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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सामंनस्यम्, नाना देवताः, त्रिणामा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
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    सं वः॑ पृच्यन्तां त॒न्वः सं मनां॑सि॒ समु॑ व्र॒ता। सं वो॒ऽयं ब्रह्म॑ण॒स्पति॒र्भगः॒ सं वो॑ अजीगमत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । व॒: । पृ॒च्य॒न्ता॒म् । त॒न्व᳡: । सम् । मनां॑सि । सम् । ऊं॒ इति॑ । व्र॒ता । सम् । व॒: । अ॒यम् । ब्रह्म॑ण: । पति॑: । भग॑: । सम् । व॒: । अ॒जी॒ग॒म॒त् ॥७४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं वः पृच्यन्तां तन्वः सं मनांसि समु व्रता। सं वोऽयं ब्रह्मणस्पतिर्भगः सं वो अजीगमत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । व: । पृच्यन्ताम् । तन्व: । सम् । मनांसि । सम् । ऊं इति । व्रता । सम् । व: । अयम् । ब्रह्मण: । पति: । भग: । सम् । व: । अजीगमत् ॥७४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 74; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    एकमता के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानों !] (वः) तुम्हारी (तन्वः) विस्तृत विद्यायें (सम्) यथावत् (मनांसि) मननसामर्थ्य (सम्) यथावत् (उ) और (व्रता) सब कर्म (सम्) यथावत् (पृच्यन्ताम्) मिले रहें। (अयम्) इस (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्ड के (पतिः) पति (भगः) भगवान् [ऐश्वर्यवान् परमेश्वर] ने (वः) तुमको (वः) तुम्हारे हित के लिये (सम्) यथावत् (सम् अजीगमत्) मिलाया है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परस्पर मिल कर उत्तम विद्यायें, उत्तम विचार, और उत्तम कर्म प्राप्त करके सुख भोगें। यह परमेश्वरकृत नियम है ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(सम्) सम्यक् यथावत् (वः) युष्माकम् (पृच्यन्ताम्) पृची सम्पर्के−कर्मणि लोट्। संमिल्यन्ताम् (तन्वः) अ० १।१। विस्तृतविद्याः−दयानन्दभाष्ये यजु० १९।४४। (सम्) (मनांसि) मननानि (सम्) (उ) अपि (व्रतानि) वरणीयानि कर्माणि (सम्) (वः) युष्मान् (अयम्) सर्वव्यापकः (ब्रह्मणः) बृहतो जगतः। अन्नस्य−निघ० २।७। (पतिः) रक्षकः (भगवान्) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (वः) युष्मदर्थम् (सम् अजीगमत्) अ० ६।३२।२। संगतान् कृतवान् ॥

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    विषय

    मेल [परस्पर प्रेम]

    पदार्थ

    १. उत्तम शिक्षा को प्राप्त लोग राष्ट्र में प्रेम से रहें। प्रभु कहते हैं कि (वः तन्व:) = तुम्हारे शरीर (संपच्यन्ताम्) = एक-दूसरे से प्रेम से मिला करें-आप परस्पर प्रेम से आलिङ्गन किया करो-राष्ट्र में कन्धे-से-कन्धे मिलाकर चलो। (मनांसि सम्) = आप लोगों के मन भी मिले हुए हों-हृदयों में प्रेम हो नकि द्वेष। (उ) = और (व्रता सम्) = आप लोगों के कर्म भी मिलकर हों-एक दूसरे के लिए सहायक हों। २. (अयम्) = यह (ब्रह्मणस्पति:) = ज्ञान का स्वामी प्रभु (वः) = तुम्हें (सम् अजीगमत्) = सदा संगत रक्खे तथा (वः) = तुम्हें (भग:) = यह ऐश्वर्यवान् प्रभु (सम्) = मिलाये रक्खे। सब लोग ज्ञान-सम्पन्न बनें और उचित ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हुए परस्पर प्रेम से मिलकर रहें।

