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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 79

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
    सूक्त - शक्तिरथवा वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-७९

    मा नो॒ अज्ञा॑ता वृ॒जना॑ दुरा॒ध्यो॒ माशि॑वासो॒ अव॑ क्रमुः। त्वया॑ व॒यं प्र॒वतः॒ शश्व॑तीर॒पोऽति॑ शूर तरामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । अज्ञा॑ता: । वृ॒जना॑: । दु॒:ऽआ॒ध्य॑: । मा । आशि॑वास: । अव॑ । क्र॒मु॒: । त्वया॑ । व॒यम् । प्र॒ऽवत॑: । शश्व॑ती: । अ॒प: । अति॑ । शू॒र॒ । त॒रा॒म॒सि॒ ॥७९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो माशिवासो अव क्रमुः। त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । अज्ञाता: । वृजना: । दु:ऽआध्य: । मा । आशिवास: । अव । क्रमु: । त्वया । वयम् । प्रऽवत: । शश्वती: । अप: । अति । शूर । तरामसि ॥७९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 79; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (नः) हमको (मा) न तो (अज्ञाताः) अनजाने हुए (वृजनाः) पापी, (दुराध्यः) दुष्ट बुद्धिवाले, और (मा)(अशिवासः) अकल्याणकारी लोग (अव क्रमुः) उल्लङ्घन करें। (शूर) हे शूर (त्वया) तेरे साथ (वयम्) हम (प्रवतः) नीचे देशों [खाई, सुरङ्ग आदि] और (शश्वतीः) बढ़ते हुए (अपः) जलों को (अति) लाँघकर (तरामसि) पार हो जावें ॥२॥

    भावार्थ - राजा ऐसा प्रबन्ध करे कि गुप्त दुराचारी लोग प्रजा को न सतावें और नौका, यान, विमान आदि से अपने लोग कठिन मार्गों को सुख से पार करें ॥२॥

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