अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 65/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्रः, पराशरः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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निर्ह॑स्तेभ्यो नैर्ह॒स्तं यं दे॑वाः॒ शरु॒मस्य॑थ। वृ॒श्चामि॒ शत्रू॑णां बा॒हून॒नेन॑ ह॒विषा॒ऽहम् ॥
स्वर सहित पद पाठनि:ऽह॑स्तेभ्य: । नै॒:ऽह॒स्तम् । यम् । दे॒वा॒: । शरु॑म् । अस्य॑थ । वृ॒श्चामि॑ । शत्रू॑णाम् । बा॒हून् । अ॒नेन॑ । ह॒विषा॑ । अ॒हम् ॥६५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
निर्हस्तेभ्यो नैर्हस्तं यं देवाः शरुमस्यथ। वृश्चामि शत्रूणां बाहूननेन हविषाऽहम् ॥
स्वर रहित पद पाठनि:ऽहस्तेभ्य: । नै:ऽहस्तम् । यम् । देवा: । शरुम् । अस्यथ । वृश्चामि । शत्रूणाम् । बाहून् । अनेन । हविषा । अहम् ॥६५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(देवाः) हे विजयी लोगो ! (निर्हस्तेभ्यः) निहत्थे [निर्बल हम लोगों] के हित के लिये (नैर्हस्तम्) निहत्थे [निर्बल शत्रुओं] के ऊपर (यम्) जिस (शरुम्) बाण को (अस्यथ) तुम छोड़ते हो (अनेन) उसी ही (हविषा) ग्राह्य शस्त्र से (अहम्) मैं [प्रजागण वा राजगण] (शत्रूणाम्) शत्रुओं की (बाहून्) भुजाओं को (वृश्चामि) काटता हूँ ॥२॥
भावार्थ
सब प्रजागण और राजपुरुष मिलकर शत्रुओं के नाश करने के प्रयत्न करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(निर्हस्तेभ्यः) निर्गतहस्तसामर्थ्येभ्यः प्रजागणेभ्यः। तेषां हितायेत्यर्थः (नैर्हस्तम्) समूहे−अण्। निर्गतहस्तसामर्थ्यानां शत्रूणां समूहं प्रति (यम्) (देवाः) विजिगीषवः पुरुषाः (शरुम्) अ० १।२।३। हिंसकं बाणाद्यायुधम् (अस्यथ) द्विकर्मकोऽयम्। क्षिपथ (वृश्चामि) छिनद्मि (शत्रूणाम्) वैरिणाम् (बाहून्) भुजान् (अनेन) निर्दिष्टेन (हविषा) ग्राह्येण शस्त्रेण (अहम्) प्रजागणो राजगणो वा ॥
विषय
सैनिकों व प्रजाओं का कर्तव्य
पदार्थ
१. हे (देवा:) = शत्रुओं के पराजय की कमानवाले सैनिको! [दिव् विजिगीषा] (निहस्तेभ्य:) = हम निहत्थे प्रजाजनों के रक्षण के लिए (यम्) = जिस (नहस्तम्) = शत्रुओं को निहत्था करनेवाले (शरूम) = हिंसक बाण आदि आयुध को (अस्यथ) = तुम फेंकते हो, तो (अहम्) = मैं प्रजाजन भी (अनेन हविषा) = इस हवि के द्वारा राष्ट्र रक्षा के लिए दिये जानेवाले धन के द्वारा (शत्रूणां बाहून्) = शत्रुओं की भुजाओं को (वृश्चामि) = काटता हूँ।
भावार्थ
शस्त्रास्त्रशून्य हाथोंवाले प्रजाजनों के रक्षण के लिए सैनिक शक्तिप्रयोग के द्वारा शत्रुओं को निहत्था करनेवाले हों। प्रजाजन धन-प्रदान द्वारा इस युद्ध में सफलता प्राप्त करानेवाली हो|
भाषार्थ
(निर्हस्तेभ्यः) निहत्त्थे कर दिए शत्रुओं के लिए, अर्थात् हथियारों से रहित कर दिए शत्रुओं के लिए, (देवाः) हे हमारे विजिगीषु सेनाधिकारियो! तुम (नैर्हस्तम्) निहत्था करने वाले (यम्) जिस (शरुम्) हिंसक शर को (अस्यथ) अस्त्ररूप में शत्रुओं पर फेंकते हो, उन (शत्रूणाम्) शत्रुओं के (बाहून्) बाहुओं को, (अनेन) इस (हविषा) युद्ध-यज्ञ साधक हवि द्वारा (अहम्) मैं सेनाधिपति, (वृश्चामि) काटता हूँ। (देवा:= दिवु क्रीडाविजिगीषा आदि; "दिवादि:")।