    भावार्थ

    राष्ट्र के उत्थान के लिए आवश्यक है कि लोग परस्पर प्रेम से मिलें, उनके मनों में द्वेष न हो। उनके कर्म अविरोधी हों। ज्ञान व ऐश्वर्य-सम्पन्न होते हुए सब मिलकर चलें। 

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    भाषार्थ

    (वः) तुम्हारे (तन्वः) शरीर (सं पृच्यन्ताम्) परस्पर सम्पर्क किया करें, (मनांसि सम्) मन परस्पर सम्पर्क किया करें, (व्रता=व्रतानि) व्रत या कर्म (सम् उ) परस्पर सम्पर्क किया करें। (अयम् ब्रह्मणस्पति:) यह वेदों का स्वामी परमेश्वर (व:) तुम्हें (सम् अजीगमत्) परस्पर संगत करे, (भगः) यह भजनीय परमेश्वर (वः) तुम्हें (सम्) परस्पर संगत करे।

    टिप्पणी

    [शरीरों, मनों, तथा व्रतों और कर्मों की दृष्टि से तुम आपस में मिले रहो, वेदों का स्वाध्याय करो और एक भजनीय परमेश्वर का भजन किया करो]।

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    विषय

    एकचित्त होकर रहने का उपदेश।

    भावार्थ

    हे लोगो ! (वः) तुम लोगों के (तन्वः) शरीर परस्पर (सं पृच्यन्ताम्) एक दूसरे के प्रेम से मिला करें, आप लोग एक दूसरे का प्रेम से आलिङ्गन किया करो और (मनांसि सं) आपस में मन भी मिला करें। (व्रता उ सम्) कृषि, वाणिज्य आदि कर्म भी मिलकर हुआ करें। या एक दूसरे के व्यवसाय एक दूसरे के व्यवसाय के सहायक हों। (अयम्) यह (ब्रह्मणः पतिः) ब्रह्म, वेदवाणी का पालक प्रधान विद्वान् ब्राह्मण (सम् अजीगमत्) सदा जोड़े रक्खे श्रौर (भगः) ऐश्वर्यवान् धन सम्पत्ति का स्वामी राजा भी तुमको (सम् अजीगमत्) सदा मिलाये रक्खे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। सांमनस्यं देवता। १, २ अनुष्टुभौ। ३ त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Unity and Prosperity

    Meaning

    O people of the world, be united together in body, mind and soul, and in all your commitments of values and disciplines of universal Dharma. May the omnipresent Brahmanaspati, lord of infinite knowledge, and Bhaga, lord giver of honour, excellence and glory lead you and keep you committed to unity and united action.

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    Subject

    Brahmanaspatih etc.

    Translation

    Let your bodies meet (unite) together, your minds and your actions (vows) be together. May this Lord of knowledge and the Lord of good fortune make you united

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    Translation

    O men! Let your bodies be united, let your minds be unanimous in their intentions and purposes, let the man of Vedic learning keep you united and let the King make you united.

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    Translation

    O learned persons, close together be your vast knowledge of different sciences, your minds and vows in unison. The Glorious God, the Lord of the universe hath rightly united you, for your welfare.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(सम्) सम्यक् यथावत् (वः) युष्माकम् (पृच्यन्ताम्) पृची सम्पर्के−कर्मणि लोट्। संमिल्यन्ताम् (तन्वः) अ० १।१। विस्तृतविद्याः−दयानन्दभाष्ये यजु० १९।४४। (सम्) (मनांसि) मननानि (सम्) (उ) अपि (व्रतानि) वरणीयानि कर्माणि (सम्) (वः) युष्मान् (अयम्) सर्वव्यापकः (ब्रह्मणः) बृहतो जगतः। अन्नस्य−निघ० २।७। (पतिः) रक्षकः (भगवान्) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (वः) युष्मदर्थम् (सम् अजीगमत्) अ० ६।३२।२। संगतान् कृतवान् ॥

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