अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 88/ मन्त्र 1
ध्रु॒वा द्यौर्ध्रु॒वा पृ॑थि॒वी ध्रु॒वं विश्व॑मि॒दं जग॑त्। ध्रु॒वासः॒ पर्व॑ता इ॒मे ध्रु॒वो राजा॑ वि॒शाम॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठध्रु॒वा । द्यौ: । ध्रु॒वा । पृ॒थि॒वी । ध्रु॒वम् । विश्व॑म् । इ॒दम् । जग॑त् । ध्रु॒वास॒: । पर्व॑ता: । इ॒मे। ध्रु॒व: । राजा॑ । वि॒शाम् । अ॒यम् ॥८८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ध्रुवा द्यौर्ध्रुवा पृथिवी ध्रुवं विश्वमिदं जगत्। ध्रुवासः पर्वता इमे ध्रुवो राजा विशामयम् ॥
स्वर रहित पद पाठध्रुवा । द्यौ: । ध्रुवा । पृथिवी । ध्रुवम् । विश्वम् । इदम् । जगत् । ध्रुवास: । पर्वता: । इमे। ध्रुव: । राजा । विशाम् । अयम् ॥८८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजतिलक यज्ञ के लिये उपदेश।
पदार्थ
(द्यौः) सूर्यलोक (ध्रुवा) दृढ़ है, (पृथिवी) पृथिवी (ध्रुवा) दृढ़ है, (इदम्) यह (विश्वम्) सब (जगत्) जगत् (ध्रुवम्) दृढ़ है। (इमे) यह सब (पर्वताः) पहाड़ (ध्रुवासः) दृढ़ हैं, (विशाम्) प्रजाओं का (अयम्) यह (राजा) राजा (ध्रुवः) दृढ़स्वभाव है ॥१॥
भावार्थ
जिस प्रकार सूर्य आदि पदार्थ अपने-अपने कर्त्तव्य में दृढ़ हैं, ऐसे ही निश्चलस्वभाव धर्मात्मा पुरुष को प्रजा लोग अपना राजा चुनें ॥१॥
टिप्पणी
१−(ध्रुवा) स्थिरा (द्यौः) अहर्नाम−निघ० १।२। द्यावो द्योतनात्−निरु० २।२०। प्रकाशमानः सूर्यलोकः (ध्रुवा) (पृथिवी) (ध्रुवम्) दृढम् (विश्वम्) सर्वम् (इदम्) दृश्यमानम् (जगत्) लोकः (ध्रुवासः) ध्रुवाः स्थिराः (पर्वताः) शैलाः (इमे) पुरोवर्तमानाः (ध्रुवः) निश्चलः। धार्मिकः (राजा) शासकः (विशाम्) प्रजानाम् (अयम्) पुरोवर्त्ती शूरः ॥
विषय
धुव राजा
पदार्थ
१.जैसे (द्यौ:) = धुलोक (ध्रुवा) = स्थिर है और (पृथिवी ध्रुवा) = पृथिवी स्थिर है। द्यावापृथिवी के अन्दर वर्तमान (इदम्) = यह (विश्वं जगत्) = सब संसार (ध्रुवम्) = स्थिर दीखता है और वहाँ के (इमे) = ये (पर्वता: धुवास:) = पर्वत-जैसे ध्रुव है, उसी प्रकार (अयम्) = यह (विशाम्) = प्रजाओं का राजा-राजा भी (ध्रुवः) = स्थिर हो। राजा कभी भी सन्मार्ग से विचलित होनेवाला न हो।
भावार्थ
प्रजापालक राजा वही होता है जो कर्तव्य-मार्ग पर पर्वतों के समान स्थिर होकर रहता है।
भाषार्थ
(ध्रुवा) ध्रुव है (द्यौः) द्युलोक, (ध्रुवा) ध्रुव है (पुथिवी) पृथिवी लोक, (ध्रुवम्) ध्रुव है (इदम् विश्वम्) यह विश्व (जगत्) जो कि गतिमान् है (ध्रुवासः) ध्रुव हैं (इमे पर्वताः) ये पर्वत, (ध्रुवः) ध्रुव है (अयय्) यह (विशाम् राजा) प्रजाओं का राजा।
टिप्पणी
[ध्रुव का अभिप्राय गतिरहित नहीं, अपितु स्व-स्वकार्यों में स्थिरता है। विश्व को जगत् अर्थात् गतिमान् कहा है, जगत्= गम् गतौ। राजा भी स्वकार्य में ध्रुव है, परन्तु चलता फिरता है निश्चल नहीं, गतिमान् है]।
विषय
राजा को ध्रुव होने का उपदेश।
भावार्थ
जिस प्रकार (द्यौः ध्रुवा) यह द्युलोक, स्थिर है। जिस प्रकार (पृथिवी ध्रुवा) पृथिवी भी स्थिर है वह अपने क्रान्तिमार्ग से विचलित नहीं होती। (इदं विश्वं जगत्) यह समस्त संसार (ध्रुवम्) ध्रुव, अपने नियमों में स्थिर है। जिस प्रकार (इमे पर्वताः ध्रुवासः) ये पर्वत भी ध्रुव हैं। उसी प्रकार (अयम् राजा) यह राजा भी (विशाम्) प्रजाओं में (ध्रुवः) स्थिर हो।
टिप्पणी
प्र० तृ० द्वि० च० इति पादक्रमः ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। ध्रुवो देवता। १-२ अनुष्टुभौ, ३ त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ruler’s Stability
Meaning
The heaven is firm and constant, the earth is firm and constant, the dynamic universe is stable and constant, these mountains are firm and stable. The ruler of the people too is firm and constant.
Subject
Dhruvah : Firm
Translation
The sky is firm (dhruva); the earth is firm; and all this living world is firm. These mountains are firm and firm is this king of the people.
Translation
Constant is the heaven, constant is the earth, constant is this living world, constant are these mountains and let steadfast and firm be the King among his subjects.
Translation
Firm is the sky, firm is the earth, and firm is all this living world; firm are these mountains on their base, so steadfast like them is this king of men.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(ध्रुवा) स्थिरा (द्यौः) अहर्नाम−निघ० १।२। द्यावो द्योतनात्−निरु० २।२०। प्रकाशमानः सूर्यलोकः (ध्रुवा) (पृथिवी) (ध्रुवम्) दृढम् (विश्वम्) सर्वम् (इदम्) दृश्यमानम् (जगत्) लोकः (ध्रुवासः) ध्रुवाः स्थिराः (पर्वताः) शैलाः (इमे) पुरोवर्तमानाः (ध्रुवः) निश्चलः। धार्मिकः (राजा) शासकः (विशाम्) प्रजानाम् (अयम्) पुरोवर्त्ती शूरः ॥
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