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यजुर्वेद अध्याय - 4

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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 28
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - साम्नी बृहती,साम्नी उष्णिक्, स्वरः - मध्यमः
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    परि॑ माग्ने॒ दुश्च॑रिताद् बाध॒स्वा मा॒ सुच॑रिते भज। उदायु॑षा स्वा॒युषोद॑स्थाम॒मृताँ॒२ऽअनु॑॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑। मा॒। अ॒ग्ने॒। दुश्च॑रिता॒दिति॒ दुःऽच॑रितात्। बा॒ध॒स्व॒। आ। मा॒। सुच॑रित॒ इति॒ सुऽच॑रिते। भ॒ज॒। उत्। आयु॑षा। स्वा॒युषेति॑ सुऽआ॒युषा॑। उत्। अ॒स्था॒म्। अ॒मृता॑न्। अनु॑ ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि माग्ने दुश्चरिताद्बाधस्वा मा सुचरिते भज । उदायुषा स्वायुषोदस्थाममृताँ अनु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    परि। मा। अग्ने। दुश्चरितादिति दुःऽचरितात्। बाधस्व। आ। मा। सुचरित इति सुऽचरिते। भज। उत्। आयुषा। स्वायुषेति सुऽआयुषा। उत्। अस्थाम्। अमृतान्। अनु॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 28
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    शब्दार्थ -
    हे (अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! आप (मा) मुझे (दुश्चरितात्) दुराचार, दुष्टाचार से (परि बाधस्व) दूर हटाओ और (मा) मुझको (सुचरिते) उत्तम चरित में, सदाचार में (आ भज) स्थापित करो। मैं (अमृतान्) जीवन्मुक्त श्रेष्ठ, सदाचारी पुरुषों का (अनु) अनुकरण करके (उत् आयुषा) उत्कृष्ट जीवन और (सु आयुषा) सुदीर्घायु से युक्त होकर (उद् अस्थम्) उत्तम मार्ग में स्थिर रहूँ ।

    भावार्थ - मन्त्र में कितनी सुन्दर प्रार्थना और कामना है १. प्रभो ! तू मुझे दुराचार से छुड़ाकर सदाचार की ओर ले चल । २. प्रभो ! मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कर कि मैं जीवन्मुक्त, श्रेष्ठ और सदाचारी पुरुषों का अनुसरण कर सकूँ । श्रेष्ठ और सदाचारी पुरुषों के अनुसरण से मनुष्य में तीन गुण आएँगे - १. जीवन उन्नत और उत्कृष्ट होगा । २. आयु दीर्घ होगी । ३. सदाचारी पुरुषों से प्रेरणा लेकर वह निरन्तर उत्तम मार्ग में स्थिर रहेगा, पतन के गढ़े में गिरने से बच जाएगा ।

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