि:) = वह अग्रणी प्रभु उन (विश्वानि) = सब (अजुष्टानि) = अशोभन, प्रीतिपूर्वक न सेवन किये गये (दुष्कृतानि) = पापों को (अस्मत्) = हमसे (आरे) = दूर (अपदधातु) = पृथक् करके स्थापित करे।

    भावार्थ

    प्रभु के अनुग्रह से हम हिंसाकृत सब पापों से बचे रहें। जागते व सोते हम प्रभुस्मरण करते हुए पापों से बचे रहें।

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    भाषार्थ

    (यत्) जो [पापकर्म] (जाग्रता) जागते हुए, (यत्) जो (स्वपन्तः) स्वप्न लेते हुए, (अवशसा) नीचकर्म को प्रशंसा द्वारा, (निःशसा) निश्चित रूप में प्रशंसा द्वारा (पराशसा) अति प्रशंसा द्वारा (उपारिम) हमने उपार्जित किया है, (अग्निः) परमेश्वर या हमारी ज्ञानमय अग्नि (अजुष्टानि) असेवनीय (विश्वानि दुष्कृतानि) उन सब दुष्कर्मों को (अस्मत्) हम से (अप) अपगत करके (आरे) दूर (दधातु) स्थापित करे।

    टिप्पणी

    [अग्निः= ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन" (गीता ४।३७)। उपारिम=उप+आट्+ऋ(गतौ) + उत्तम पुरुष बहुवचन। गतेस्त्रयोऽर्थाः, ज्ञानम्, गतिः प्राप्तिश्च। यहां प्राप्ति अर्थ अभीष्ट है। नीच कर्मों की प्रशंसा द्वारा दुष्कर्मों की प्राप्ति होती है। "शस्" प्रशंसार्थक भी है। यथा प्रशस्तम्, प्रशस्ति। अग्निः=अथवा परमेश्वराग्नि निज प्रकाश द्वारा अन्धकारमय दुष्कर्मों को हम से दूर करे]।

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    विषय

    मानस पाप के दूर करने के दृढ़ संकल्प की साधना।

    भावार्थ

    पापों को दूर करने के निमित्त प्रार्थना। (अव-शसा) नीचे गिराने वाले (नि:-शसा) निर्बल करके गिराने वाले और (परा-शसा) सत्कर्मों से दूर ले जाकर आत्मा का नाश करने वाले जिस जिस दुष्ट विचार युक्त पाप से हम (जाग्रतः) जागते हुए या (स्वपन्तः) सोते हुए (यत्) जब जब भी (उप-आरिम) पीड़ित होते हों तब तब (अग्नि) वह सर्व प्रकाशक पापों को भस्मसात् करने वाला अग्नि, परमेश्वर (विश्वानि) सब (अजुष्टानि) असेवनीय और अवांछनीय, मन के अप्रीतिकर, बुरे (दुः कृतानि) पापकर्मों को (अस्मद्) हमसे (आरे) दूर (भर धातु) करदे।

    टिप्पणी

    ‘यदा शसा निःसाभिसोपारिम’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रचेताः, अंगिरा यमश्च ऋषिः। दुःस्वप्ननाशनं देवता। १ पथ्यापंक्तिः। २ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Go off Negative Thoughts

    Meaning

    Whatever sins we have committed whether out of jealousy, or hate or callousness and enmity while awake or asleep, consciously or unconsciously, may Agni, light of life, ward off and keep away all those undesirable thoughts and deeds of the world from us.

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    Translation

    While awake or while asleep, by degrading speech, by discarding speech or by out-casting speech, whatever improper misdeeds we have done, may the adorable Lord remove and cast all of them far away from us.

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    Translation

    Let Agni, the conscious soul of mine take from us and keep away all those evil intentions which deserve our dislike, which we form sleeping or walking by ill-will, dislike and which by slander.

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    Translation

    Whatever wrong we have committed, sleeping or waking, by ill-will, dislike, or slander, all these offences, which deserve displeasure, may God take from us and keep them distant.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अवशसा) शसु हिंसायाम्−क्विप्। अवशसनेन। विश्वासघातेन (निःशसा) नितरां हिंसनेन। अतिघृणया (यत्) यत्किंचित् पापम् (पराशसा) पराङ्मुखहिंसनेन अपवादेन (उप−आरिम) ऋ गतौ−लिट्। वयःसमीपे प्राप्तवन्तः। कृतवन्तः (जाग्रतः) जागृ निद्राक्षये−शतृ। जागरदवस्थापन्नाः (स्वपन्तः) निद्रावस्थां प्राप्ताः (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (विश्वानि) सर्वाणि (अप) अपकृत्य (दुष्कृतानि) दुष्कर्माणि (अजुष्टानि) अप्रियाणि (आरे) दूरे (अस्मत्) अस्मत्तः (दधातु) स्थापयतु ॥

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