अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
आ॑यु॒र्ददं॑ विप॒श्चितं॑ श्रु॒तां कण्व॑स्य वी॒रुध॑म्। आभा॑रिषं वि॒श्वभे॑षजीम॒स्यादृष्टा॒न्नि श॑मयत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒यु॒:ऽदद॑म् । वि॒प॒:ऽचित॑म् । श्रु॒ताम् । कण्व॑स्य । वी॒रुध॑म् । आ । अ॒भा॒रि॒ष॒म् । वि॒श्वऽभे॑षजीम् । अ॒स्य । अ॒दृष्टा॑न् । नि । श॒म॒य॒त् ॥५२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुर्ददं विपश्चितं श्रुतां कण्वस्य वीरुधम्। आभारिषं विश्वभेषजीमस्यादृष्टान्नि शमयत् ॥
स्वर रहित पद पाठआयु:ऽददम् । विप:ऽचितम् । श्रुताम् । कण्वस्य । वीरुधम् । आ । अभारिषम् । विश्वऽभेषजीम् । अस्य । अदृष्टान् । नि । शमयत् ॥५२.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मा के दोष के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(कण्वस्य) बुद्धिमान् पुरुष की (आयुर्ददम्) जीवन देनेवाली, (विपश्चितम्) भले प्रकार चेतानेवाली, (श्रुताम्) प्रसिद्ध, (वीरुधम्) विविध प्रकार प्रगट होनेवाली, (विश्वभेषजीम्) संसार का भय जीतनेवाली वेदविद्या को (आ अभारिषम्) मैंने पाया है, वह (अस्य) इस पुरुष के (अदृष्टान्) न दीखते हुए दोषों को (नि शमयत्) शान्त कर देवे ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य सर्वसुखदायक वेदविद्या द्वारा अपने सब कुसंस्कारों का नाश करके आनन्द भोगें ॥३॥
टिप्पणी
३−(आयुर्ददम्) दद दाने−क्विप्। उत्कृष्टजीवनस्य दात्रीम् (विपश्चितम्) वि+प्र+चिती संज्ञाने−क्विप्, पृषोदरादिरूपम्। विविधं प्रकृष्टं ज्ञापयित्रीम् (श्रुताम्) प्रसिद्धाम् (कण्वस्य) अशूप्रुषिलटिकणि०। उ० १।१५१। इति कण शब्दे−क्वन्। मेधाविनः पुरुषस्य−निघ० ३।१५। (वीरुधम्) विविधं प्रादुर्भवित्रीम् (आ अभारिषम्) हृञ् प्रापणे, हस्य भत्वम् आहार्षम्। प्राप्तवानस्मि (विश्वभेषजीम्) सर्वस्य भयस्य शमनी वेदविद्याम् (अस्य) पुरुषस्य (अदृष्टान्) अलक्षितान् दोषान् कुसंस्कारान् (नि शमयत्) शम उपशमने, ण्यन्ताल्लेटि अडागमः। निशमयतु ॥
विषय
विश्वभेषजी वीरुध
पदार्थ
१. (कण्वस्य) = मेधावी पुरुष की इस (आयुर्ददम्) = दीर्घजीवन को प्राप्त करनेवाली (विपश्चितम्) = रोग-शमनोपाय को जाननेवाली (श्रुताम्) = प्रसिद्ध (विश्वभेषजीम्) = सब रोगसमूहों को शान्त करनेवाली (वीरुधम्) = विविध उन्नतियों की कारणभूत इस वेदज्ञानरूप वल्ली को मैं (आभारिषम्) = प्राप्त करता हूँ। २. लाकर प्रयुज्मान यह वीरुत् (अस्य) = इस रोग के (अदृष्टान्) = शरीर मध्यवर्ती द्रष्टुमशक्य रोगों को भी (निशमयत्) = शान्त करे।
भावार्थ
हम वेदज्ञान को प्राप्त करें और सब रोगों को अपने से दूर करें। इस बेदविद्या को विश्वभेषजी जानें।
विशेष-विश्वभेषजी वेदविद्या द्वारा पूर्ण नीरोग बना हुआ यह व्यक्ति 'बृहच्छुक्रः अतिशयित वीर्यवाला-शक्तिशाली होता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
(आयुर्ददम्) पूर्ण आयुः प्रद, (विपश्चितम्) मेधा का चयन करने वाली (श्रुताम्) श्रुति अर्थात् वेद में सुनी गई, कथित हुई, (कण्वस्य) कण्व नामक रोग कीटाणु सम्बन्धी (वीरुधम) लता को, (विश्वभेषजीम्) जो कि सब प्रकार के रोगों की औषधरूप है उस को (आ भारिषम्) मैं लाया हूं, (अस्य) जो कि इस रोगी के (अदृष्टान्) अदृष्ट अर्थात् अति सूक्ष्म क्रिमियों को (नि शमयत्) नितरां शान्त कर देगी।
