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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 87/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - ध्रुवः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राज्ञः संवरण सूक्त
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    इन्द्र॑ ए॒तम॑दीधरद् ध्रु॒वं ध्रु॒वेण॑ ह॒विषा॑। तस्मै॒ सोमो॒ अधि॑ ब्रवद॒यं च॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । ए॒तम् । अ॒दी॒ध॒र॒त्। ध्रु॒वम् । ध्रु॒वेण॑ । ह॒विषा॑ । तस्मै॑ । सोम॑: । अधि॑ । ब्र॒व॒त् । अ॒यम् । च॒ । ब्रह्म॑ण: । पति॑: ॥८७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र एतमदीधरद् ध्रुवं ध्रुवेण हविषा। तस्मै सोमो अधि ब्रवदयं च ब्रह्मणस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । एतम् । अदीधरत्। ध्रुवम् । ध्रुवेण । हविषा । तस्मै । सोम: । अधि । ब्रवत् । अयम् । च । ब्रह्मण: । पति: ॥८७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 87; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजतिलक यज्ञ के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) परमेश्वर ने (ध्रुवेण) दृढ़ (हविषा) देने लेने योग्य शुभकर्म के साथ (एतम्) इस राजा को (ध्रुवम्) दृढ़ (अदीधरत्) स्थापित किया है। (अयम्) वही (सोमः) सब का उत्पन्न करनेवाला (च) और (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड और वेद का पालक परमेश्वर (तस्मै) उस राजा को (अधि) अधिक-अधिक (ब्रवत्) उपदेश करे ॥३॥

    भावार्थ

    राजा को योग्य है कि परमेश्वर में श्रद्धा करके प्रजापालन, विद्या आदि शुभकर्म करता हुआ सदा उन्नति करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(इन्द्रः) परमेश्वरः (एतम्) राजानम् (अदीधरत्) धारयतेर्लुङि चङि रूपम्। धारितवान्। स्थापितवान् (ध्रुवम्) स्थिरम् (ध्रुवेण) दृढेन (हविषा) दातव्यग्राह्यशुभकर्मणा (तस्मै) राज्ञे (सोमः) सर्वोत्पादकः (अधि) अधिकमधिकम् (ब्रवत्) ब्रूयात्। उपदिशेत् (च) (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्डस्य वेदस्य च पालकः परमेश्वरः ॥

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    विषय

    'सोम ब्रह्मणस्पति' का राजा को उपदेश

    पदार्थ

    १. (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय राजा (एतम्) = इस राष्ट्रजन को (धुवम् अदीधरत्) = स्थिरता से धारण करनेवाला हो। स्वयं जितेन्द्रिय होता हुआ वह प्रजा को भी ध्रुवता से सन्मार्ग में चलानेवाला हो। यह राजा (ध्रुवेण हविषा) = स्थिर हवि के द्वारा-कर-रूप में प्राप्त होनेवाले धन के द्वारा प्रजा को धारण करे। प्रजा नियम से कर दे और राजा उसका विनियोग राष्ट्रधारण में करे २. (च) = और (तस्मै) = उस राजा के लिए (अयम्) = यह (सोमः) = सौम्य स्वभाववाला (ब्रह्मणस्पति:) = ज्ञान का स्वामी आचार्य (अधिब्रवत) = अधिष्ठातरूपेण उपदेश देनेवाला हो और राजा इसके उपदेश का कभी उल्लंघन न करे।

    भावार्थ

    राजा जितेन्द्रिय हो। स्थिररूप से प्राप्त होनेवाले कर के द्वारा वह राष्ट्र का धारण करे। सौम्य, ज्ञानी आचार्य राजा को राजकार्यों [स्वकर्तव्यों] का सदा उपदेश देनेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः) सम्राट ने (ध्रुवेन हविषा) स्थिर 'राष्ट्रकर' द्वारा (एतम्) इस राष्ट्र के राजा को (ध्रुवम्) स्थिर रूप में (अदीधरत्) धारित किया है। (तस्मै) उस राजा के लिये (सोमः) राष्ट्र का सेनानायक (च) और (ब्रह्मणस्पतिः) वेदों का विद्वान् (अधि) स्वाधिकार से (ब्रवत्) परामर्श कहा करें, दिया करें।

    टिप्पणी

    [राष्ट्राधिपति साम्राज्य का अंग है। अतः सम्राट् उस के स्थिर 'राज्यकर' का प्रबन्ध करता है। तथा राष्ट्र का सेनानायक (यजु० १७।४०), और ब्रह्मणस्पति दोनों सम्राट् द्वारा अधिकृत हुए, स्वाधिकार से राजा को परामर्श देते हैं]।

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    विषय

    राजा को स्थायी और दृढ़ शासक होने का उपदेश।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (इन्द्रः) परमेश्वर (एतम्) इस ब्रह्माण्ड को (ध्रुवेण) अपनी स्थिर, सदा वर्तमान (हविषा) दानशक्ति से (ध्रुवम्) स्थिर रूप में (अदीधरत्) धारण कर रहा है उसी प्रकार राजा भी इस राष्ट्र को (इन्द्रः) अधिपति होकर अपनी (ध्रुवेण हविषा) स्थिर प्रतिष्ठापक शक्ति से (अदीधरत्) धारण करे। (तस्मै) उस इन्द्ररूप राजा को (सोमः) यह शान्तप्रकृति, या सबका प्रेरक धर्माध्यक्ष और (ब्रह्मणः-पतिः च) वेद का विद्वान् आचार्य भी (अधि ब्रवत्) उपदेश करे।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘इममिन्द्रो अदी’ (तृ) ‘तस्मा उ’ इति ऋ०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ध्रुवो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ruler’s Selection and Stability

    Meaning

    O Ruler, Indra, lord of might, has entrusted this commonwealth to you. Hold and rule it to maintain it strong and unshaken with constant sacred oblations of action and self-sacrifice. To such a firm and steady ruler, let Soma, lord of inspiring creation, and this Brahmanaspati, sagely scholar of divine knowledge and wisdom, speak of Raja Dharma and socio-economic and political policy of a noble social order.

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    Translation

    The resplendent Lord sustains him steady with unfailing offerings (supplies). May the blissful Lord and the Lord supreme bless and favour him.

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    Translation

    May, the Almighty God establish this King in his kingdom firm with His firm power and let the priest teach him his duties and let the man having masterly Knowledge of Vedic speech him in routines of life.

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    Translation

    God has firmly established this man as king, through his constant bounty. May God, the Creator of all and the Guardian of the Vedas, amply instruct him.

    Footnote

    Him: King.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(इन्द्रः) परमेश्वरः (एतम्) राजानम् (अदीधरत्) धारयतेर्लुङि चङि रूपम्। धारितवान्। स्थापितवान् (ध्रुवम्) स्थिरम् (ध्रुवेण) दृढेन (हविषा) दातव्यग्राह्यशुभकर्मणा (तस्मै) राज्ञे (सोमः) सर्वोत्पादकः (अधि) अधिकमधिकम् (ब्रवत्) ब्रूयात्। उपदिशेत् (च) (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्डस्य वेदस्य च पालकः परमेश्वरः ॥

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