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यजुर्वेद अध्याय - 5

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  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 19
    ऋषिः - औतथ्यो दीर्घतमा ऋषिः देवता - विष्णुर्देवता छन्दः - निचृत् आर्षी जगती, स्वरः - निषादः
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    दि॒वो वा॑ विष्णऽउ॒त वा॑ पृथि॒व्या म॒हो वा॑ विष्णऽउ॒रोर॒न्तरि॑क्षात्। उ॒भा हि हस्ता॒ वसु॑ना पृ॒णस्वा प्रय॑च्छ॒ दक्षि॑णा॒दोत स॒व्याद्विष्ण॑वे त्वा॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः। वा॒। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो। उ॒त। वा॒। पृ॒थि॒व्याः। म॒हः। वा॒। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो। उ॒रोः। अ॒न्तरि॑क्षात्। उ॒भा। हि। हस्ता॑। वसु॑ना। पृ॒णस्व॑। आ। प्र। य॒च्छ॒। दक्षि॑णात्। आ। उ॒त। स॒व्यात्। विष्ण॑वे। त्वा॒ ॥१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवो वा विष्णऽउत वा पृथिव्या महो वा विष्णऽउरोरन्तरिक्षात् । उभा हि हस्ता वसुना पृणस्वा प्रयच्छ दक्षिणादोत सव्यात् विष्णवे त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः। वा। विष्णोऽइति विष्णो। उत। वा। पृथिव्याः। महः। वा। विष्णोऽइति विष्णो। उरोः। अन्तरिक्षात्। उभा। हि। हस्ता। वसुना। पृणस्व। आ। प्र। यच्छ। दक्षिणात्। आ। उत। सव्यात्। विष्णवे। त्वा॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 19
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    शब्दार्थ -
    हे ऐश्वर्यशालिन् ! मैंने तो अपने-आपको (त्वा विष्णवे) तुझ विष्णु के प्रति समर्पित कर दिया है। तुझे छोड़कर कहाँ जाऊँ और किससे माँगूँ ! प्रभो ! (उभा हि हस्ता) दोनों ही हाथों को (वसु) ऐश्वर्य से (आ पृणस्व) पूर्ण कर दे, भर दे (विष्णो) हे सर्वव्यापक परमात्मन् ! (वा दिव:) तू चाहे द्युलोक से (उत वा महः पृथिव्याः) चाहे महती पृथिवी से (वा उरो: अन्तरिक्षात्) चाहे विशाल अन्तरिक्ष से, कहीं से भी ला (विष्णो) अन्तर्यामिन् ! (दक्षिणात् उत् सव्यात्) दाईं ओर से और बाई ओर से, दोनों ओर से (आप्रयच्छ) मुझे पूर्णरूपेण भर दे, तृप्त कर दे ।

    भावार्थ - मन्त्र में किसी उपासक की भावना का सुन्दर चित्रण है - १. प्रभो ! मैंने अपने-आपको तुझे समर्पित कर दिया है, अब सब स्थानों से नाता तोड़कर तेरे साथ नाता जोड़ लिया है । २. प्रभो ! तुझे छोड़कर, तुझसे कृपानिधान और दानदाता का त्याग कर और किसके आगे हाथ फैलाऊँ, किससे माँगूँ ! मैं तो तुझसे ही याचना करता हूँ। प्रभो ! मेरे दोनों हाथों को ऐश्वर्य से भर दो । मेरे दोनों हाथों में लड्डू हों। मुझे सांसारिक सुखभोग भी प्राप्त हों और मरने पर मोक्ष-सुख भी मिले । ३. प्रभो ! तू आकाश से ला या पाताल से, पृथिवी से ला या अन्तरिक्ष से, कहीं से ला और मेरे दोनों हाथों को ऐश्वर्य से भर दे ।

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