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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२६
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    आ घा॑ गम॒द्यदि॒ श्रव॑त्सह॒स्रिणी॑भिरू॒तिभिः॑। वाजे॑भि॒रुप॑ नो॒ हव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । घ॒ । ग॒म॒त् । यदि॑ । अव॑त् । स॒ह॒स्रि॒णी॑भि: । ऊ॒तिभि॑: ॥ वाजे॑भि: । उप॑ । न॒: । हव॑म् ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ घा गमद्यदि श्रवत्सहस्रिणीभिरूतिभिः। वाजेभिरुप नो हवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । घ । गमत् । यदि । अवत् । सहस्रिणीभि: । ऊतिभि: ॥ वाजेभि: । उप । न: । हवम् ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १-३ सेनाध्यक्ष के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो वह (आ गमत्) आवे, (घ) तो वह (सहस्रिणीभिः) सहस्रों उत्तम पदार्थ पहुँचानेवाली (ऊतिभिः) रक्षाओं से (वाजेभिः) अन्नों के साथ (नः) हमारी (हवम्) पुकार को (उप) आदर से (श्रवत्) सुने ॥२॥

    भावार्थ

    सेनाध्यक्ष को चाहिये कि दूरदर्शी होकर आवश्यक अन्न आदि पदार्थों का संग्रह करके सबकी यथावत् रक्षा करे ॥२॥

    टिप्पणी

    मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में है-१।३०।८, ९, और सामवेद में है-उ० १।२। तृच ११ ॥ २−(आ गमत्) गमेर्लेटि अडागमः। आगच्छेत् (यदि) चेत् (श्रवत्) शृणोतेर्लेटि अडागमः। शृणुयात् (सहस्रिणीभिः) प्रशमार्थ इनिः। सहस्राणि प्रशस्तानि पदार्थप्रापणानि यासु ताभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (वाजेभिः) अन्नैः (उप) पूजायाम् (नः) अस्माकम् (हवम्) आह्वानम् ॥

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    विषय

    ऊतिभि:+वाजेभिः

    पदार्थ

    १. (यदि) = यदि वे प्रभु (न:) = हमारी (हवम्) = पुकार को (श्रवत्) = सुनते हैं, अर्थात् यदि हम प्रभु को पुकारते हैं तो वे (सहस्त्रिणीभिः ऊतिभि:) = हज़ारों रक्षणों के साथ तथा (वाजेभि:) = बलों के साथ (घा) = निश्चय से (उप आगमत्) = हमें समीपता से प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु को पुकारें। प्रभु हमें रक्षण व बल प्राप्त कराएँगे।

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    भाषार्थ

    (यदि श्रवत्) यदि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार कर लेता है, तो वह (घ) निश्चय से (सहस्रिणीभिः ऊतिभिः) हजारों प्रकार के रक्षा-साधनों के साथ, तथा (वाजेभिः) हजारों प्रकार के बलों समेत (नः) हमारी (हवम्) प्रार्थनाओं के होते (उप) हमारे समीप (आ गमत्) आ उपस्थित होता है।

    टिप्पणी

    [श्रद्धा भक्ति तथा आत्मसमर्पणपूर्वक की गई प्रार्थनाओं को परमेश्वर सुनता है। और सुनकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर क्षार और बलप्रदान करता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    If Indra hears our call, let Him come, we pray, with a thousand ways of protection and progress of prosperity and well-being.

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    Translation

    If he hears our call he with succour of thousand kings and strength come to us.

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    Translation

    If he hears our call he with succour of thousand kings and strength come to us.

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    Translation

    Let the king or commander, if he hears our call, truly come to us, with thousands of means of protection and sources of power and energy.

    Footnote

    (1-3) cf, Rig, 1-30 (7-9), (4-6) cf. Rig, 1.6. (1-3).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में है-१।३०।८, ९, और सामवेद में है-उ० १।२। तृच ११ ॥ २−(आ गमत्) गमेर्लेटि अडागमः। आगच्छेत् (यदि) चेत् (श्रवत्) शृणोतेर्लेटि अडागमः। शृणुयात् (सहस्रिणीभिः) प्रशमार्थ इनिः। सहस्राणि प्रशस्तानि पदार्थप्रापणानि यासु ताभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (वाजेभिः) अन्नैः (उप) पूजायाम् (नः) अस्माकम् (हवम्) आह्वानम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৩ সেনাধ্যক্ষলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যদি) যদি তিনি (আ গমৎ) আসেন, (ঘ) তবে তিনি (সহস্রিণীভিঃ) সহস্র উত্তম পদার্থ প্রেরণকারী (ঊতিভিঃ) সুরক্ষা দ্বারা (বাজেভিঃ) অন্নের সাথে (নঃ) আমাদের (হবম্) আহ্বান (উপ) আদরপূর্বক (শ্রবৎ) শ্রবণ করেন/করুক॥২॥

    भावार्थ

    সেনাধ্যক্ষের উচিত, দূরদর্শী হয়ে আবশ্যক অন্নাদি পদার্থসমূহ সংগ্রহ করে সকলকে যথাযথ রক্ষা করে/করুক ॥২॥ মন্ত্র ২,৩ ঋগ্বেদে আছে-১।৩০।৮,৯ এবং সামবেদে আছে-উ০ ১।২। তৃচ ১১।

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    भाषार्थ

    (যদি শ্রবৎ) যদি পরমেশ্বর আমাদের প্রার্থনা স্বীকার করেন, তবে তিনি (ঘ) নিশ্চিতরূপে (সহস্রিণীভিঃ ঊতিভিঃ) সহস্র প্রকারের রক্ষা-সাধন সহিত, তথা (বাজেভিঃ) সহস্র প্রকারের বল সমেত (নঃ) আমাদের (হবম্) প্রার্থনা দ্বারা (উপ) আমাদের সমীপে (আ গমৎ) এসে উপস্থিত হবেন।

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