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह कि विजय प्राप्त कर शत्रुओं को एक बार जब हथियारों से रहित कर दिया है, समय पा कर यदि वे पुनः युद्ध के लिए, पुन: अपने आप को हथियारों से युक्त कर लेते हैं, तो वे दण्डनीय हो जाते हैं, और इस दण्ड में उनके बाहुओं को मैं काट देता हूँ, ताकि वे हथियारों का प्रयोग पुन: न कर सकें, परन्तु उनके जीवनों का अपहरण मैं नहीं करता। मन्त्र (१) में भी बाहुओं का कथन हुआ है, वहां केवल शत्रुओं को नीचा कर उन के बहुओं को निकम्मे कर देने का अभिप्राय है, उन्हें काटने का नहीं। "अस्यथ" के प्रयोग द्वारा शत्रुओं पर अस्त्र के फैंकने को सूचित किया। हविषा द्वारा "सैनिक हविः" प्रतीत होते हैं, "अहम्" द्वारा सेना का मुख्याधिकारी है, जिसे बाहु-छेदनरूपी दण्ड प्रदान करने का अधिकार सम्राट ने दिया है] ।
विषय
विजयी, दमनकारी राजा का शत्रुओं को निःशस्त्र करना।
भावार्थ
हे (देवाः) विद्वान् पुरुषो ! शासक पुरुषों ! (निर्हस्तेभ्यः) हस्त = हनन साधन या सामर्थ्य से रहित पुरुषों के लिये (नैर्हस्तम्) सदा निहत्थापन रूप (यं शरुम्) जिस शस्त्र को आप (अस्यथ) फेंकते हो, प्रयोग करते हो। (अनेन हविषा) उसी उपाय से (अहम्) मैं देश विजयी राजा (शत्रूणां बाहून्) शत्रुओं के बाहुओं अर्थात् बाधाकारी उपायों को भी (वृश्चामि) काटता हूं, निर्मूल करता हूं। अर्थात् निर्बल प्रजाओं को सदा निर्बल बनाये रखने के लिये विद्वान् लोग जिस निःशस्त्रीकरण उपाय का प्रयोग करते हैं राजा उसी उपाय का प्रयोग अपने शत्रु को निर्बल करने के लिये करे अर्थात् उनको निःशस्त्र ही करदे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। चन्द्र उत इन्द्रः पराशरो देवता। १ पथ्यापंक्तिः, २-३ अनुष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory Over Enemy
Meaning
O Devas, noble warriors, the disarming arrow which you shoot upon the disarmed, that is the yajnic havi material by which I disarm the might of the enemies.
Translation
O enlightened ones, the disarming weapon, which you hurl on armless enemies, with that, 1 hew the arms of foes, by this offering.
Translation
O men at the helm of administration. I rend the arms of enemies with this contrivance which handless shaft you cast against the handless foemen.
Translation
O warriors, hankering after conquest, the shaft ye cast for the protection of weak subjects on the weak foes, with the same instrument I rend the arms of enemies!
Footnote
"I' refers to the king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(निर्हस्तेभ्यः) निर्गतहस्तसामर्थ्येभ्यः प्रजागणेभ्यः। तेषां हितायेत्यर्थः (नैर्हस्तम्) समूहे−अण्। निर्गतहस्तसामर्थ्यानां शत्रूणां समूहं प्रति (यम्) (देवाः) विजिगीषवः पुरुषाः (शरुम्) अ० १।२।३। हिंसकं बाणाद्यायुधम् (अस्यथ) द्विकर्मकोऽयम्। क्षिपथ (वृश्चामि) छिनद्मि (शत्रूणाम्) वैरिणाम् (बाहून्) भुजान् (अनेन) निर्दिष्टेन (हविषा) ग्राह्येण शस्त्रेण (अहम्) प्रजागणो राजगणो वा ॥
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