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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    सूक्त - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२६

    आ घा॑ गम॒द्यदि॒ श्रव॑त्सह॒स्रिणी॑भिरू॒तिभिः॑। वाजे॑भि॒रुप॑ नो॒ हव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । घ॒ । ग॒म॒त् । यदि॑ । अव॑त् । स॒ह॒स्रि॒णी॑भि: । ऊ॒तिभि॑: ॥ वाजे॑भि: । उप॑ । न॒: । हव॑म् ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ घा गमद्यदि श्रवत्सहस्रिणीभिरूतिभिः। वाजेभिरुप नो हवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । घ । गमत् । यदि । अवत् । सहस्रिणीभि: । ऊतिभि: ॥ वाजेभि: । उप । न: । हवम् ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (यदि) जो वह (आ गमत्) आवे, (घ) तो वह (सहस्रिणीभिः) सहस्रों उत्तम पदार्थ पहुँचानेवाली (ऊतिभिः) रक्षाओं से (वाजेभिः) अन्नों के साथ (नः) हमारी (हवम्) पुकार को (उप) आदर से (श्रवत्) सुने ॥२॥

    भावार्थ - सेनाध्यक्ष को चाहिये कि दूरदर्शी होकर आवश्यक अन्न आदि पदार्थों का संग्रह करके सबकी यथावत् रक्षा करे ॥२॥

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