टिप्पणी
[कण्व हैं कण्व सदृश गोल और चक्षु के अगोचर क्रिमि अर्थात् रोग जनक कीटाणु। औषध को कण्व जम्भणी भी कहा है, अर्थात् कण्व का विनाश करने वाली (अथर्व० २॥२५॥१)। अथर्व० २।२५।१ में इसे "पृश्निपर्णी कहा है। विप: मेधाविनाम (निघं० ३॥१५)]।
विषय
तमोविजय और ऊर्ध्वगति।
भावार्थ
मैं (विश्वभेषजीम्) समस्त कष्टों का निवारण करनेवाली, (आयुर्ददम्) दीर्घ जीवन को देनेवाली, (विपश्चितम्) ज्ञानमयी, (श्रुताम्) प्रसिद्ध या गुरुमुख से उपदेश द्वारा श्रुतिवचनों से श्रवण की गई (कण्वस्य) मेधावी पुरुष की उस (वीरुधम्) आत्मज्ञान रूप वल्ली को (आभारीषम्) प्राप्त करूं। वह (अस्य) इस जीव के (अदृष्टान्) अदृष्ट अर्थात् न दीखने वाले बुरे संस्कारों को भी (नि शमयत्) सर्वथा नष्ट करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भागलिर्ऋषिः। मन्त्रोक्ता बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Gifts of the Sun
Meaning
I bear, bring and cherish the universal medication, giver of life energy, inspirer of intellect and understanding, reputed, favourite sanative of the versatile sage, which may, I pray, cure all visible and invisible ailments of this patient. (This sukta, thus, is a celebration of the efficacy of sunlight from morning till evening, including, we can say, the soothing night and light of the moon.)
Subject
Bhesajam (herb : a cure)
Translation
I have brought the famous herb, that gives life to the patient, _ energises the intellect. It is a cure-all remedy. May it ameliorate the unseen diseases of this man. (May it remove the poison of unseen creatures from this man).
Translation
May I possess the knowledge of the most learned man which prolongs our lives, which is the remedy of all evils, which is well-known and discriminative. Let it suppress the evil impressions dropped on the mind.
Translation
May I obtain Vedic wisdom, the giver of longevity, full of knowledge, illustrious, the bestower of spiritual knowledge to a learned person, and the averter of all calamities. May it suppress the evil sentiments of the soul.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(आयुर्ददम्) दद दाने−क्विप्। उत्कृष्टजीवनस्य दात्रीम् (विपश्चितम्) वि+प्र+चिती संज्ञाने−क्विप्, पृषोदरादिरूपम्। विविधं प्रकृष्टं ज्ञापयित्रीम् (श्रुताम्) प्रसिद्धाम् (कण्वस्य) अशूप्रुषिलटिकणि०। उ० १।१५१। इति कण शब्दे−क्वन्। मेधाविनः पुरुषस्य−निघ० ३।१५। (वीरुधम्) विविधं प्रादुर्भवित्रीम् (आ अभारिषम्) हृञ् प्रापणे, हस्य भत्वम् आहार्षम्। प्राप्तवानस्मि (विश्वभेषजीम्) सर्वस्य भयस्य शमनी वेदविद्याम् (अस्य) पुरुषस्य (अदृष्टान्) अलक्षितान् दोषान् कुसंस्कारान् (नि शमयत्) शम उपशमने, ण्यन्ताल्लेटि अडागमः। निशमयतु ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal