अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 81/ मन्त्र 1
य॒न्तासि॒ यच्छ॑से॒ हस्ता॒वप॒ रक्षां॑सि सेधसि। प्र॒जां धनं॑ च गृह्णा॒नः प॑रिह॒स्तो अ॑भूद॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठय॒न्ता । अ॒सि॒ । यच्छ॑से । हस्तौ॑ । अप॑ ।रक्षां॑सि । से॒ध॒सि॒ । प्र॒ऽजाम् । धन॑म् । च॒ । गृ॒ह्णा॒न: । प॒रि॒ऽह॒स्त: । अ॒भू॒त् । अ॒यम् ॥८१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्तासि यच्छसे हस्तावप रक्षांसि सेधसि। प्रजां धनं च गृह्णानः परिहस्तो अभूदयम् ॥
स्वर रहित पद पाठयन्ता । असि । यच्छसे । हस्तौ । अप ।रक्षांसि । सेधसि । प्रऽजाम् । धनम् । च । गृह्णान: । परिऽहस्त: । अभूत् । अयम् ॥८१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
उत्तम गर्भधारण का उपदेश।
पदार्थ
[हे पुरुष !] तू (यन्ता) नियम में चलनेवाला (असि) है, तू (हस्तौ) अपने दोनों हाथों को [सहायता के लिये] (यच्छसे) देनेवाला है, तू (रक्षांसि) राक्षसों [विघ्नों] को (अप सेधसि) हटाता है। (प्रजाम्) प्रजा (च) और (धनम्) धन को (गृह्णानः) सहारा देते हुए (अयम्) यह आप (परिहस्तः) हाथ का सहारा देनेवाले (अभूत्) हुए हैं ॥१॥
भावार्थ
जितेन्द्रिय पुरुष ही सब दरिद्रता आदि विघ्नों को हटा कर प्रजा और धन की रक्षा करके गृहस्थ आश्रम चलाने में समर्थ होते हैं ॥१॥
टिप्पणी
१−(यन्ता) नियामकः। जितेन्द्रियः (असि) (यच्छसे) पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्०। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः, आत्मनेपदं छान्दसम्। ददासि सहायार्थम् (हस्तौ) (रक्षांसि) दारिद्र्यादिविघ्नान् (अप सेधसि) अपगमयसि (प्रजाम्) पुत्रभृत्यादिरूपाम् (धनम्) सुवर्णादिकम् (च) (गृह्णानः) अवलम्बमानः (परिहस्तः) परिगतः प्रसृतः परोपकाराय हस्तो यस्य सः पुरुषः (अभूत्) (अयम्) प्रसिद्धो भवान् ॥
विषय
यन्ता परिहस्त:
पदार्थ
१. गतसूक्त के अनुसार प्रभुपूजन की वृत्तिवाले हे पुरुष ! तू (यन्ता असि) = अपने जीवन को नियम में रखनेवाला है। पाणिग्रहण के समय तू (हस्तौ यच्छसे) = अपने हाथों को अपने जीवन साथी के लिए देता है, (रक्षांसि अप सेधिति) = विनाशक तत्त्वों को घर से दूर करता है-अपने मन में भी राक्षसीभावों का उदय नहीं होने देता। २. वस्तुत: (प्रजाम्) = सन्तान को (गलान:) = समीप भविष्य में प्राप्त करनेवाला (अयम्) = यह पुरुष (धनं च) = धन को भी [गृहानः] ग्रहण करने के स्वभाववाला-धनार्जन की योग्यतावाला परिहस्तः अभूत-हाथ का सहारा देनेवाला हुआ है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश का मुख्योद्देश्य उत्तम सन्तान की प्राप्ति ही है और गृहस्थ को परिवार के पालन के लिए धन अवश्य कमाना है।
भावार्थ
गृहस्थ में पति का जीवन बड़ा नियमित हो। उसका हृदय राक्षसीभावों से शून्य हो। प्रजा-प्राति की कामनावाला यह धर्नाजन की योग्यता से युक्त हो।
भाषार्थ
[हे पति ] (यम्ता असि) तू गृहस्थ का नियन्ता है (हस्तो) नियन्त्रण के लिये तू अपने दोनों हाथों का सहारा (यच्छसे) देता है, (रक्षांसि) राक्षसी प्रवृत्तियों को तू (अप सेधसि) गृहस्थ जीवन से अपगत करता है, पृथक् करता है। (प्रजाम्) सन्तान (धनम् च) और धन का (गृहानः) संग्रह करता हुआ (अयम्) यह पति (परिहस्तः) पत्नी के हाथ का ग्रहण करनेवाला, पाणिग्रहण करनेवाला (अभूत्) हुआ है।
टिप्पणी
[मन्त्र में विवाहसम्बन्धी पाणिग्रहणविधि का संकेत, तथा पति के कर्तव्यों का वर्णन हुआ है। परिहस्त:= परिगृहीतहस्तः, जिस ने पत्नी के पाणि का ग्रहण किया है, पाणिग्रहण की विधि के अनुसार]।
विषय
पति पत्नी का पाणि-ग्रहण, सन्तानोत्पादन कर्त्तव्यों का उपदेश।
भावार्थ
पत्नी कहती है—हे पते ! (यन्ता असि) तू यन्ता, नियामक अर्थात् अपने आपको नियमों में रखने वाला है। (हस्तौ) तू अपने हाथों का सहारा (यच्छ से) मुझे देता है। (रक्षांसि) हमारे गृहस्थ के विघ्नकारी पुरुषों को (अप सेधसि) दूर करता है। इसी कार्य से (अयम्) यह मेरा पति (परिहस्तः) मुझे अपने हाथ का सहारा देने वाला होकर (प्रजाम्) मेरी भावी सन्तान और (धनं च) धन को (गृह्णानः) स्वीकार करने का अधिकारी (अभूत्) हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्वष्टा ऋषिः। मन्त्रोक्ता उत आदित्यो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Conjugal Love
Meaning
You are a man of principle and conjugal discipline. You give the support of both your hands to your wife. You ward off all evils and disturbing intrusions. You are the winner of wealth and giver of support to the family. May this supportive hand be always extended to the family.
Subject
Adityab : the son of Aditi
Translation
You are the controller, You keep both the hands under control. You drive injurious germs away. This bangle (parihasta) has been the receiver (bringer; harbinger) of progeny and wealth. (Parihasta= an ornament for wrist)
Translation
O grasper of hand (husband)! you are the strict adherent to the law of nature and rules of celibacy, you are grasping my hand and a extending your both hands to me as my supports, you drive away the difficulties of household life, may this my hand-grasper, O God! holding progeny and riches become happy.
Translation
O husband, thou art, the observer of laws, thou supportest me with both thy hands. May this husband of mine, my supporter with his hand, be the holder of progeny and riches.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यन्ता) नियामकः। जितेन्द्रियः (असि) (यच्छसे) पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्०। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः, आत्मनेपदं छान्दसम्। ददासि सहायार्थम् (हस्तौ) (रक्षांसि) दारिद्र्यादिविघ्नान् (अप सेधसि) अपगमयसि (प्रजाम्) पुत्रभृत्यादिरूपाम् (धनम्) सुवर्णादिकम् (च) (गृह्णानः) अवलम्बमानः (परिहस्तः) परिगतः प्रसृतः परोपकाराय हस्तो यस्य सः पुरुषः (अभूत्) (अयम्) प्रसिद्धो भवान् ॥
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